प्रेरकों के प्रकार
मुख्य रूप से प्रेरक दो प्रकार के होते
हैं: -
(i) जैविक और
(ii) मनोवैज्ञानिक
दोनों प्रकार के प्रेरक एक-दूसरे पर निर्भर
होते हैं। इसका अर्थ ये है कि मनोवैज्ञानिक और जैविक दोनों प्रकार के कारक दोनों में
से किसी भी प्रकार के प्रेरक की शुरुआत कर सकते हैं। इसलिए कोई भी प्रेरक विशुद्ध रूप
से जैविक, मनोवैज्ञानिक या मनोसामाजिक नहीं होते हैं।
जैविक प्रेरक
जैविक प्रेरकों को शारीरिक प्रेरकों के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि वे शारीरिक
प्रणालियों पर आधारित होते हैं। हार्मोन, न्यूरोट्रांसमीटर, मस्तिष्क की संरचना इत्यादि
अभिप्रेरणा के जैविक कारण होते हैं। ये प्रेरक शारीरिक समस्थिति (होमोस्टैसिस) [एक
दूसरे पर आश्रित तत्वों जो विशेष रूप से शारीरिक प्रक्रियाओं द्वारा अनुरक्षित होते
हैं, के बीच एक अपेक्षाकृत स्थिर संतुलन की प्रवृत्ति]में असंतुलन का परिणाम होते हैं।
व्यवहार के लिए मुख्य रूप से जैविक प्रेरकों को जिम्मेदार माना जाता है। यह दृष्टिकोण
व्यवहार की आवश्यकताओं के संदर्भ में व्याख्या करता है जिसके कारण अंतर्नोद उत्पन्न
होता है, फिर जीव लक्ष्य निर्दिष्ट व्यवहार करता है जिसके परिणामस्वरूप अंतर्नोद में
कमी आती है। अभिप्रेरणा की सबसे प्रारंभिक व्याख्या मूल प्रवृति की अवधारणा पर निर्भर
करती थी। मूल-प्रवृति (instincts) व्यवहार के जन्मजात पैटर्न होते हैं जो सीखने के
बजाय जैविक रूप से निर्धारित होते हैं उदाहरण के लिए जिज्ञासा, उड़ान, माता-पिता की
देखभाल आदि।
मूल-प्रवृति में एक
आवेग निहित होता है जो व्यक्ति को कुछ करने के लिए प्रेरित करता है जिसके परिणामस्वरूप
उस आवेग की तीव्रता में कमी आती है। किसी भी जीव में तीन निम्नलिखित जैविक प्रेरक पाये
जाते हैं: -
(i) भूख,
(ii) प्यास,
तथा
(iii) काम
भूख
भूख एक शारीरिक आवश्यकता होती है जो विभिन्न बाहरी
और आंतरिक कारकों के कारण उत्पन्न होती है जैसे: -
(i) पेट के संकुचन, संतुष्टि
(ii) रक्त प्रवाह में ग्लूकोज स्तर की कम सांद्रता
(concentration),
(iii) प्रोटीन के स्तर में कमी,
(iv) शरीर में संग्रहीत वसा के स्तर में कमी,
(v) अग्न्याशय द्वारा इंसुलिन और ग्लूकाजन का स्राव,
(vi) जिगर (liver) के चयापचय कार्य,
(vii) समय (भोजन की परंपरा),
(viii) दृष्टि, गंध और स्वाद के सन्दर्भ में भोजन का
आकर्षक होना,
(ix) सांस्कृतिक कारक,
(x) तनाव, और
(xi) लिंग।
भूख लगने की शारीरिक प्रणाली
अनुसंधान बताते हैं कि बाहरी संकेतों के
साथ मिलकर हाइपोथैलेमस, यकृत और शरीर के अन्य अंग भूख और तृप्ति प्रणालियों को नियंत्रित
करते हैं। यकृत (liver) के चयापचय कार्यों में परिवर्तन से भूख का अहसास होता है। जिगर
(liver) हाइपोथैलेमस को संकेत भेजता है। हाइपोथेलेमस के दो क्षेत्र भूख लगने व नियंत्रण
के लिए जिम्मेदार होते हैं – पार्श्व हाइपोथैलेमस (Lateral) और वेंट्रो-मेडियल हाइपोथैलेमस
(VMH)। पार्श्व हाइपोथैलेमस को भूख का उत्तेजक क्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र को
उत्तेजित करने पर जीव को भूख का एहसास होता है और अगर इस क्षेत्र को क्षतिग्रस्त कर
दिया जाये तो जीव भूख से मर जायेगा लेकिन भोजन नहीं करेगा। VMH (भूख नियंत्रण क्षेत्र)
हाइपोथैलेमस के मध्य में स्थित होता है जो भूख की संतुष्टि का केंद्र माना जाता है।
प्यास
मैं प्यासी/प्यासा हूँ!!! मुझे ऐसा क्यों
लगता है? क्या पानी को देखकर प्यास लगी है या मुंह में पानी लाने वाला जूस को देखकर?
