Monday, December 9, 2019

मनोविज्ञान की विधियां: प्रायोगिक


विधि: अर्थ और परिभाषा
अर्थ किसी वस्तु या लक्ष्य की प्राप्ति के  लिए अपनाई जाने वाली एक प्रक्रिया।
परिभाषाकिसी समस्या या चुनौती से निपटने के लिए अपनाई जाने वाली एक व्यवस्थित प्रक्रिया को विधि कहा जाता है।
प्रयोग क्या होता है?
          एक ऐसी वैज्ञानिक प्रक्रिया जहां स्वतंत्र चर में हेरफेर (जोड़-तोड़) किया जाता है तथा स्वतंत्र और आश्रित चर के बीच संबंध स्थापित करने या परीक्षण करने के लिए बाहरी चरों को नियंत्रित किया जाता है।
कारण घटना में परिवर्तन या हेरफेर किया जाता है।
प्रभावहेरफेर के कारण व्यवहार में परिवर्तन (NCERT)

प्रयोग के प्रमुख घटक
           चर एक प्रयोग के प्रमुख घटक होते हैं जहां एक शोधकर्ता दो या दो से अधिक चरों के बीच कारण-प्रभाव  संबंध स्थापित करने की कोशिश करता है।
चरकुछ भी (जिसके गुण) जिसमे परिवर्तन सम्भव हो या जिनके मूल्य भिन्न हों और उन्हें मापा जा सके उदाहरण के लिए बुद्धि, अधिगम, प्रेरणा आदि।
प्रमुख प्रकार के चर
           चर विभिन्न प्रकार के होते हैं जिनमें से कुछ नीचे वर्णित हैं: -
(i)       स्वतंत्र चर  ऐसे चर जो आश्रित चर में कुछ सार्थक प्रभाव / परिवर्तन का कारण बनते हैं।
(ii)      आश्रित चरवो चर जो स्वतंत्र चर से प्रभावित होते हैं।
जैसे - एक शोध समस्या लीजिएक्या बुद्धि का स्तर शैक्षणिक उपलब्धि को प्रभावित करता
है?
इस मामले में
स्वतंत्र चर  बुद्धि
आश्रित चरशैक्षणिक उपलब्धि
(iii)     बाहरी चरऐसे चर अनुसंधान में जिनका अध्ययन नहीं किया जा रहा हो लेकिन वो परिणाम को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हों। इन चरों को 'संभाव्यय कारण' भी कहा जाता है।
जैसे - "स्मृति व्यक्ति की शैक्षणिक उपलब्धियों को  सार्थक रूप से प्रभावित करती           है" यहाँ, 'बुद्धि' एक बाहरी चर है जो शोध परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
(iv)     परस्पर (Confounding) चरऐसे चर जो स्वतंत्र और आश्रित चरों को प्रभावित करते हैं और अप्रत्याशित परिणाम उत्पन्न करते हैं।
जैसे - शोध कथन "अच्छे अवसर अच्छी शैक्षणिक उपलब्धियाँ सुनिश्चित करते हैं"
यहाँ, प्रयोज्य की ओर से 'कड़ी मेहनत' अवसरों की उपलब्धता (IV), शैक्षणिक उपलब्धियों (DV) और परिणामों को प्रभावित कर सकती है।
(v)      मध्यस्थ / मध्यस्थता चरअनदेखे चर जो IV के बजाय DV में परिवर्तन का कारण बनते हैं।
जैसे - शोध कथन "प्रकाश की तीव्रता शैक्षणिक ग्रेड में सुधार करती है"
यहाँ, वास्तव में शैक्षणिक  ग्रेडबुद्धि’ (मध्यस्थता चर) से भी प्रभावित हो सकते हैं और शोधकर्ता अन्यथा सोचते हैं।
(vi)     जैविक चरप्रयोग के खातिर समूह बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली जैविक विशेषताएं को जैविक चर कहा जाता है।
जैसे - शोध कथन "लड़कियों में उच्च स्तर की तदनुभूति पाई जाती है"
यहाँ परलिंग (लड़कियां) जैविक चर है।
(vii)    डमी (Dummy) चरएक द्विअर्थी चर जिसके केवल दो ही मान या मूल्य हो सकते हैं।
जैसे, आवासीय स्थिति (शहरी/ग्रामीण), जीवन के प्रति दृष्टिकोण (आशावादी / निराशावादी) इत्यादि।
एक वैज्ञानिक प्रयोग की न्यूनतम आवश्यकताएं
           एक प्रयोग को वैज्ञानिक तभी कहा जाता है जब वह निम्नलिखित शर्तों को पूरा करता है:-
(i)       बाहरी चरों का नियंत्रण।
(ii)      प्रतिदर्श (Sample) और समूह गठन में यादृच्छिकता।
(iii)     समरूप (Homogeneous) प्रतिदर्श जो उस आबादी का प्रतिनिधित्व करता हो जिस पर परीक्षण किया जाना है।
(iv)     प्रायोगिक-प्रत्याशा प्रभाव  के कारण उपजे पूर्वाग्रहों का नियंत्रण।
(v)      प्रायोगिक डिजाइन ऐसा हो जिसका पूर्व-परीक्षण (पायलट अध्ययन के माध्यम से) किया जा चूका हो।
प्रयोग की संरचना
एक प्रयोग में न्यूनतम एक 'प्रयोगात्मक समूह' और एक 'नियंत्रण समूह' होना चाहिए।
(i)       प्रयोगात्मक समूहवह समूह जिसमें स्वतंत्र चरों में हेरफेर (Manipulation) किया जाता है।
(ii)      नियंत्रण समूह  यह एक तुलनात्मक समूह होता है जिसमे प्रयोगात्मक समूह वाली सारी प्रक्रियाएं होती हैं सिवाय स्वतंत्र चरों में हेरफेर के।
प्रयोग में इस्तेमाल की जाने वाली नियंत्रण तकनीकें
           आश्रित चर पर पड़ने वाले बाहरी चरों के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है। ये तकनीकें आश्रित चर पर पड़ने वाले स्वतंत्र चर के प्रभाव के अलावा अन्य प्रभावों को हटाने या कम करने में मदद करती हैं दूसरे शब्दों में यह स्वतंत्र चर के प्रभाव की शुद्धता में सुधार करती हैं।
(i)       बाहरी चरों का निष्कासन या पृथककरण।
(ii)      बाहरी चरों को स्थिर रखना (जब पृथककरण संभव हो)
(iii)     मिलान करना (matching) {विशेष रूप से जैविक (बुद्धि) और पृष्ठभूमि चरों (ग्रामीण/शहरी या सामाजिक-आर्थिक-स्थिति) के लिए}
(iv)     काउंटर संतुलन (अनुक्रम प्रभाव को कम करने के लिए)
(v)      यादृच्छिकीकरण।

