Saturday, December 14, 2019

संवेगों की प्रकृति


अर्थ
            Emotion (संवेग) शब्द फ्रेंच भाषा के ‘emouvoir’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है "हलचल करना"। आमतौर पर संवेग शब्द का प्रयोग ‘मनोदशा’ और ‘भावनाओं’ को दर्शाने के लिए भी किया जाता है जबकि इन तीनों में महत्वपूर्ण अंतर होता है।

मनोदशा – संवेग की तुलना में मनोदशा कम तीव्र लेकिन लंबी अवधि की प्रभावशाली स्थिति होती है।

भावनाएं – संवेगों में होने वाले सुख और दर्द का अनुभव और सम्बंधित शारीरिक परिवर्तन। वास्तव में संवेगों में ये दोनों घटनाएं शामिल होती हैं।

परिभाषा
            “शारीरिक उत्तेजना, भावनाओं, विचारों और व्यवहारों एवं व्यक्तिगत रूप से महत्वपूर्ण स्थिति के प्रतिक्रिया स्वरूप शरीर में परिवर्तनों का एक जटिल पैटर्न संवेग कहलाते हैं(NCERT, 2013)।
            “ऐसी प्रतिक्रियाएं जो व्यक्तिपरक संज्ञानात्मक स्थितियों, शारीरिक प्रतिक्रियाओं और अभिव्यंजक व्यवहार से मिलकर होती हैं को संवेग कहते हैं” (Baron, 1993).      “चेतना का वो भावनात्मक पहलू जो एक निश्चित शारीरिक उत्तेजना और भावनाओं के आंतरिक जागरूकता का द्योतक होता है, एक विशिष्ट व्यवहार जो संवेगों को बाहरी दुनिया के समक्ष प्रकट करता है” (Ciccarelli and Meyer, 2016)।

परिचय
             संवेग मानव व्यवहार का 'संज्ञानात्मक आभूषण' होते हैं। संवेग, व्यवहार को एक उपयुक्त अर्थ प्रदान करते हैं जो शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से प्रकट होता है। संवेगों मूलरूप से जीव में अनुकूली व्यवहारों को प्रेरित करने की भूमिका निभाते थे जो अतीत में जीवित रहने, प्रजनन और परिजनों के चयन के माध्यम से जीन को पारित करने में योगदान देते थे (विकिपीडिया)। संवेग और अनुभव (एक व्यक्तिपरक आत्मनिष्ठ स्थिति) के बीच घनिष्ठ संबंध होता है।  संवेग तय करते हैं कि अनुभव सकारात्मक या नकारात्मक  होगा। संक्षेप में " संवेग मनो-सामाजिक-जैविक पर्यावरण के संदर्भ में बाहरी या आंतरिक उत्तेजनाओं के प्रति विशिष्ट व्यक्तिपरक प्रतिक्रियाएं होते हैं"।

प्रकृति (स्वभाव )
             संवेग विविध प्रकार की अवस्थाएं होती हैं जो विभिन्न मनो-जैव-सामाजिक घटकों के संयुक्त और समकालिक कार्यों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं। संवेगों की विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न दृष्टिकोणों से व्याख्या की गई है जिनमें तीन चीजें स्पस्ट रूप से पाई जाती हैं।
(i)         संवेगों की फिजियोलॉजी (आंतरिक शारीरिक परिवर्तन)
(ii)        संवेगों की अभिव्यक्ति (बाहरी शारीरिक परिवर्तन)
(iii)       संवेगों को अनुभव करना (संज्ञानात्मक परिवर्तन)
           
