Tuesday, December 24, 2019

केनन-बार्ड का संवेग सिद्धांत (Cannon Bard Theory of Emotions)

कैटेल का बुद्धि सिद्धांत


संक्षिप्त परिचय
            रेमंड बर्नार्ड कैटेल (1905-1998) एक ब्रिटिश और अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने व्यक्तित्व, संज्ञानात्मक क्षमताओं, अभीप्रेरणा और संवेग, असामान्य व्यक्तित्व और सामाजिक व्यवहार के बुनियादी आयामों पर काम किया। प्रथम विश्व युद्ध (WW I) की उथल-पुथल ने उन्हें मनोविज्ञान का अध्ययन करने के लिए मजबूर किया ताकि वे मानव समस्याओं को हल करने के लिए विज्ञान को सहारा बना सकें। उन्होंने किंग्स कॉलेज, लंदन से मनोविज्ञान में 1929 में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने ई एल थोर्नडाइक और गोर्डन ऑलपोर्ट के साथ भी काम किया।

            उन्होंने साइकोमेट्रिक मूल्यांकन में उपयोग की जाने वाली सांख्यिकी की विधि कारक विश्लेषण विधि को परिष्कृत (Refine) किया। वह बहुचर (बहुभिन्नरूपी-Multivariate) अनुसंधान के अग्रणी थे और उन्होंने साइकोमेट्रिक मूल्यांकन को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सबसे प्रसिद्ध और अत्यधिक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व मूल्यांकन मापनी का निर्माण किया जिसे आमतौर पर 16 व्यक्तित्व कारक प्रश्नावली (16PF) के रूप में जाना जाता है। बुद्धि पर कार्य करने के दौरान उन्होंने दो तरह यानी तरल (Fluid) एवं ठोस (Crystallized) की बुद्धि की पहचान की।


सिद्धांत
            आर बी कैटेल ने  जॉन बी हॉर्न के साथ संयुक्त रूप से इस सिद्धांत का विकास किया और प्रस्तावित किया कि बुद्धि दो प्रकार की होती है: -
(i)         तरल (Fluid) (Gf) एवं
(ii)        ठोस (Crystallized) (Gc)

            Gf और Gc दो अलग-अलग दृष्टिकोणों से किसी व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमता को बताते हैं। एक विरासत में मिले जैविक घटकों पर आधारित है और दूसरी सीखने और उद्दीप्तिकारक (Stimulating) वातावरण के माध्यम से अवसरों की उपलब्धता पर आधारित है। उच्च Gf वाला व्यक्ति तेज दर से अधिक Gc यानि ज्ञान प्राप्त करता है। इसका मतलब है अगर Gf बेहतर है Gc बेहतर हो जाती है।


(i)       तरल (Fluid) (Gf) – यह आगमनात्मक (Inductive) और सांजस्यात्मक (synergetic) होती है, क्योंकि इसके निष्कर्ष सीधे तौर पर अपनी ही आधारिका (Premise) (विकिपीडिया) का पालन नहीं करते हैं। यह मूल रूप से विकसित एक आनुवंशिक क्षमता होती है जिसका आधार जैविक होता है। यह पाया गया है कि Gf अधिगम (सीखने), स्कूली शिक्षा और अनुभव से स्वतंत्र होती है। इसका अपना एक विशिष्ट विकासात्मक प्रतिरूप होता है जहां यह वयस्कता के प्रारंभिक दशक तक तो बढ़ती है लेकिन बढ़ती उम्र के साथ घटने लगती है। इस बुद्धि के परिमाण (Measures) में पहेलियों का प्रत्याह्वान (Recall) और सटीकता से हल करने की गति, अमूर्त और परिमाणात्मक (Quantitative) तर्क, विचारात्मक प्रवाह आदि आते हैं। Gf का मूल्यांकन कैटेल के कल्चर फेयर आईक्यू टेस्ट, रेवेन के प्रोग्रेसिव मैट्रिस, भाटिया परफॉर्मेंस बैटरी ऑफ़ इंटेलिजेंस और WAIS के माध्यम से किया जाता है। इसमें लघु कालिक स्मृति (Short Term Memory) एवं अवधान से सम्बंधित मस्तिष्क क्षेत्र शामिल होते हैं।


