परिभाषा
गहराई
प्रत्यक्षण – वस्तुओं
को त्रिआयामो में देखने की प्रक्रिया या क्षमता को गहराई प्रत्यक्षण कहा जाता है। यह
मानसिक प्रक्रिया है जो अंतरिक्ष में वस्तुओं के बीच गहराई और दूरी की अवधारणात्मक
अवधारणा का निर्माण करती है।
स्थान
- स्थान एक ऐसा दृश्य-क्षेत्र
या कोई सतह होती है जिसमें चीजें मौजूद रहती हैं, स्थानांतरित की जा सकती हैं या उनको वहां पर रखा जा सकता है ।
परिचय
प्रत्यक्षण को दूरी-प्रत्यक्षण (Distance
perception) भी कहा जाता है। गहराई के प्रत्यक्षण की क्षमता अधर (Space) में पाई जाने
वाली वस्तुओं के बीच की दूरी को निर्धारित करने में सहायक होती है। स्पेस एक तीन आयामी
सतह या धरातल होता है। रेटिना पर बनने वाली वस्तुओं की छविदो आयामी और सपाट होती है।
लेकिन हमारा मस्तिष्क वस्तुओं का त्रिआयामी
रूप में प्रत्यक्षण करता है। यह दो प्रकार
के संकेतों (cues) यानी एक नेत्रिय संकेत (monocular cues) और द्विनेत्रीय संकेतों
(Binocular cues) के कारण संभव हो पाता है।
संकेत
1. एक नेत्रिय संकेत – मोनोकुलर का अर्थ होता है, 'एक आंख
से'। गहराई और दूरी को समझने के लिए एक आंख द्वारा मुहैया कराए गए संकेत। उन्हें 'दृष्टांत-संबंधी
गहराई संकेत' (Pictorial depth cues) भी कहा जाता है। वस्तुओं को जब एक आंख से देखा
जाता है तब ये संकेत प्रभावी होते हैं। कलाकार अक्सर दो आयामी पेंटिंग में दूरी एवं
गहराई दिखाने के लिए इन संकेतों का करते हैं। कुछ एक नेत्रिय संकेत नीचे वर्णित किए
गए हैं: -
(i) सापेक्षिक आकार – वस्तु जब दूर होती है तब वह छोटी
दिखाई देती है और करीब होने पर बड़ी दिखाई देती है। यह संकेत दृष्टिपटल (रेटिना) पर
बनने वाले बिम्ब के आकार के कारण उत्पन्न होता है ।
(ii) रैखिक परिप्रेक्ष्य – यह वह स्थिति होती है जिसमें दूर
की वस्तुएं नजदीक की वस्तुओं की तुलना में एक दूसरे के नजदीक दिखाई देती हैं जैसे रेल
की पटरियां, जैसे जैसे दूरी बढ़ती जाती है एक दुसरे से मिलती दिखाई देती हैं।
(iii) इन्टरपोज़िशन या अतिव्याप्ति (Overlapping) – ये संकेत तब उत्पन्न होते हैं जब
एक वस्तु किसी दूसरी वस्तु को ओवरलैप करके उसको ढँक लेती है। ऐसी स्थिति में ओवरलैपिंग
वस्तु को ओवरलैप्ड वस्तु की तुलना में नजदीक देखा जाता है।
(iv) आकाशीय या वायुमंडलीय परिप्रेक्ष्य – दूर की वस्तुएं वायुमंडल में उपस्थिति
धूल और नमी जैसे सूक्ष्म कणों के कारण धुंधली दिखाई देती हैं।
(v) प्रदीप्ति एवं छाया – किसी वस्तु का चमकता हुआ भाग नजदीक
दिखाई देता है जबकि जिस भाग पर छाया पड़ रही होती है, वह दूर दिखाई देता है। चमक और
छाया किसी वस्तु की दूरी और गहराई का आभास कराती हैं।
(vi) सापेक्षिक ऊंचाई - एक ही आकार का होने के बावजूद दूर
की वस्तुएं नजदीक दिखाई देती हैं और नजदीक की वस्तुएं बड़ी दिखाई देती हैं।
