Video link - परामर्श के सिद्धांत
सिद्धांत
1. स्वीकृति
(Acceptance) – कार्ल रोजर्स के अनुसार,
“स्वीकृति से मेरा मतलब है कि व्यक्ति के रूप में उसका गर्मजोशी से परिपूर्ण सम्मान,
चाहे उसकी स्थिति,
व्यवहार या उसकी भावनाएं कैसी भी हों। इसका मतलब है कि उसका एक सम्पूर्ण व्यक्ति के रूप में सम्मान और उसकी इच्छा अनुसार स्वयं के संवेगों और भावनाओं को स्वीकार करना।”काउंसलर और काउंसली के बीच तालमेल का आधार स्वीकृति ही होती है। प्रभावशाली परामर्श की शुरुआत के लिए व्यक्ति की प्राकृतिक रूप में स्वीकृति आवश्यक शर्त होती है।
2. व्यक्ति के लिए सम्मान
– प्रत्येक व्यक्ति स्वभाव और उद्दीपक के प्रति की गई प्रतिक्रिया में अद्वितीय होता है। यह सिद्धांत बताता है कि प्रत्येक व्यक्ति वांछित सम्मान और श्रेय का अधिकारी होता है
(ब्लम और बालिंस्की,
1961)। कोई भी व्यक्ति किसी भी स्थिति में कैसी भी संवेगात्मक प्रतिक्रिया करें या उसका व्यक्तित्व कैसा भी हो उसेकिसी भी प्रकार के मूल्यांकन के बिना स्वीकार किया जाना चाहिए। यह सिद्धांत व्यक्ति के आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए उसकी अहमियत को दर्शाता है।
3. आशावाद - आशावाद को एक सकारात्मक
पूर्वानुमानित स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है "कार्यों और घटनाओं के
प्रति सबसे अनुकूल रचना करने या सर्वोत्तम संभव परिणाम का अनुमान लगाने की तरफ झुकाव"
("ऑप्टिमिज़्म", 2011)। आशावाद को एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया के रूप में
वर्णित किया जाता है जिसके फलस्वरूप (ब्रुइनिक्स और मैले, 2005) व्यक्ति लक्ष्य निर्देशित
व्यवहार (स्नाइडर एट अल।, 1991) का निर्धारण करने वाली परिणामों की अपेक्षाओं पर ध्यान
केंद्रित करता है। यह सिद्धांत बताता है कि काउंसलर और काउंसेली दोनों को अपने दृष्टिकोण,
संबंध, परिणाम और पारस्परिक विश्वास में आशावादी होना चाहिए। आशावाद मानवीय व्यवहार
का एक सकारात्मक पहलू होता है जो व्यक्ति को मानसिक एवं शारीरिक ऊर्जा से परिपूर्ण
रखता है।
4. अधिगम – सीखना व्यवहार में
स्थायी परिवर्तन होता है। अधिगम मानव विकास
का गहना होता है जो व्यक्ति को नयी राहें दिखाकर उसमे जिज्ञासा पैदा करता है। काउंसलिंग
एक आमने-सामने की प्रक्रिया होती है जो व्यवहार परिवर्तन नामक नींव पर खड़ी होती है।
काउंसलिंग के द्वारा Counselee के व्यवहार में परिवर्तन करना होता है ताकि वह हर प्रकार
के पर्यावरण में अपने आप को समायोजित और अनुकूलित कर सके या समस्या का तत्काल
समाधान निकल सके। समस्या की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए व्यवहार में परिवर्तन स्थायी
होना चाहिए। इसलिए, अधिगम के सिद्धांत परामर्श
का आधार बनते हैं।
5. क्लाइंट की विचारधारा के साथ सुव्यवस्थीकरण (Rationalization)
– सुव्यवस्थीकरण का अर्थ होता है पुनर्गठन। परामर्श के संदर्भ में परामर्शदाता को प्रभावी
होने के लिए क्लाइंट के साथ विचार प्रक्रिया को युक्तिसंगत बनाना होता है। इस सिद्धांत
का केंद्रीय विचार यह है कि क्लाइंट से प्रामाणिक, शुद्ध और मूल जानकारी प्राप्त करना।
क्लाइंट को काउंसलर के साथ मूल समस्या-संबंधित व्यक्तिगत जानकारी साझा करने में सुरक्षित
महसूस कराना ही इस सिद्धांत का लक्ष्य होता है। क्लाइंट की विचारधारा के साथ काउंसलर
की विचारधारा को सुव्यवस्थित होने से क्लाइंट का भरोसा मजबूत होता है जिससे समस्या
समाधान में आसानी होती है।
References:
1. Rao, S. N. (2004). Counselling and Guidance.
New Delhi: Tata McGraw-Hill.
2. https://www.slideshare.net/reynel89/types-of-guidance.
3. http://www.yourarticlelibrary.com/education/guidance/guidance-types-top-3-types-of-guidance-explained/63673.
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