(ii)       ठोस (Crystallized) (Gc) – यह निगमनात्मक और असांजस्यात्मक (asynergetic) होती है, क्योंकि इसके निष्कर्ष इसके निष्कर्ष सीधे तौर पर अपनी ही आधारिका (Premise) (विकिपीडिया) का अनुसरण करते हैं। ठोस बुद्धि धीरे-धीरे बढ़ती है, अधिकांशत: वयस्कता के दौरान अपेक्षाकृत स्थिर रहती है, और फिर 65 वर्ष की उम्र के बाद इसमें गिरावट आनी शुरू हो जाती है (Cavanaugh & Blanchard-Fields, 2006)। यह अनुभवों, अधिगम और वातावरण का परिणाम होती है। प्रत्येक प्रकार की Gc एक दूसरे से स्वतंत्र होती है लेकिन Gf पर निर्भर करती है। Gc के परिमाण (Measures) मौखिक क्षमता, भाषा का विकास, पढ़ने की समझ, अनुक्रमिक (Sequential) तर्क और सामान्य ज्ञान होते हैं। Gc का मूल्यांकन रीडिंग कॉम्प्रिहेंशन और लेवल ऑफ वोकैबुलरी प्रकार के परीक्षणों का उपयोग करके किया जा सकता है। इसमें दीर्घकालिक स्मृति (Long Term Memory) से सम्बंधित मस्तिष्क क्षेत्र शामिल होते हैं।

निष्कर्ष
            यह सिद्धांत बताता है कि बुद्धि के दो घटक यानी Gf और Gc होते हैं। दोनों के अपने अलग-अलग परिमाण (Measures) और विकास प्रक्रिया होती है। बुद्धि के दोनों प्रकार प्रकृति और पोषण पर आधारित होते हैं। Gf की उत्पत्ति जैविक वातावरण में होती है जबकि Gc की सीखने के उद्दीप्तिकारक और प्रेरणादायक माहौल में। Gf आगमनात्मक प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व करती है जबकि Gc निगमनात्मक प्रक्रिया का। Gf शुरू में वयस्कता की शुरुआत तक बढ़ती है और फिर इसमें गिरावट आने लगती है जबकि Gc उम्र के साथ लगातार बेहतर होती रहती है और 65 साल के बाद गिरावट आने लगती है।

            सारांश, जब व्यक्ति को यह नहीं पता होता कि उसे क्या और कैसे करना है तो वह Gf का उपयोग करता है और ज्ञान और सामान्य जानकारी की स्थिति में Gc का उपयोग करता है।


सन्दर्भ:
1.         Cavanaugh, J. C.; Blanchard-Fields, F (2006). Adult development and aging (5th ed.). Belmont, CA: Wadsworth Publishing/Thomson Learning. ISBN 978-0-534-52066-3.
2.         https://www.britannica.com/biography/L-L-Thurstone.
3.         https://www.intelltheory.com/rcattell.shtml.


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Monday, December 23, 2019

थर्स्टन का बुद्धि सिद्धांत



संक्षिप्त परिचय
             लुईस लियोन थर्स्टन, (1887-1955), एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने साइकोमेट्रिक्स, विज्ञान जो मानसिक कार्यों का आकलन करता है, के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, और एक सांख्यिकीय तकनीक कारक विश्लेषण को बेहतर बनाया। उन्होंने थर्स्टन स्केल विकसित किया, जो अभिवृत्ति मापन का एक शानदार मनोवैज्ञानिक उपकरण है। वे पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर थे और थोड़े समय के लिए उन्होंने थॉमस अल्वा एडिसन के साथ भी काम किया । लेकिन बाद में मनोविज्ञान की और झुकाव हुआ तथा 1917 में मनोविज्ञान में ही पीएचडी प्राप्त की। उन्होंने उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय में एल एल थर्स्टन साइकोमेट्रिक  नामक प्रयोगशाला की स्थापना की। कारक विश्लेषण पर उनके काम के फलस्वरूप उन्होंने बुद्धि के एक महत्वपूर्ण सिद्धांत का विकास किया जिसे उन्होंने 7 प्राथमिक मानसिक क्षमताएँ  (Seven Primary Mental Abilities) कहा। उन्होंने इस विचार को खारिज कर दिया कि किसी भी एक कारक का दूसरों की तुलना में अधिक सामान्य अनुप्रयोग होता है और प्राथमिक मानसिक क्षमता परीक्षण (1938) विकसित किया, जो मानव बुद्धि के घटकों को मापता है।

