Tuesday, June 1, 2021

मार्गदर्शन/निर्देशन की परिभाषा एवं उद्देश्य

 निर्देशन का अर्थ

          ‘Guidance' शब्द ‘Guide' से लिया गया है जिसका अर्थ होता हैकिसी जरूरतमंद व्यक्ति को राह दिखाना। मार्गदर्शक ऐसा गहन ज्ञान से ओत-प्रोत होना चाहिए ताकि साधक उस ज्ञान रुपी गंगा के माध्यम से प्रबुद्ध हो सके। आधुनिक शहरी जीवन में 24X7 मीडिया और प्रौद्योगिकी के आगमन से सामाजिक जीवन को जटिलताओं से परिपूर्ण कर दिया जिसके कारण नई मनो-सामाजिक चुनौतियों की शुरुआत हुई। युवाओं और वयस्कों के लिए इन चुनौतियों का सामना करना मुश्किल हो गया जिसके परिणामस्वरूप ‘निर्देशन यामार्गदर्शन नामक विषय की अवधारणा की उत्पत्ति हुई।

 

          निर्देशन एक प्रकार की ऐसी सहायता होती है जो योग्य और प्रशिक्षित निर्देशक द्वारा एक व्यक्ति को उसके जीवन का प्रबंधन करने और चुनौतियों से निपटने में सक्षम बनाने के लिए प्रदान की जाती है। शैक्षिक क्षेत्र में निर्देशन/मार्गदर्शन का अर्थ होता है छात्रों को उनके स्वभाव और रुचियों के अनुसार पाठ्यक्रम का चयन करने में सहायता करना ताकि वह अपने चुने हुए क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त कर सके।

 

मार्गदर्शन की परिभाषाएँ      

          क्रो और क्रो के अनुसार, “सक्षम परामर्शदाताओं द्वारा किसी भी उम्र के व्यक्ति को उसके जीवन को निर्देशित करने, स्वयं का दृष्टिकोण विकसित करने, अपने निर्णय स्वयं लेने, अपनी जिम्मेदारियां स्वयं निभाने के लिए उपलब्ध कराई गई सहायता को मार्गदर्शन कहते हैं”।

          जोन्स के अनुसार, “मार्गदर्शन में किसी व्यक्ति के द्वारा दी गई व्यक्तिगत मदद शामिल होती है; यह एक व्यक्ति को यह तय करने में सहायता करने के लिए डिज़ाइन किया जाता कि उसका लक्ष्य क्या है, वह क्या करना चाहता है या वह अपने उद्देश्य को कैसे पा सकता है? इसके द्वारा व्यक्ति के जीवन में आने वाली समस्याओं को हल करने के लिए उसकी सहायता की जाती है

          कुप्पुस्वामी के अनुसार, “मार्गदर्शन एक व्यक्ति की समायोजन सम्बन्धी समस्याओं से निपटने में सहायता करने की एक प्रक्रिया होती है”।

           बी एफ स्किनर के अनुसार, "मार्गदर्शन युवाओं को स्वयं को, दूसरों को और परिस्थितियों में समायोजित करने में मदद करने की एक प्रक्रिया होती  है"।

          जोन्स के अनुसार, “मार्गदर्शन एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को विकल्प चुनने , समायोजन करने और समस्याओं को सुलझाने में दी गई सहायता होती  है”।

कोठारी आयोग  (1964-66)और  मार्गदर्शन

1.        मार्गदर्शन को शिक्षा का अभिन्न अंग माना जाना चाहिए।

2.        यह एक सतत प्रक्रिया होती है जिसका उद्देश्य व्यक्ति को समय-समय पर निर्णय लेने और समायोजन करने में सहायता करने से होता है।

3.        विद्यार्थियों का ‘घर से स्कूलमें परिवर्तन’ को संतोषजनक बनाने में मदद करना होना चाहिए।

4.        बुनियादी शैक्षिक कौशल सीखने में आने वाली कठिनाइयों का समाधान करना।

5.        शिक्षा में विशेष विद्यार्थियों जैसे प्रतिभाशाली, पिछड़े, शारीरिक रूप से विकलांग इत्यादि की पहचान करना।

6.        दुनियादारी और कार्य सम्बन्धी अंतर्दृष्टि विकसित करने के लिए विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करना।

मार्गदर्शन के उद्देश्य

1.        मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और शारीरिक विकास में जरूरतमंद व्यक्ति की मदद करना।

2.        मानसिक-शारीरिक और सामाजिक वातावरण के साथ समायोजन (adjust) करने में सहायता करना।

3.        व्यक्तिगत रूप से सक्षम बनाने के लिए चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने में सहायता करना।

4.        व्यक्ति के स्वभाव और जरूरतों के अनुसार उपयुक्त ज्ञान प्रदान करना।

5.        व्यवसाय या पेशे के चयन में व्यक्ति की सहायता करना।

6.        जीवन में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए व्यक्ति को स्वयं-निर्देशित और आत्मनिर्भर बनने में मदद करना।

7.        विषय चयन में सहायता करना।

8.        सामाजिक कल्याण की भावना को जाग्रत करने के लिए सामाजिक सेवा की और अग्रसर करना।

9.        व्यावसायिक तनाव से निपटने में सहायता प्रदान करना।

10.      सकारात्मक, हंसमुख और खुश रहने के लिए प्रेरित करना ताकि व्यक्ति सामाजिक समायोजन,

अनुकूलन क्षमता तथा तदनुभूति में सुधार कर सके।

 

संदर्भ:

1.        Aamodt, M. G. (2010). Industrial/ Organizational Psychology: An applied approach. Belmont: Wadsworth.

2.        https://en.wikipedia.org/wiki/Kothari_ Commission.

3.        Rao, S. N. (2004). Counselling and Guidance. New Delhi: Tata McGraw-Hill.

4.        shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/ 2976/8/08_chapter%202.pdf.

 

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