Tuesday, December 17, 2019

मनोवैज्ञानिक प्रेरक


संक्षिप्त परिचय
             मनोवैज्ञानिक प्रेरकों की प्रकृति व्यक्तिगत होती है क्योंकि इन प्रेरकों को अनुभव करने वाले व्यक्ति के अलावा कोई दूसरा उन्हें न तो समझ सकता है और न ही वैसा ही अनुभव कर सकता है। मनोवैज्ञानिक प्रेरकों को मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं के रूप में भी जाना जाता है जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होती हैं। मनोवैज्ञानिक प्रेरकों को संतुष्ट करने में विफलता से मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य में गड़बड़ी हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति का व्यवहार प्रभावित हो सकता है। 

मनोवैज्ञानिक प्रेरकों के प्रकार
           
1.         उपलब्धि की आवश्यकता,
2.         जिज्ञासा और अन्वेषण (Exploration),
3.         संबद्धता की आवश्यकता,
4.         सत्ता और प्रभुत्व की आवश्यकता,
5.         कार्य एक प्रेरक के रूप में ,
6.         जोखिम (Risk) उठाना,
7.         आक्रामकता (Aggression),
8.         स्वायत्तता (Autonomy)।
1.       उपलब्धि की आवश्यकता (n-Ach)  – यह एक मनो-सामाजिक प्रेरक होता है क्योंकि उपलब्धि का केंद्रीय आधार दूसरों से बेहतर प्रदर्शन करना, उत्कृष्टता प्राप्त करना है और चुनौतीपूर्ण कार्य करके दूसरे लोगों के सामने अपनी क्षमता का प्रदर्शन करना। यह व्यवहार को स्फूर्ति देने के साथ-साथ उसका निर्देशन भी करता है तथा स्थितियों के प्रत्यक्षण को प्रभावित करता है। यह प्रेरक विकास के प्रारंभिक वर्षों के दौरान माता-पिता, शिक्षकों और अन्य रोल मॉडल को देखकर विकसित होता है। उच्च उपलब्धि प्रेरक (n-Ach) वाले व्यक्ति चुनौतीपूर्ण कार्य करने और लोगों की प्रतिक्रिया जानने के इच्छुक होते हैं।

2.       जिज्ञासा और अन्वेषण  – बिना किसी प्रेरक लक्ष्य या उद्देश्य के आनंद के लिए गतिविधियों में संलग्न होने का विचार जिज्ञासा और अन्वेषण के दायरे में आता है। करने का प्रेरक नए अनुभव और समस्याओं के हल की तलाश जिज्ञासा का संकेतक होता है। जिज्ञासापूर्ण व्यवहार जानवरों में भी पाया जाता है। विभिन्न प्रकारों के संवेदी प्रवर्तनों  (stimulations) की तीव्र इच्छा जिज्ञासा से निकटता से संबंधित होती है। जिज्ञासा, उबाऊ एवं नीरस व्यवहार से बचने का एक शक्तिशाली मानसिक उपकरण होता है। बच्चे अत्यंत जिज्ञासु होते हैं ।
3.       संबद्धता (Affiliation) की आवश्यकता - अन्य मनुष्यों की कंपनी की तलाश करना और शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से उनके करीब होने को संबद्धता कहा जाता है। मनुष्य अपने पारस्परिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अन्य साथियों के साथ सम्बद्ध होना पसंद करता है। विभिन्न समूहों का अस्तित्व में होना इस प्रेरक के होने का एक ठोस साक्ष्य है। लोग दूसरे लोगों के करीब आने, उनसे मदद लेने और उनके समूह के सदस्य बनने की कोशिश करते हैं। इस आवश्कता की शुरुआत आनंदित, डरावनी औरअसहाय स्थिति में होती है। जिन लोगों में यह प्रेरक उच्च स्तर का होता है उन लोगों के अंतर्वैयक्तिक सम्बन्ध अच्छे पाये जाते हैं।

