संक्षिप्त
परिचय
अनुभव और अभिव्यक्ति संवेगों के दो पहलू होते हैं
जो शारीरिक उत्तेजना के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं। ‘अनुभव’ आंतरिक शारीरिक गतिविधियों से सम्बंधित
होते हैं जबकि ‘अभिव्यक्ति’ बाहरी
गतिविधियों के साथ। आंतरिक परिवर्तन व्यक्तिपरक जागरूक भावनाएं होती हैं और बाहरी परिवर्तन,
अन्य लोगों और स्वयं के लिए, विशिष्ट प्रतिक्रिया पैटर्न होते हैं।
(i) स्वयं
के लिए बायोफीडबैक के रूप में जो मनो-न्यूरो-शारीरिक चक्र को सम्पूर्ण करने
के लिए होता है।
(i) अन्य लोगों के साथ संचार के लिए भावनाओं को शरीरभाषा या गैर-मौखिक
संकेत में परिवर्तन का तरीका।
शारीरिक परिवर्तन स्वायत्त तंत्रिका तंत्र
की सक्रियता पर आधारित होते हैं। अनुकंपी तंत्रिका तंत्र (स्वायत्त तंत्रिका तंत्र
का एक घटक) संवेग उत्पन्न करने वाले उद्दीपक या स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया स्वरूप
सामान्यीकृत शारीरिक उत्तेजना के लिए जिम्मेदार होता है। संवेगों के अनुभव की प्रक्रिया
इन्द्रियों से प्राप्त सूचना के पश्चात ही शुरू
होती है। प्राप्त सूचना मस्तिष्क से विभिन्न आंतरिक अंगों तक यात्रा करके सम्पूर्ण
शारीरिक तंत्र में प्रतिक्रिया की एक अनैच्छिक श्रृंखला को आरम्भ करती है। संवेगात्मक
प्रतिक्रिया का दिलचस्प पहलू यह होता है कि विभिन्न प्रकार के संवेगों की अनुभूति के
दौरान आंतरिक परिवर्तन कमोबेश समान रहते हैं, एकमात्र जो अंतर होता है वह चेहरे की
अभिव्यक्ति और संबद्ध शरीर भाषा में दिखाई देता है। उदाहरण के लिए क्रोध और भय को लें।
दोनों संवेगों के लक्षण कमोबेश समान होते हैं परन्तु अनुभव और चेहरे की अभिव्यक्ति
में भिन्नता पाई जाती है। संवेग निम्नलिखित दो प्रकार के शारीरिक परिवर्तन उत्पन्न
करते हैं : -
(i) आंतरिक एवं
(ii) बाहरी
आंतरिक शारीरिक परिवर्तन
ये अनुकंपी तंत्रिका तंत्र द्वारा त्वरित होते हैं
और परानुकंपी तंत्रिका तंत्र द्वारा सामान्य स्थिति में वापस लाए जाते हैं।
1. हृदय गति की दर में वृद्धि – संवेगात्मक स्थितियों के दौरान एड्रेनालाईन हार्मोन
का स्त्राव तेजी से होने लगता है जो शरीर को मुकाबला करो या भागो के लिए तैयार करने
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हार्मोन का स्त्राव हृदय की गति में वृद्धि करने
के लिए हृदय को मिलने वाले नियमित विद्युत स्पंद की आपूर्ति को बढ़ा देता है। मांसपेशियों
को उचितऑक्सीजन की आपूर्ति बनाए रखने के लिए हृदय को तेजी से काम करना पड़ता जिसके
कारण उसकी धड़कन में वृद्धि हो जाती है।
2. रक्तचाप में वृद्धि – हृदय गति में वृद्धि के फलस्वरूप रक्तचाप में
वृद्धि हो जाती है।
3. श्वसन क्रिया में वृद्धि – संवेगात्मक स्थिति के दौरान मांसपेशियाँ अधिक
ऊर्जा का उपभोग करने लगती हैं जिसके कारण शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन बढ़
जाता है।इसे बाहर निकालने के लिए फेफड़ों को तेजी से कार्य करना पड़ता है जिसके फलस्वरूप
श्वसन दर में वृद्धि हो जाती है।
4. पुतलियों का फैलना – पुतलियां
आँख में प्रकाश के प्रवेश की मात्रा को नियंत्रित करती हैं। यह स्पष्ट होता है की संवेगात्मक
उत्तेजना के दौरान शरीर को बेहतर दृश्य क्षेत्र की आवश्यकता होती है जो कि पुतलियों
के फैलाव द्वारा हासिल होता है। डैनियल काह्नमैन के अनुसार पुतलियां अविश्वसनीय रूप
से सटीक तरीके से मानसिक प्रयास की सीमा को दर्शाती हैं (Fong, 2012)।
5. मुँह का सूख जाना – शुष्क