            संवेग गतिशील घटनाएं होती हैं जो विभिन्न तीव्रता के साथ प्रकट होती हैं।  निम्नलिखित व्यक्तिगत और स्थितिजन्य कारक संवेगों की अभिव्यक्ति को सार्थक रूप से प्रभावित करते हैं।
व्यक्तिगत कारक – लिंग, व्यक्तित्व प्रकार, मनोविकृति, सामाजिक भूमिका आदि।
स्थितिजन्य कारक – दूसरों की उपस्थिति, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियाँ आदि।
             संसार में कम से कम छह बुनियादी संवेगों को अनुभव किया जाता है और आसानी से पहचाना जाता है। ये संवेग होते हैं -
(i)         गुस्सा,
(ii)        घृणा,
(iii)       डर,
(iv)       ख़ुशी,
(v)        उदासी तथा
(vi)       आश्चर्य।
            शोध बताते हैं कि महिलाएं क्रोध को छोड़कर सभी संवेगों का अनुभव पुरुषों की तुलना में अधिक तीव्रता से करती हैं। पुरुष क्रोध को उच्च तीव्रता और आवृत्ति के साथ अनुभव करते हैं। महिलाएं एवं पुरुषों में संवेगों की अभिव्यक्ति और अनुभव में अंतर सामाजिक भूमिकाओं में अंतर के कारण होता है (प्रतिस्पर्धा
बनाम संबद्धता और देखभाल).

संवेगों के शारीरिक आधार   
             जब हम संवेगों का अनुभव करते हैं तो शारीरिक परिवर्तनों की एक धारा जैसे हृदय की दर में वृद्धि, सांस लेने की दर में वृद्धि, पसीना आना, अंगों का कांपना आदि शरीर के अंदर बह चलती है। संवेगों का अनुभव विभिन्न न्यूरोफिज़ियोलॉजिकल गतिविधियों का परिणाम होता है जिसमें चेतक (थैलेमस), अध:श्चेतक (हाइपोथैलेमस), उप वल्कुटीय तंत्र (लिम्बिक सिस्टम) और वल्कुट (सेरेब्रल कॉर्टेक्स) मुख्य भूमिका निभाते हैं (NCERT, 2013)।
(i)       चेतक (Thalamus) – संवेदी तंत्रिकाओं का प्रसारण केंद्र कहा जाता है। इसका उत्तेजन डर ​​और दुश्चिंता पैदा करता है।
(ii)      अध:श्चेतक (Hypothalamus) – इसे संवेगों के नियमन का प्राथमिक केंद्र कहा जाता है।
(iii)     उप वल्कुटीय तंत्र (Limbic System) – थैलेमस और हाइपोथैलेमस के सहयोग से यह संवेगों के नियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(iv)     प्रमस्तिष्कखंड (Amygdala) – यह संवेगात्मक नियंत्रण और संवेगों से सम्बंधित स्मृति के विन्यास (formation) के लिए जिम्मेदार होता है।
(v)      वल्कुट (Cerebral Cortex) – बायां अग्र वल्कुट सकारात्मक भावनाओं से सम्बंधित होता है जबकि दायां अग्र वल्कुट नकारात्मक भावनाओं से सम्बंधित होता है।

            संवेगों की स्थिति में ‘अनुकंपी तंत्रिकातंत्रशारीरिक परिवर्तनों को त्वरित करता है और ‘परानुकंपी तंत्रिकातंत्र इन्हे सामान्य स्थिति में वापस लाता है। संवेगों का अनुभव करने के बाद उनकी लेबलिंग होती है। लेबलिंग का अर्थ है संस्कृति के संदर्भ में एक व्यक्ति (चेहरे) की विशेष अभिव्यक्ति को एक नाम देना। इसे संवेगों के संज्ञानात्मक पहलू के रूप में जाना जाता है क्योंकि इसमें स्मृति से प्रत्याह्वान और इसी तरह के पिछले अनुभव के साथ उनका मेल करना शामिल होता है।

सन्दर्भ:
1.         NCERT,  (2013). XI Psychology Text book.
2.         Ciccarelli, S. K. & Meyer, G. E. (2016). Psychology. Noida: Pearson India.
3.         Baron, R. (1993). Psychology.
4.         Schacter, D.L., Gilbert, D.T., Wegner, D.M., & Hood, B.M. (2011). Psychology (European ed.). Basingstoke: Palgrave Macmillan.
5.         Pinker, Steven (1997), How the Mind Works, New York: W. W. Norton & Company, p. 342.

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