परामर्श का अर्थ
परामर्श का अर्थ होता है की व्यक्तिगत या मनोवैज्ञानिक समस्याओं को हल करने के लिए
(किसी को)
विशेषज्ञ द्वारा मदद और सलाह देना है। मुव्वकिल को स्वयं के जीवन एवं विचारों को समझने और स्पष्ट करने में मदद करना तथा उसके द्वारा निर्धारित लक्ष्यों तक पहुंचने में सार्थक और उचित विकल्पों को चुनने के साथ-साथ संवेगात्मक तथा पारस्परिक समस्याओं को हल करने में मदद करना।
(Burks and Steffire, 1979). परामर्श किसी पेशेवर और मुव्वकिल के बीच एक स्वैच्छिक एवं परस्पर बातचीत की प्रक्रिया होती है। इसमें मुव्वकिल को स्वयं को जानने और संतुष्टि के साथ जीने के तौर-तरीकों और साधनों की खोज करने का अवसर
प्रदान किया जाता है।
Video Link - परामर्श और इसकी आवश्यकताएं
परामर्श की परिभाषा
कार्ल रोजर्स
"इसका मतलब यह नहीं है कि किसी व्यक्ति की विशिष्ट समस्या हल हो सकती है। परामर्श प्रक्रिया को व्यक्ति की समस्या से संबंधित स्पष्ट अंतर्दृष्टि प्राप्त करने और आत्मविश्वास प्राप्त करने में
counselee की मदद करनी चाहिए
”
परामर्श एक अधिगम-उन्मुख प्रक्रिया होती है जो एक सरल सामाजिक वातावरण में पूरी की जाती है जिसमें परामर्शदाता,
प्रासंगिक मनःशास्त्री कौशल और ज्ञान में पेशेवर रूप से सक्षम,
उचित तरीकों से ग्राहक की जरूरतों के अनुसार सहायता करता है।
परामर्श के लिए आवश्यक शर्तें
1. काउंसली अपने आप तैयार होना चाहिए।
2. काउंसली को इस बात का एहसास होना चाहिए कि उसे मदद की जरूरत है।
3. काउंसली को परामर्श तकनीक और परामर्शदाता पर संपूर्ण विश्वास होना चाहिए।
4. परामर्शदाता को पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित,
सक्षम,
पेशेवर एवं अनुभव से परिपूर्ण होना चाहिए।
5. परामर्श के लिए सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध का होना अति आवश्यक होता है।
6. सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए अनुकूल वातावरण होना चाहिए।
7. व्यक्तिगत-सह-व्यावसायिक संबंध के लिए पारस्परिक सम्मान होना चाहिए।
परामर्श की विशेषताएं
1. काउंसलिंग की प्रक्रिया दो व्यक्तियों से संबंधित होती है-
काउंसली और काउंसलर।
2. परामर्श में,
परामर्शदाता और काउंसली का आमने-सामने होना आवश्यक होता है।
3. समस्याओं का समाधान आपसी चर्चा के माध्यम से निकला जाता है।
4. परामर्शदाता,
एक प्रशिक्षित व्यक्ति होने के नाते,
अपने कुशल पूछताछ के माध्यम से काउंसली के
जीवन में समस्या और उसके महत्व का पता लगाता है।
5. परामर्श मार्गदर्शन प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग होता है।
6. परामर्श एक अधिगम-उन्मुख प्रक्रिया होती है।
7. परामर्श व्यक्तियों की व्यवहार संबंधी समस्याओं को सुलझाने में मदद करता है जिसमें संवेदनाएं और प्रेरणा मुख्य कारक होते हैं।
8. परामर्श उन अक्षमताओं और कमजोरियों पर काबू पाने या उनसे बहार निकालने में व्यक्तियों की मदद करता है जो उनकी सीखने की प्रक्रिया के रास्ते में बाधा बनते हैं।
9. परामर्श एक प्रकार की शैक्षिक और व्यावसायिक सेवा होती है।
10. काउंसलिंग साक्षात्कार आधारित होती है।
11. परामर्श में,
व्यक्ति को अपनी समस्या को समझने और हल करने का अवसर प्रदान करने का प्रयास किया जाता है।
परामर्श की आवश्यकता क्यों होती है?
-जब किसी व्यक्ति को अपनी समस्याओं का समाधान करना मुश्किल हो जाता है।
-बदले हुए वातावरण के साथ अनुकूलन और समायोजन
के
लिए।
-जब किसी व्यक्ति को पेशेवर मदद की आवश्यकता हो।
-परस्पर सीखने से समस्या सम्बन्धी अंतर्दृष्टि प्राप्त करना।
-व्यक्तिगत क्षमता की पहचान और विकास के लिए।
-व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित करना।
-व्यक्तिगत समस्याओं का निदान और विश्लेषण।
-मनःशास्त्रीय संसाधनों का इष्टतम उपयोग।
-जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता के लिए।
-'स्व-स्वीकृति'
में व्यक्ति की मदद करना।
परामर्श के पूर्व आवश्यक तत्व
1. तदनुभूति -
दूसरे के जूते में फिट होना यानी दूसरों के संवेगों और भावनाओं को समझना और अनुभव करना। किसी अन्य व्यक्ति के विचारों,
भावनाओं और स्थिति को उसके दृष्टिकोण से समझने को तदनुभूति कहा जाता है।
2. सामंजस्य
(Congruence) - इसका अर्थ ये है कि परामर्शदाता को अपने भावों और दृष्टिकोण में विशुद्ध
(genuine) होना। सामंजस्य कॉउन्सलि के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाने में मदद करता है।
परामर्शदाता का सामंजस्य और वास्तविक दृष्टिकोण मुवक्किल को महत्वपूर्ण महसूस करने में मदद करता है तथा आत्म-सम्मान और विश्वास के साथ निर्णय लेने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
3. अशर्त सकारात्मक सम्मान - कार्ल रोजर्स के शब्दों में अशर्त सकारात्मक सम्मान का अर्थ
“इसका मतलब है कि मुवक्किल की दायित्व से देखभाल करना,
लेकिन अधिकार की भावना से नहीं और न ही इस तरह कि चिकित्सक स्वयं की जरूरत पूरी होती हों”। इसका मतलब है कि मुवक्किल की एक पृथक व्यक्ति के रूप में देखभाल करना,
जिसमे उसके स्वयं के संवेग और भावनाएं सम्मिलित हों।
छात्रों की की कुछ विशेष आवश्यकताओं में परामर्श की भूमिका
1.
सम्पूर्ण विकास के लिए।
2.
मानसिक अशांति और उथल-पुथल के दौरान सहायता प्रदान करना।
3.
जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना।
4.
समकालीन शिक्षा और रोजगार के बीच अंतर को समझने में मदद करना।
5.
स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना।
6.
कमजोर वर्ग के छात्रों को प्रेरित करना।
7.
व्यावसायिक विकास के लिए।
8.
समय के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए।
संदर्भ:
1. Rao, S. N. (2004). Counselling and
Guidance. New Delhi: Tata McGraw-Hill.
2. Kinara, A. K. (2008). Guidance and
Counselling. New Delhi: Pearson Education.
3. Shrivastava, K. K. (2003). Principles
of Guidance and Counselling. New Delhi: Kanishka Publishers.
4. Fundamentals of Guidance and
Counseling- R. S. Sharma
5. Guidance and Counseling- A. K. Nayak
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