(vii) बनावट प्रवणता (Gradient) – दूरी बढ़ने के साथ-साथ सतह की बनावट
चिकनी दिखती जाती है। एक दृश्य क्षेत्र का सघन भाग दूर दिखाई देता है और कम घनत्व वाला
भाग नजदीक दिखाई देता है।
(viii) गति लंबन (motion parallax) – यह तब होता है जब दूर की वस्तुएं
करीब की वस्तुओं की तुलना में धीरे चलती दिखाई देती हैं। किसी वस्तु की गति की दर उसकी
दूरी का संकेत देती है। जब हम किसी वाहन में यात्रा करते हैं, तो दूर की वस्तुएँ वाहन
की दिशा में चलती दिखाई देती हैं और पास की वस्तुएँ चलो वाहन की दिशा से उल्टी दिशा
में। गति लंबन संकेत चित्रीय (Pictorial) संकेत के बजाय काइनेटिक संकेत होता है।
2. द्विनेत्रीय संकेत
– द्विनेत्री का अर्थ है 'दोनों आंखों का उपयोग'। गहराई और दूरी के प्रत्यक्षण
के लिए दोनों आंखों द्वारा प्रदान किए गए संकेत।
(i) दृष्टिपटलिय या द्विनेत्रीय असमानता
(disparity) – इसे
के द्विनेत्रीय लंबन के नाम से भी जाना जाता है। यह संकेत दोनों आंखों के बीच की दूरी
(6.5 सेमी) के कारण उत्पन्न होता है। इस दूरी के कारण एक ही वस्तु की छवि दोनों रेटिना
पर अलग-अलग रूप में बनती है। इस अंतर को रेटिना असमानता भी कहा जाता है। जितनी ज्यादा
असमानता होगी वस्तु उतनी ही नजदीक दिखाई देगी और जितनी कम असमानता होगी उतनी ही दूर
क्योंकि दूर की वस्तुओं के लिए असमानता कम और नजदीक की वस्तुएं के लिए ज्यादा होती
है।
(ii) अभिबिन्दुता या अभिसरण (Convergence) – अंदर की ओर देखने के लिए हमारी आँखों
का अंदर की ओर मुड़ने को अभिबिन्दुता कहा जाता है। वस्तु की छवि को प्रत्येक आंख के
पीत बिंदु पर लाने के लिए अभिसरण होता है। संबंधित मांसपेशियां आंखों के अंदर की ओर
मुड़ने से संबंधित संदेश मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं जिन्हें गहराई प्रत्यक्षण के संकेत
के रूप में जाना जाता है। वस्तु जितनी नजदीक होगी अभिसरणभी उतना ही अधिक होगा और वस्तु
जितनी दूर होगी अभिसरणभी उतना ही
कम होगा।
(iii) अनुकूलन – यह एक ऐसी प्रक्रिया
होती है जिसके द्वारा हम रेटिना पर वस्तु की छवि को सिलिअरी मांसपेशियों (लेंस की मोटाई
में परिवर्तन) की मदद से केंद्रित करते हैं। वस्तु अगर 2 मीटर से दूर होती है तो ये
मांसपेशियां आराम की स्थिति में रहती हैं। जब वस्तु नजदीक होती है तो लेंस की मोटाई
बढ़ जाती है और और वस्तु दूर होती है तो लेंस की मोटाई घट जाती है। लेंस की मोटाई में
परिवर्तन सिलिअरी मांसपेशियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो मस्तिष्क को संदेश
पहुंचाती हैं। जहां इन संदेशों की व्याख्या
गहराई प्रत्यक्षण के रूप में की जाती है।
सन्दर्भ:
1. NCERT, XI Psychology Text book.
2. Ciccarelli, S. K. & Meyer, G. E.
(2016). Psychology. Noida: Pearson India.
3. Baron, R. (1993). Psychology.
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