मुंह लार की संरचना में बदलाव या लार की आपूर्ति में कमी के कारण होता है जो मस्तिष्क
में न्यूरोलॉजिकल परिवर्तनों के परिणामस्वरूप होता है । ये परिवर्तन संवेगात्मक उत्तेजना
के कारण संभव हो पाते हैं।
6. पाचन दर में वृद्धि – हृदय
दर में वृद्धि के कारण विभिन्न अंगों में रक्त की आपूर्ति बढ़ जाती है। पाचन तंत्र
को भी रक्त की आपूर्ति बढ जाती है जो इस प्रणाली को तीव्र गति से आगे बढ़ने के लिए
प्रेरित करती है। बढ़ी हुई पाचन दर ऊर्जा की बढ़ी हुई आवश्यकता को पूरा करने के लिए
भोजन को तेजी से पचाना शुरू कर देती है।
बाहरी शारीरिक परिवर्तन
1. अंगों का कांपना – एड्रेनालाईन
हार्मोन का अत्यधिक स्त्राव अंगों में कंपन का कारण बनता है। शरीर के इष्टतम तापमान
को बनाए रखने के लिए मांसपेशियों में ऊर्जा का प्रवाह होता है जो व्यक्ति को मुकाबला
करो या भागो के लिए तैयार करती है। ऐसा आमतौर
पर रोमांचक या भयावह घटनाओं के अनुभव के दौरान होता है।
2. चेहरे की अभिव्यक्ति में परिवर्तन – लगभग
2000 साल पहले सिसरो ने कहा था, "चेहरा आत्मा की छवि होती है"। चेहरे के
भाव संवेगों की पहचान का सर्वश्रेष्ठ चैनल होते हैं ।
3. त्वचा के तापमान में परिवर्तन – भय
का सम्बन्ध त्वचा के तापमान में कमी के साथ होता है जबकि क्रोध का वृद्धि के साथ (सिसरेली
और मेयर, 2013).
4. मांसपेशियों में तनाव उत्पन्न होना – एड्रेनालाईन
हार्मोन का स्त्राव संवेगात्मक चुनौतियों से उत्पन्न जरूरतों को पूरा करने के लिए मांसपेशियों
को तैयार करने में मदद करता है।
5. कनपटियों की गति में वृद्धि – कनपटि
एक ऐसा स्थान होता है जहाँ कपाल की चारों हड्डियाँ आपस में मिलती हैं। इन कनपटियों के ठीक नीचे मेनिन्जियल धमनी पाई जाती है। रक्तचाप
में वृद्धि के कारण इस धमनी की गति में भी वृद्धि हो जाती है जिसके फलस्वरूप कनपटियों
की गति में वृद्धि दिखाई देती है।
6. रोंगटे खड़े होना –विभिन्न
संवेगात्मक अवस्थाओं में मांसपेशियों में स्पंदन के कारण रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मांसपेशियों
में स्पंदन के कारण रोयें सीधे खड़े होने लगते हैं जो त्वचा के ऊपर हवा की एक पतली परत
बनाते हैं जो शरीर से ऊर्जा ह्रास को रोकने में सहायक होती है।
7. रोना – यह किसी उत्तेजना के प्रति एक प्राकृतिक संवेगात्मक प्रतिक्रिया होती है। यह स्वायत्तता
(अनुकंपी और परानुकंपी) और दैहिक प्रतिक्रिया के साथ सम्बंधित होती है (Gross et
al. 1994)।
8. पसीना आना – पसीने की ग्रंथियां (लगभग 40 लाख) शरीर के लगभग
हर हिस्से में पाई जाती हैं। संवेगात्मक उत्तेजना के फलस्वरूप शरीर का तापमान बढ़ता
है जिसे इष्टतम स्तर पर बनाए रखने की सख्त आवश्यकता होती है। उसके लिए अनुकंपी तंत्रिका
तंत्र 'Eccrine' पसीने की ग्रंथियों को सक्रिय करता है। ये ग्रंथियां वाष्पीकरण द्वारा
शरीर को ठंडा करने के लिए त्वचा के माध्यम से पानी छोड़ती हैं जिसे पसीना कहा जाता
है।
सन्दर्भ:
1. NCERT,
(2013). XI Psychology Text book.
2. Ciccarelli, S. K. & Meyer, G. E.
(2016). Psychology. Noida: Pearson India.
3. Baron, R. (1993). Psychology.
4. Gross, J. J., Fredrickson, B. L., &
Levenson, R. W. (1994). The psychophysiology of crying. Psychophysiology,
31(5), 460–468. doi:10.1111/j.1469-8986.1994.tb01049.x
5. https://www.scientificamerican.com/article/eye-opener-why-do-pupils-dialate/
6. https://www.britannica.com/science/perspiration.
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