Monday, December 23, 2019

स्पीयरमैन का बुद्धि सिद्धांत


संक्षिप्त परिचय
          चार्ल्स स्पीयरमैन (1863 से 1945), एक ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक थे। वह मूल रूप से एक सैन्य इंजीनियर थे। उन्होंने सेना से त्याग पत्र देकर विल्हेम वुंड्ट के तहत प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का अध्ययन करने का फैसला किया और 1906 में पीएचडी की डिग्री हासिल की। ​​उन्होंने 1907 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में दाखिला लिया और 1932 में मनोविज्ञान के प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त होने तक बने रहे।

        स्पीयरमैन ने एक बार कहा था कि "हर सामान्य पुरुष, महिला और बच्चा ... किसी-न-किसी चीज में एक प्रतिभाशाली होता है ... बस जरूरत है उसकी प्रतिभा को खोजने की ..."। उन्होंने सांख्यिकीय विश्लेषण में महारत हासिल करते हुए रैंक सहसंबंध विधि (Rank Correlation Method) के विकास के साथ और कारक विश्लेषण (Factor Analysis) विधि के शुरुआती संस्करण का विकास किया। उन्हें मनोवैज्ञानिक परीक्षण आंदोलन का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने बुद्धि के  सामान्य (general, g) कारक की खोज की और बुद्धि का एक सिद्धांत प्रस्तावित किया। जिसे स्पीयरमैन का बुद्धि सिद्धांत कहा जाता है।

सिद्धांत
            1927 में उन्होंने बुद्धि का एक दो-कारक सिद्धांत प्रस्तावित किया। उन्होंने नई-नई खोजी गई सांख्यिकीय विश्लेषण पद्धति जिसे कारक विश्लेषण (Factor Analysis) के रूप में जाना जाता है का उपयोग करके अपने सिद्धांत को विकसित किया । उन्होंने प्रस्तावित किया कि बुद्धि में दो क्षमताएं या कारक शामिल होते हैं यानी एक सामान्य कारक (स-कारक) (g-factor) और कुछ विशिष्ट कारक (वि-कारक) (S-Factor)। दोनों बुद्धि परीक्षणों द्वारा मापने योग्य हैं।

(i)       स-कारक (g-factor) – सामान्य या जन्मज (देशज-Native) बुद्धि के रूप में भी जाना जाता है। तर्क करने और समस्याओं के समाधान करने की क्षमता जिसमे ऐसे मानसिक ऑपरेशन शामिल होते हैं जो सभी प्रकार के कार्यों के निष्पादन के लिए प्राथमिक रूप से जिम्मेदार होते हैं। स-कारक मनोवैज्ञानिक अवधारणा के रूप में एक व्यक्ति के विभिन्न संज्ञानात्मक कार्यों पर निष्पादन के लिए जिम्मेदार समग्र मानसिक क्षमता को संदर्भित करता या दर्शाता है। यह जन्मजात क्षमता होती है और काफी हद तक जीवन भर स्थिर रहती है। हर व्यक्ति में स-कारक की अलग-अलग मात्रा होती है। यह माना जाता है कि जितना ज्यादा ‘स’-कारक होगा समग्र बुद्धि भी उतनी ही बेहतर होगी।

(ii)      वि-कारक (S-Factor) – इस करक को कई विशिष्ट क्षमताओं के रूप में भी जाना जाता है। विशिष्ट क्षेत्रों जैसे गायन, विज्ञान, वास्तुकला, एथलेटिक्स, खेल, कला आदि में उत्कृष्टता प्राप्त करने की क्षमता को वि-कारक (S-Factor) कहा जाता है । ये विशिष्ट क्षमताएं लोगों को अपने संबंधित अनुक्षेत्र या ज्ञानक्षेत्र (Domain) में उत्कृष्टता प्राप्त करने का जरिया होती हैं। वि-कारक एक प्रकार से ऐसी सीखी गई गतिशील क्षमताएँ होती हैं जो समय के साथ संशोधित (modify) की जा सकती हैं। हर व्यक्ति में बुद्धि की ये क्षमता हर एक गतिविधि में भिन्न होती है। विशिष्ट या वि-क्षमताओं की संख्या अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग मात्रा में कम या ज्यादा हो सकती है।

निष्कर्ष
            बुद्धि की सम्पूर्ण अवधारणा ‘स’-कारक और ‘वि’-कारक/ कारकों का कुल योग होती है। ‘स’-कारक स्थिर और जन्मजात होते है जबकि ‘वि’-कारक/ कारकों को सीखा और अधिग्रहित (acquire) किया जाता है। सामान्य कार्यों के लिए ‘स’-कारक जिम्मेदार होता है जबकि विशिष्ट कार्यों के लिए ‘वि’-कारक। ‘स’-कारक विशिष्ट क्षमताओं में भी पाया जाता है। उदाहरण के लिए एक महान हॉकी खिलाड़ी के पास ‘स’+‘वि’ (खिलाड़ी) दोनों प्रकार की बुद्धि होती है और इसी प्रकार एक उत्कृष्ट लेखक के पास भी ‘स’+‘वि’ (लेखन) दोनों प्रकार की बुद्धि होती है।
      
सन्दर्भ :
1.         NCERT. (2013). XII, Book.
2.         https://en.wikipedia.org/wiki/Charles_Spearman.



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