सिद्धांत
            उन्होंने प्राथमिक मानसिक क्षमताओं के सिद्धांत प्रस्तावित किया। यह सिद्धांत बताता है कि बुद्धि में सात प्राथमिक क्षमताएं होती हैं जो एक कार्यात्मक एकरूपता (Unity) के रूप में काम करती हैं। बुद्धि इन अपेक्षाकृत एक दूसरे से स्वतंत्र मानसिक क्षमताओं के संयुक्त प्रयासों का परिणाम होता है जो स्वयं अपने आप में एक प्रमुख प्राथमिक कारक होती हैं।
ये 7 प्राथमिक क्षमताएं निम्नलिखित हैं: -
(i)    वाचिक बोध (Verbal Comprehension) – शब्दों, अवधारणाओं, संप्रत्ययों और विचारों के अर्थ को समझने की क्षमता,  
(ii)    संख्यात्मक क्षमताएँ (Numerical Ability) – संख्यात्मक और अभिकलनात्मक कार्यों को तीव्र गति, कुशलता और सटीकता से करने की क्षमता,
(iii)    स्थानिक/ देशिक संबंध (Spatial Relations) – प्रतिरूपों तथा रचनाओं के प्रत्यक्षीकरण करने की क्षमता,           
(iv)    प्रात्यक्षिक गति (Perceptual Speed) – सभी पांच इंद्रियों का उपयोग करके वस्तु के सम्पूर्ण विवरण (details) के प्रत्यक्षीकरण करने की गति,
(v)     शब्द प्रवाह (Word Fluency) – किसी विचार या स्थिति का वर्णन करने के लिए धाराप्रवाह और लचीले शब्दों का उपयोग करने की क्षमता,
(vi)   स्मृति (Memory) – सूचनाओं सटीकता से याद रखने व प्रत्याह्वान करने में परिशुद्धता की क्षमता, और
(vii)    आगमनात्मक तर्कना (Inductive Reasoning) – दिए गए तथ्यों एवं नियमों से सामान्य नियमों को प्राप्त या व्युत्पन्न (Derive) करने की क्षमता। यह क्षमता उन गतिविधियों में पाई जाती है जहाँ किसी प्रश्न या श्रृंखला में निहित नियमों या विचारों की खोज करने की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष
            यह सिद्धांत बताता है कि बुद्धि कोई एकात्मक (Unitary) संप्रत्यय नहीं है, बल्कि यह सात प्राथमिक मानसिक क्षमताओं का संयोजन (Combination) है जो अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग मात्रा में पाई जाते हैं। ये क्षमताएं उनके अपने-अपने विशिष्ट कार्य करने में निपुण एवं विशेषज्ञताप्राप्त (Specialized) हैं तथा एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। आवश्यकता पड़ने पर सभी क्षमताएं एक एकीकृत समूह के रूप में कार्य करने के लिए एक साथ आ जाती है और एक एकीकृत समाधान प्रस्तुत करती हैं। इस सिद्धांत ने बुद्धि के कई समकालीन सिद्धांतों के विकास के लिए आधार प्रदान किया।

सन्दर्भ:
1.         NCERT. (2013). XII, Book
2.         https://www.britannica.com/biography/L-L-Thurstone.


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स्पीयरमैन का बुद्धि सिद्धांत


संक्षिप्त परिचय
          चार्ल्स स्पीयरमैन (1863 से 1945), एक ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक थे। वह मूल रूप से एक सैन्य इंजीनियर थे। उन्होंने सेना से त्याग पत्र देकर विल्हेम वुंड्ट के तहत प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का अध्ययन करने का फैसला किया और 1906 में पीएचडी की डिग्री हासिल की। ​​उन्होंने 1907 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में दाखिला लिया और 1932 में मनोविज्ञान के प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त होने तक बने रहे।

        स्पीयरमैन ने एक बार कहा था कि "हर सामान्य पुरुष, महिला और बच्चा ... किसी-न-किसी चीज में एक प्रतिभाशाली होता है ... बस जरूरत है उसकी प्रतिभा को खोजने की ..."। उन्होंने सांख्यिकीय विश्लेषण में महारत हासिल करते हुए रैंक सहसंबंध विधि (Rank Correlation Method) के विकास के साथ और कारक विश्लेषण (Factor Analysis) विधि के शुरुआती संस्करण का विकास किया। उन्हें मनोवैज्ञानिक परीक्षण आंदोलन का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने बुद्धि के  सामान्य (general, g) कारक की खोज की और बुद्धि का एक सिद्धांत प्रस्तावित किया। जिसे स्पीयरमैन का बुद्धि सिद्धांत कहा जाता है।