प्रयोग की सीमाएं
           वैज्ञानिक पद्धति का पालन करने के बावजूद, एक प्रयोग विभिन्न सीमाओं से ग्रस्त हो सकता है।
1.       अधिकांश प्रयोग प्रयोगशाला में नियंत्रित परिस्थितियों में किए जाते हैं इसलिए ऐसे प्रयोगों के परिणाम को सामान्य रूप से स्वीकार करना मुश्किल होता है। उनमे बाहरी वैधता की कमी होती है।
2.       प्रयोग की प्रकृति के कारण कुछ समस्याओं का अध्ययन प्रयोगशाला में करना संभव नहीं होता है, जैसे - ‘बाढ़ का संज्ञानात्मक क्षमताओं पर तत्काल प्रभाव
3.       कुछ स्थितियों में चरों का नियंत्रण और उनमें हेरफेर संभव नहीं होता है खासकर पोस्ट हॉक अध्ययनों में (PTSD संबंधित अध्ययन)
4.       वास्तव में सभी चरों को नियंत्रित करना लगभग असंभव होता है।
5.       हालाँकि यह कारण - प्रभाव  संबंध को स्थापित तो करता है लेकिन ऐसा  क्यों हुआ यह समझाने में विफल रहता है।

संदर्भ:
1.       NCERT, Class XI Psychology Text book.

******

No comments:

Post a Comment