संक्षिप्त परिचय
संवेगात्मक अनुभव और उनकी अभिव्यक्ति मानव व्यवहार
के आकर्षक पहलू होते हैं। बिना संवेगों के जीवन ऐसे स्मार्ट फोन की तरह होता है जिसमे
इंटरनेट कनेक्शन न हो। संवेग व्यक्तिपरक संज्ञानात्मक अवस्थाओं, शारीरिक उत्तेजना और
अभिव्यंजक (expressive) व्यवहार (बैरन, 1993) से संबंधित प्रतिक्रियाएं होती हैं। विलियम
जेम्स (1884) और कार्ल लैंज (1885) के विचार संवेगों के प्रति शुरुआती दृष्टिकोण से
से मेल नहीं खाते थे।
प्रारंभिक दृष्टिकोण
सामान्यतः यह माना जाता है कि संवेगात्मक उद्दीपक
या स्थिति का सामना करने पर पहले हम संवेगों का अनुभव करते हैं और फिर हमारे अन्दर
शारीरिक परिवर्तन होते हैं। उदाहरण के लिए यदि हम कोई कोबरा दिखाई देता है, तो पहले
हमें डर का अनुभव होता है, फिर हम उससे बचने के लिए भागते हैं या उससे लड़ने का फैसला
करते हैं, जैसा नीचे के चित्र में दिखाया गया है।
इन दो सज्जनों ने इस धारणा को चुनौती दी और एक नया
सिद्धांत दिया जिसे सामान्यतः जेम्स-लैंज संवेगों का सिद्धांत के नाम से जाना जाता
है।
जेम्स-लैंज सिद्धांत
यह सिद्धांत बताता है कि वातावरण से उत्पन्न होने
वाले उद्दीपक आंतरिक अंगों में परिवर्तन (शारीरिक उत्तेजना) को जन्म देते हैं जिसके
कारण मांसपेशियों में संचलन (movement) की शुरुआत होती है। उन्होंने तर्क दिया कि संवेगात्मक
व्यवहार संवेगात्मक अनुभव से पहले होता है यानी शारीरिक उत्तेजना के कारण ही संवेगों
पर लेबल लगकर उनकी पहचान होती है। दूसरे शब्दों में, "मैं उसे बेहद प्यार करता
हूँ क्योंकि जब मैं उनसे मिलती/मिलता हूं तो मेरा दिल तेजी से धड़कने लगता है
"। यह सिद्धांत बताता है कि व्यक्तिपरक संवेगात्मक अनुभव
वास्तव में शरीर में आंतरिक परिवर्तनों का परिणाम होते हैं। जेम्स ने कहा, "हम
खेद महसूस करते हैं क्योंकि हम रोते हैं, गुस्सा करते हैं क्योंकि हम प्रहार करते हैं,
और डरते हैं क्योंकि हम कांपते हैं" (बैरन, 1993)। इस सिद्धांत का चेहरे-प्रतिक्रिया-परिकल्पना
(Facial Feedback Hypothesis) पर किये गए अध्ययन के परिणामों ने समर्थन किया है।
चार्ल्स डार्विन (1898) ने अपनी पुस्तक
"द एक्सप्रेशन ऑफ इमोशंस इन मैन एंड एनिमल्स" में चेहरे-प्रतिक्रिया-परिकल्पना
की चर्चा की है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि किसी संवेग की अभिव्यक्ति उस संवेग के
सांवेगिक अनुभव को बढ़ा देती है, जबकि इनका दमन इनके अनुभव को कमजोर कर देता है (iresearchnet.com)।
यह बताता है कि चेहरे
के भाव संवेगात्मक अनुभव को प्रभावित करते हैं। दूसरे शब्दों में, चेहरे की अभिव्यक्तियाँ
मस्तिष्क को व्यक्त किये गए संवेग सम्बन्धी प्रतिपुष्टि (feedback) के बारे में सूचना
प्रदान करती हैं जो सांवेगिक अनुभव को और तीव्र कर देता है(सिसरेली एवं मेयर,
2016)। उदाहरण के लिए यदि हम मुस्कुराते हैं तो हमें ख़ुशी का अनुभव होगा, अगर हम त्योरी
चढ़ाते हैं (Frowning) तो हमें आश्चर्य का अनुभव होगा है, और इसी।
प्रमुख प्रभाव
विशेष घटना या उद्दीपक विशेष रूप से शारीरिक परिवर्तनों
को क्रियाशील करते हैं और इन परिवर्तनों का व्यक्ति प्रत्यक्षण करते हैं जिसके फलस्वरूप
संवेगों का अनुभव होता है (NCERT, XI).
संदर्भ:
1. NCERT,
(2013). XI Psychology Text book.
2. Ciccarelli, S. K. & Meyer, G. E.
(2016). Psychology. Noida: Pearson India.
3. Baron, R. (1993). Psychology.
4. https://psychology.iresearchnet.com/social-psychology/emotions/facial-
feedback-hypothesis/.
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