प्रत्यक्षणात्मक
संगठन की परिभाषा
यह रेटिना द्वारा उत्पन्न विभिन्न तंत्रिका आवेगों
को व्यवस्थित और संरचित करने की मानसिक प्रक्रिया होती है। मस्तिष्क आँखों से आने वाली
विभिन्न उत्तेजनाओं को व्यवस्थित करने के लिए विभिन्न दृश्य संकेतों का उपयोग करता
है। प्रत्यक्षणात्मक संगठन की प्रक्रिया वस्तु से संबंधित पूर्ण जानकारी
न होने के बावजूद उसे
सम्पूर्णता से समझने में सहायक होती है।
परिचय
प्रत्यक्षणात्मक संगठन की अवधारणा का पहली
बार व्यवस्थित रूप से 1900 के दशक में गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन किया
गया था। उन्होंने सुझाव दिया है कि "संपूर्ण अपने अंशों के योग से अलग होता है".
गेस्टाल्ट दृष्टिकोण के अनुसार मानव स्वाभाविक रूप से विभिन्न उत्तेजनाओं को व्यवस्थित
करने और उन्हें सम्पूर्ण रूप में समझने के लिए उन्मुख होते हैं। प्रत्यक्षणात्मक संगठन
के अध्ययन की प्रक्रिया दौरान गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों ने प्रत्यक्षण के वे विभिन्न
नियम प्रस्तावित किये। इन सिद्धान्तों को हैं समूहीकरण (Grouping) के नियमों के रूप
में भी जाना जाता है। ये सिद्धान्तों बताते हैं कि कैसे और क्यों समूहीकरण की प्रक्रिया
होती है।
प्रत्यक्षणात्मक
संगठन के सिद्धान्त
1. समीपता का सिद्धांत – यह सिद्धांत बताता है कि अंतराल
या समय में पास-पास होने वाली वस्तुओं को एक समूह के रूप में प्रत्यक्षित किया जाता
है।
2. समानता का सिद्धांत – यह सिद्धांत बताता है कि जो वस्तुएं
एक दूसरे के समान हों और उनकी विशेषताएं भी समान हों तो उन्हें एक समूह के रूप में
प्रत्यक्षित किया जाता है।
3. निरंतरता का सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार जो वस्तुएं
एक निरंतर पैटर्न बनाती हैं, उन्हें एक ही समूह का हिस्सा माना जाता है तथा उन्हें
एक साथ देखा जाता है।
4. समरूपता (symmetry) का सिद्धांत – यह सिद्धांत बताता है कि सममित क्षेत्र
(Symmetrical field) को आकृति जबकि विषम क्षेत्र को पृष्ठभूमि के रूप में माना जाता
है।
5. संवरण (Closure) का सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार मानव मस्तिष्क
उद्दीपकों में पाए जाने वाले खाली स्थान को भर देने के लिए उन्मुख होता है और उद्दीपक
को टुकड़ों में देखने की बजाय वस्तु को एक संपूर्ण रूप से देखता है।
6. लघुता
(smallness)का सिद्धांत – यह
सिद्धांत बताता है कि छोटे क्षेत्रों को बड़े क्षेत्रों के मुकाबले आकृति के रूप में
देखा जाता है।
7. घेरने (surroundedness) का सिद्धांत – यह सिद्धांत बताता है कि किसी क्षेत्र
से घिरे क्षेत्रों को आकृति के रूप में प्रत्यक्षित किया जाता है और जो क्षेत्र घेरता
है उसे पृष्ठभूमि के रूप में प्रत्यक्षित किया जाता है।
8. उभय -निष्ठ (Common) क्षेत्र का सिद्धांत – यह सिद्धांत गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों
द्वारा सुझाए गए मूल सिद्धांतों में नहीं था, लेकिन बाद में 1992 में स्टीफन पामर ने
इसका प्रतिपादन किया। यह उभय निष्ठ क्षेत्र में पाए जाने वाली वस्तुओं को एक समूह के
रूप में प्रत्यक्षित करने की प्रवृति होती है (सिसरेली एंड मेयर, 2016)।
9. उभय-निष्ठ नियति (common fate) का सिद्धांत
– उभय-निष्ठ नियति का सिद्धांत कहता है कि एक ही दिशा में आगे
बढ़ने वाली वस्तुओं को एक ही समूह में प्रत्यक्षित किया जाता है।
सन्दर्भ:
1. NCERT, XI Psychology Text book.
2. Ciccarelli, S. K. & Meyer, G. E.
(2016). Psychology. Noida: Pearson India.
3. Baron, R. (1993). Psychology.
4. http://learn.sparklelabs.com/dmdesign3/
category/assignment/describe-the-gestalt-principles/
5. https://in.pinterest.com/pin/324470348137458213
/?lp=true
6. http://visual-memory.co.uk/daniel/Modules
/FM21820/visper07.html
7. https://www.toptal.com/designers/ui/gestalt-principles-of-design.
8. http://facweb.cs.depaul.edu/sgrais/gestalt_principles.htm.
9. https://naldzgraphics.net/gestalt-principles-graphic-web-design/
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