नहीं नहीं, मेरे शरीर से उत्पन्न प्रेरक प्यास की शुरुआत करते हैं। कोशिकाओं में पानी
की कमी और रक्त की आद्यतन मात्रा (volume) का घट जाना प्यास के लिए जिम्मेदार होता
है। शारीरिक द्रव्यों के माध्यम से शरीर से पानी का स्त्राव होने पर पानी कोशिकाओं
के आंतरिक भाग को छोड़ने लगता है। जिसकी सूचना हाइपोथैलेमसतक पहुँचती है। हाइपोथैलेमस
के आंतरिक भाग में कुछ तंत्रिका कोशिकाएँ पाई जाती हैं जिन्हें ‘ऑस्मोरसेप्टर्स’ कहा जाता है जो कोशिकाओं में निर्जलीकरण
(dehydration) होने पर एक विशिष्ट प्रकार का तंत्रिका आवेग उत्पन्न करते हैं। ये तंत्रिका
आवेग प्यास और कुछ पीने के लिए एक संकेत के रूप में कार्य करते हैं; जब प्यास को 'ऑस्मोरसेप्टर्स'
से पानी की कमी के कारण लगने वाली प्यास को कोशीय-निर्जलीकरण (Cellular
dehydration) प्यास कहा जाता है। लेकिन वो कौन सा तंत्र है जो प्यास बुझने पर जीव को
पानी पीने से रोकता है? कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि जो तंत्र पानी के सेवन के
लिए जिम्मेदार होता है वही तंत्र पानी का सेवन रोकने के लिए भी जिम्मेदार होता है।
दूसरों ने बताया है कि पानी के सेवन के कारण पेट से उत्पन्न उद्दीपकों की पानी का सेवन
रोकने में कुछ ना कुछ भूमिका जरूर होती है।
काम
यह जानवरों और इंसानों में पाई जाने वाली शक्तिशाली
जैविक अन्तर्नोदों (Drives) में से एक होती है। यह प्रेरक भूख और प्यास (जैविक प्रेरकों)
से निम्नलिखित तरीकों से भिन्न होता है:
(i) जीवित रहने के लिए यह आवश्यक नहीं होता है,
(ii) समस्थिति (संतुलन को बहाल करने के लिए जीव
का प्रयास) यौन प्रक्रिया का उद्देश्य नहीं होता है;
(iii) काम प्रेरक उम्र के साथ विकसित होता है, आदि।
यौन गतिविधि में संलग्न होने की अभिप्रेरणा
आंतरिक और बाहरी कारकों द्वारा विनियमित (Regulate) होती है।
(i) आंतरिक - मानव में, काम
अभिप्रेरणा को जैविक रूप से नियंत्रित किया जाता है। शरीर विज्ञानी (फिजियोलॉजिस्ट)
सुझाव देते हैं कि यौन इच्छा की तीव्रता सेक्स हार्मोन पर निर्भर करती है। अध्ययन से
पता चलता है कि गोनाड्स, {पुरुषों में वृषण (testes) और महिलाओं में अंडाशय
(ovaries)} अधिवृक्क (Adrenal) और पिट्यूटरी ग्रंथियों द्वारा स्रावित सेक्स हार्मोन
यौन अभिप्रेरणा के लिए जिम्मेदार होते हैं।
(ii) बाह्य - मानव में यौन अन्तर्नोद
मुख्य रूप से बाहरी उद्दीपकों जैसे कामुक चित्र आदि से उत्पन्न होता है और इसकी अभिव्यक्ति
सांस्कृतिक शिक्षा पर निर्भर करती है।
इन
तीन प्रेरकों के अलावा कुछ और प्रेरक होते हैं जो नीचे वर्णित हैं
(i) ऑक्सीजन ग्रहण की आवश्यकता,
(ii) नींद की आवश्यकता,
(iii) इष्टतम शारीरिक तापमान बनाए रखने की आवश्यकता,
(iv) आनंद की चाह और दर्द से परिहार,
(v) शरीर से अपशिष्ट (मलमूत्र उत्सर्जन प्रेरक)
आदि उन्मूलन की आवश्यकता है
संदर्भ:
1. NCERT,
(2013). XI Psychology Text book.
2. Ciccarelli, S. K. & Meyer, G. E.
(2016). Psychology. Noida: Pearson India.
3. Baron, R. (1993). Psychology.
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ही माहिती मराठीत पाठवा.
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