संवेगों
के संज्ञानात्मक आधार
जेम्स-लैंज और कैनन-बार्ड के सिद्धांत
ने संवेगों की व्याख्या शारीरिक परिवर्तनों (आंतरिक और बाहरी) के दृष्टिकोण से की है।
जेम्स-लैंज ने संवेगों को कारण-प्रभाव संबंध के रूप में बताया है जबकि कैनन-बार्ड ने
संवेगों को थैलेमस के साथ-साथ जैविक आधारित प्रतिक्रियाओं की मध्यस्थता के रूप में
बताया है। इन दोनों सिद्धान्तों ने संवेगात्मक अनुभव और संवेगात्मक व्यवहार को समझने
में संज्ञानात्मक
तथा मानसिक प्रक्रियाओं
की भूमिका को काफी हद तक नजरअंदाज किया गया है। संवेगात्मक अनुभवों में अंतर की व्याख्या
करने के लिए दोनों सिद्धांत पर्याप्त नहीं थे। हम समान शारीरिक परिवर्तनों के बावजूद
क्रोध और भय, आश्चर्य और उदासी (बैरन, 1993) के बीच अंतर कैसे करते हैं? संवेगों की
व्याख्या और फलस्वरूप उन्हें लेबल करना एक संज्ञानात्मक गतिविधि होती है जो जेम्स-लैंज
और कैनन-बार्ड सिद्धांतों हमें देखने को नहीं मिलती है।
इन सवालों का जवाब एक नए सिद्धांत द्वारा
दिया गया था, जिसे स्टैनली स्कैक्टर और जेरोम सिंगर (1962) द्वारा प्रस्तावित किया
गया था। यह सिद्धांत संज्ञानात्मक Arousal सिद्धांत या संवेगों के दो कारक सिद्धांत
के रूप में जाना जाता है।
इस सिद्धांत के अनुसार संवेगों में दो
घटक होते हैं अर्थात् शारीरिक उत्तेजना और संज्ञानात्मक लेबल। संवेगात्मक अनुभव आसपास
के वातावरण से उपजे संकेतों के संदर्भ में वर्तमान मानसिक स्थिति की सचेत व्याख्या
का परिणाम होते हैं। शारीरिक उत्तेजना और संज्ञानात्मक लेबलिंग संवेगात्मक अनुभव से
पहले लेकिन एक ही समय में होते हैं।
हम जानते हैं कि जब दिल तेजी से धड़कता
है तो उस स्थिति हम उत्तेजित, भयभीत या क्रोधित होते हैं। यह एक शारीरिक उत्तेजित अवस्था
होती है। मस्तिष्क बाहरी पर्यावरण से निकलने वाले संकेतों को ध्यान में रखते हुए इस
स्थिति की व्याख्या करता है। उन्होंने सुझाव दिया है कि संवेगात्मक अनुभव के लिए उत्तेजित
अवस्था की सचेत व्याख्या की जरूरत होती है।
उदाहरण
अगर एक व्यक्ति गुर्राते बाघ के सामने
आता है तो उसमे शारीरिक उत्तेजना (बढ़ी हुई धड़कन, श्वसन दर, में वृद्धि, पुतलियों का
फैलना आदि) के साथ-साथ तुरंत यह विचार आता है कि यह डरावना होना चाहिए। इसके बाद व्यक्तिगत
रूप से संवेग का अनुभव होता है (सिसरेली और मेयर, 2016)।
एक
प्रयोग
1962 में स्कैक्टर और सिंगर ने यह साबित करने के
लिए एक प्रयोग किया कि संवेग, शारीरिक उत्तेजना और उस उत्तेजना (संज्ञानात्मक व्याख्या)
की लेबलिंग द्वारा निर्धारित होते हैं। पुरुष प्रतिभागियों को बताया गया कि उन्हें
एक नए विटामिन सुप्रोक्सिन के बारे में एक प्रश्नावली के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया
देनी है। इसके साथ उन्हें एक एपिनेफ्रिन (एड्रेनालाईन) का इंजेक्शन लगाया गया। यह एक
हार्मोन होता है जो व्यक्ति को शारीरिक रूप से उत्तेजित (आंतरिक शारीरिक परिवर्तन)
कर देता है। इंजेक्शन के पश्चात प्रतिभागियों को दो समूहों में विभाजित किया गया और
प्रश्नावली भरने के लिए अलग-अलग कमरों में भेजा गया।
एक कमरे में शोधकर्ता के एक विश्वस्त ने
प्रतिभागी के रूप में गुस्से से भरा व्यवहार किया और कमरे से बाहर निकल गया, जबकि दूसरे
कमरे में अलग-अलग विश्वस्तों ने खुशी से परिपूर्ण व्यवहार किया। इसके बाद प्रतिभागियों
को अपने-अपने संवेगों का वर्णन करने के लिए कहा गया। जैसा कि अंदाजा लगाया गया था कि
जिन प्रतिभागियों ने गुस्से में व्यवहार किया था, उन्होंने अपनी शारीरिक उत्तेजना को
क्रोध के रूप में लेबल किया और जिस कमरे में खुशी से परिपूर्ण व्यवहार किया गया था
उस कमरे के प्रतिभागियों ने एपिनेफ्रीन के बावजूद अपनी शारीरिक उत्तेजना को खुशी के
रूप में लेबल किया। इस प्रयोग ने यह साबित कर दिया की सांवेगिक अनुभव से पहले व्यक्ति
अपने अंदर हुए शारीरिक परिवर्तनों का संज्ञानात्मक नामकरण करता है।
संदर्भ:
1. NCERT,
(2013). XI Psychology Text book.
2. Ciccarelli, S. K. & Meyer, G. E.
(2016). Psychology. Noida: Pearson India.
3. Baron, R. (1993). Psychology.
4. https://explorable.com/cannon-bard-theory-of-emotion
5. https://www.youtube.com/watch?v=GMRWrrsoM-g.
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