4.       सत्ता और प्रभुत्व की आवश्यकता – यह दूसरों के व्यवहार और संवेगों पर इच्छित प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता होती है। सत्ता के प्रेरकों का लक्ष्य दूसरों को प्रभावित करना, नियंत्रित करना, राजी करना, नेतृत्व करना, आकर्षित करना और अन्य लोगों की नज़र में अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाना होता है।
            डेविड मैकलेलैंड (1975) ने सत्ता और प्रभुत्व के प्रेरक की अभिव्यक्ति (Expression) के निम्नलिखित चार तरीके बताए हैं: -
(i)         लोग स्वयं से बाहर के स्रोतों जैसे, प्रसिद्ध खिलाड़ियों की कहानियाँ पढ़कर या खुद को लोकप्रिय शख्शियत से सम्बद्ध करके सत्ता और प्रभुत्व की भावना हासिल करने के लिए ऐसी हरकत करते हैं।
(ii)        शक्ति को हमारे भीतर के स्रोतों जैसे बॉडी बिल्डिंग करके, मनोवेगों (impulses) और तीव्र इच्छाओं (urges) पर महारत हासिल करके से भी महसूस किया जा सकता है।
(iii)       दूसरों पर प्रभाव डालने के लिए भी लोग विशिष्ट व्यव्हार करते हैं।
(iv)       लोग संगठनों (राजनीतिक दलों) के सदस्यों के रूप में अन्य लोगों को प्रभावित करने के लिए भी विशिष्ट व्यव्हार हैं।
6.       कार्य एक प्रेरक के रूप में – लोग पुरस्कार के लिए काम करते हैं जो मूर्त और/या अमूर्त हो सकता है। कार्य, पुरस्कार और प्रोत्साहन दोनों प्रदान करता है जो व्यक्ति को भविष्य के काम में संलग्न होने और लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। 'कार्य' व्यक्तिगत प्रेरक होता है जो व्यक्ति को गतिविधि में संलग्न होने के लिए प्रेरित करता है। भौतिक संपत्ति अर्जित करना कार्य-प्रेरक का सबसे प्रमुख परिणाम होता है। आकांक्षाएं, लक्ष्य, इन्द्रिय सुख आदि हैं उद्देश्यों काम में संलग्न होने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

7.       जोखिम (Risk) उठाना – जोखिम उठाना किसी भी सचेत या असचेत रूप से नियंत्रित व्यवहार होता है जिसके परिणाम कथित रूप से अनिश्चितता से भरे होते हैं (scirectirect.com)। यह प्रेरक एक ऐसे व्यवहार को आरम्भ करता है जो संभावित रूप से खतरनाक तो होता है लेकिन इसमें रोमांच और उत्साह खूब पाया जाता है। यह मनुष्यों और जानवरों (भेड़ियों) में पाया जाने वाला एक प्रकार का अनुकूली प्रेरक होता है।
8.       आक्रामकता – यह प्रेरक जानवरों और इंसानों में पाई जाने वाली मूल प्रवृत्तियों में से एक होता है। दूसरों को नुकसान पहुंचाने या नुकसान पहुंचाने के इरादे से किया गया व्यवहार आक्रामकता कहलाता है। निराशा, भय और करो या मरो की स्थितियों में आक्रामक तरीके से की गई प्रतिक्रिया एक इच्छानुरूप प्रेरक होता है। यह शारीरिक और मौखिक रूप अभिव्यक्त किया जा सकता है।
9.       स्वायत्तता – बिना किसी बाहरी प्रभाव के निर्णय लेने की क्षमता। यह एक आंतरिक स्वशासी (self governing) प्रेरक होता है जो स्वतंत्र इच्छा से संबंधित होकर व्यवहार को नियंत्रित करता है। प्रेरक के रूप में स्वायत्तता व्यक्ति को आत्मनिर्भर व्यवहार की ओर अग्रसर करता है। स्वायत्तता एक नैतिक अधिकार होता है  या हमारे पास सोचने एवं स्वयं के लिए निर्णय लेने की एक ऐसी क्षमता जिससे शक्ति या कुछ हद तक रोजमर्रा की जिंदगी में घटने वाली घटनाओं पर नियंत्रण होता है (सेंसेन, ओ. 2013)।

सन्दर्भ:
1.         NCERT,  (2013). XI Psychology Text book.
2.         https://www.sciencedirect.com/science/article/ pii/S0166411508612959
3.         Sensen, O. (2013). Kant on Moral Autonomy. Cambridge University Press. ISBN 9781107004863.

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