भारतीय दृष्टिकोण एवं परिचय
संस्कृत में स्वास्थ्य का अर्थ है 'स्वस्था:' जिसका अर्थ है "स्वयं में स्थापित" (दलाल, 2006)। भारत के प्रसिद्ध कवियों का कहना है कि मोक्ष प्राप्ति के लिए शरीर को प्राथमिक साधन के रूप में देखा जाना चाहिए। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए योग सबसे कुशल साधन है जिसकी पुष्टि ज्ञान की उस शाखा ने भी की जिसे ‘आयुर्वेद’ यानी ‘दीर्घायु के विज्ञान’ के रूप में जाना जाता है (शर्मा, ए)। प्राचीन भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली त्रिदोष (देहद्रव) वात, पित्त और कफ को स्वास्थ्य का केन्द्र मानती है। स्वास्थ्य का आधार इन त्रिदोष के बीच संतुलन का होना ही होता है। स्वास्थ्य के बारे में भारतीय दृष्टिकोण रोगी के साथ-साथ रोग उन्मुख भी होता है। स्वास्थ्य मानव शरीर की प्राकृतिक स्थिति होती है। स्वास्थ्य, दिव्यता (Divinity) (भवानी, बी ए) के प्रति हमारे विकास प्रक्रिया का एक हिस्सा है। योगी स्वत:मरामा का कहना है कि "शरीर का पतलापन, चेहरे पर चमक, आवाज की स्पष्टता, आंखों की चमक, बीमारी से मुक्ति, उत्तेजित जठरीय ऊष्मा और सूक्ष्म ऊर्जा चैनलों की शुद्धि हठयोग में सफलता के लक्षण माने जाते हैं" (हठयोग प्रदीपिका II-78)।
स्वास्थ्य एक व्यापक अवधारणा है जो भोजन, मानसिक स्थिति और पर्यावरण जैसे विभिन्न अवयवों पर आधारित होता है। खाने के बारे में महान थिरुवल्लुवर (संत-कवि) कहते हैं की, "जो पहले किये गए भोजन के पचने के बाद ही भोजन करता है, उसे कोई दवा की आवश्यकता नहीं होती" (तिरुक्कुरल 942)। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, "स्वास्थ्य पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति होती न की केवल बीमारी या दुर्बलता की अनुपस्थिति"।
स्वास्थ्य की विभिन्न अवधारणाएं
1. स्वास्थ्य की मनोवैज्ञानिक अवधारणा – मानसिक स्वास्थ्य के अंतर्गत जीवन को आनंद पूर्वक जीने के साथ-साथ जिंदगी के लम्हों एवं गतिविधियों के साथ संतुलन बनाने की क्षमता और मनोवैज्ञानिक तन्यकता (Psychological
Resilience) का विकास करना शामिल होता है (स्नाइडर, 2014)। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार “मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का एहसास रहता है, वह जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, लाभकारी और उपयोगी रूप से काम कर सकता है और अपने समाज के प्रति योगदान करने में सक्षम होता है”(wikipedia.org)।
2. स्वास्थ्य की पर्यावरणीय अवधारणा – स्वास्थ्य, मनुष्य और उसके पर्यावरण के बीच एक गतिशील संतुलन को कहते हैं। पर्यावरणीय अवधारणा का यह मॉडल बतलाता है कि पर्यावरण के साथ अनुकूलन और समायोजन में विफलता के कारण बीमारियां उत्पन्न होती हैं। यह मॉडल इस धारणा पर आधारित है कि स्वस्थ रहने के लिए मनुष्य के भौतिक पर्यावरण के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध होनेa चाहिए।
3. स्वास्थ्य की जैव-चिकित्सात्मक अवधारणा – यह एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करती है जहां कोई व्यक्ति किसी बीमारी या दुर्बलता से पीड़ित नहीं हो। यह शारीरिक सलामती की एक ऐसी स्थिति होती है जहां एक व्यक्ति दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों का प्रदर्शन आराम से बिना किसी अड़चन के कर सकता है। शारीरिक गतिविधियां और सम्पूर्ण पोषण, स्वास्थ्य को बनाए रखने के प्रमुख घटक होते हैं। यह मॉडल अपना ध्यान रोग के जैव रसायन और शरीर-क्रिया विज्ञान जैसी शारीरिक प्रक्रियाओं पर केंद्रित रखता है जिसमें सामाजिक कारकों या व्यक्तित्व की कोई (wikipedia.org) भूमिका नहीं होती है।
4. स्वास्थ्य की समग्र (Holistic)अवधारणा – यह अवधारणा व्यक्ति को एक सम्पूर्ण रूप में देखती है और समझने का प्रयास करती है कि व्यक्ति अपने परिवेश के साथ कैसे अंतःक्रिया करता है। यह मन, शरीर और आत्मा के संबंध पर जोर देती है। इसका लक्ष्य व्यक्ति का ऐसा स्वास्थ्य स्तर बनाए रखना होता है, जहां पर वह अपना इष्टतम निष्पादन दे सके। यह मॉडल प्रकृति के नियमों पर आधारित होता है (एएचएचए)।
स्वास्थ्य के आयाम
1. मानसिक - संज्ञानात्मक कार्यात्मक उपयुक्तता (फिटनेस) यानी संज्ञानात्मक कार्यों को उचित रूप से करने की क्षमता।
2. शारीरिक - शरीर की कार्यात्मक और संरचनात्मक उपयुक्तता (फिटनेस) यानी शारीरिक कार्यों को बेहतर तरीके से करने की क्षमता।
3. सामाजिक - सामाजिक परिवेश में गुणवत्ता पूर्ण पारस्परिक संबंधों को बनाए रखने की क्षमता।
4. संवेगात्मक – संवेगों को नियंत्रित करने की क्षमता, परेशान करने वाली स्थितियों से निपटने और मजबूत एवं स्थायी रिश्ते बनाने की क्षमता। दूसरे शब्दों में, यह अपने और दूसरों के संवेगों को स्वीकार करने और समझने की क्षमता होती है।
5. आध्यात्मिक – यह हमारी व्यक्तिगत मान्यताओं और मूल्यों को संदर्भित करता है जो स्वयं को समझने और जीवन के उद्देश्य को निर्धारित करने में मदद करता है। भारतीय दर्शन इस बात पर जोर देता है किमानव जीवन का उद्देश्य मोक्ष या निर्वाण प्राप्त करना है। यह प्रणोद (Drive), प्रेरणा (Motives) और मनोशारीरिक जरूरतों का संतुलन होता है।
सन्दर्भ:
1. https://moayush.wordpress.com/2016/06/20/health-and-well-being-a-yogic-perspective/.
2. https://positivepsychologyprogram.com/emotional-health-definition-mike-oppland/
3. Snyder, R. C. (2014). Positive
psychology: the scientific and practical explorations of human strengths.
Lopez, Shane J., Pedrotti, Jennifer Teramoto (Third ed.). Thousand Oaks. ISBN
9781452276434. OCLC 875675118.
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Mental_health.
5. https://ahha.org/selfhelp-articles/holistic-health/
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Bhaut badhiya
ReplyDeleteThanks for your feedback
Deleteधन्यवाद आप ने बहुत ही उपयोगी जानकारी साझा की है। कोरोना वायरस का मानव जीवन पर प्रभाव
ReplyDeleteजीवन यात्रा जी आपकी कमेंट के लिए आपका आभार। आशा है आप स्वस्थ एवं सुरक्षित होंगे।
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