सिद्धांत
            1927 में उन्होंने बुद्धि का एक दो-कारक सिद्धांत प्रस्तावित किया। उन्होंने नई-नई खोजी गई सांख्यिकीय विश्लेषण पद्धति जिसे कारक विश्लेषण (Factor Analysis) के रूप में जाना जाता है का उपयोग करके अपने सिद्धांत को विकसित किया । उन्होंने प्रस्तावित किया कि बुद्धि में दो क्षमताएं या कारक शामिल होते हैं यानी एक सामान्य कारक (स-कारक) (g-factor) और कुछ विशिष्ट कारक (वि-कारक) (S-Factor)। दोनों बुद्धि परीक्षणों द्वारा मापने योग्य हैं।

(i)       स-कारक (g-factor) – सामान्य या जन्मज (देशज-Native) बुद्धि के रूप में भी जाना जाता है। तर्क करने और समस्याओं के समाधान करने की क्षमता जिसमे ऐसे मानसिक ऑपरेशन शामिल होते हैं जो सभी प्रकार के कार्यों के निष्पादन के लिए प्राथमिक रूप से जिम्मेदार होते हैं। स-कारक मनोवैज्ञानिक अवधारणा के रूप में एक व्यक्ति के विभिन्न संज्ञानात्मक कार्यों पर निष्पादन के लिए जिम्मेदार समग्र मानसिक क्षमता को संदर्भित करता या दर्शाता है। यह जन्मजात क्षमता होती है और काफी हद तक जीवन भर स्थिर रहती है। हर व्यक्ति में स-कारक की अलग-अलग मात्रा होती है। यह माना जाता है कि जितना ज्यादा ‘स’-कारक होगा समग्र बुद्धि भी उतनी ही बेहतर होगी।

(ii)      वि-कारक (S-Factor) – इस करक को कई विशिष्ट क्षमताओं के रूप में भी जाना जाता है। विशिष्ट क्षेत्रों जैसे गायन, विज्ञान, वास्तुकला, एथलेटिक्स, खेल, कला आदि में उत्कृष्टता प्राप्त करने की क्षमता को वि-कारक (S-Factor) कहा जाता है । ये विशिष्ट क्षमताएं लोगों को अपने संबंधित अनुक्षेत्र या ज्ञानक्षेत्र (Domain) में उत्कृष्टता प्राप्त करने का जरिया होती हैं। वि-कारक एक प्रकार से ऐसी सीखी गई गतिशील क्षमताएँ होती हैं जो समय के साथ संशोधित (modify) की जा सकती हैं। हर व्यक्ति में बुद्धि की ये क्षमता हर एक गतिविधि में भिन्न होती है। विशिष्ट या वि-क्षमताओं की संख्या अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग मात्रा में कम या ज्यादा हो सकती है।

निष्कर्ष
            बुद्धि की सम्पूर्ण अवधारणा ‘स’-कारक और ‘वि’-कारक/ कारकों का कुल योग होती है। ‘स’-कारक स्थिर और जन्मजात होते है जबकि ‘वि’-कारक/ कारकों को सीखा और अधिग्रहित (acquire) किया जाता है। सामान्य कार्यों के लिए ‘स’-कारक जिम्मेदार होता है जबकि विशिष्ट कार्यों के लिए ‘वि’-कारक। ‘स’-कारक विशिष्ट क्षमताओं में भी पाया जाता है। उदाहरण के लिए एक महान हॉकी खिलाड़ी के पास ‘स’+‘वि’ (खिलाड़ी) दोनों प्रकार की बुद्धि होती है और इसी प्रकार एक उत्कृष्ट लेखक के पास भी ‘स’+‘वि’ (लेखन) दोनों प्रकार की बुद्धि होती है।
      
सन्दर्भ :
1.         NCERT. (2013). XII, Book.
2.         https://en.wikipedia.org/wiki/Charles_Spearman.



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बुद्धि की प्रकृति


अर्थ
            अंग्रेजी का "Intelligence" शब्द लैटिन भाषा के 'इंटेलिजिया या इंटेलीक्टस' (intelligentia or intellēctus) शब्द से लिया गया है, जिसे 'intelligere' से लिया गया है, जिसका अर्थ होता हैसमझना या अनुभव करना
बुद्धि ग्रहणशक्ति (understanding), आत्म-जागरूकता (self awareness), अधिगम (learning), संवेगात्मक जागरूकता (emotional awareness), तर्क (reasoning), योजना (planning), रचनात्मक आलोचनात्मक चिंतन (creative and critical thinking) और समस्या समाधान (problem solving) जैसे साधनों के माध्यम से जीवन की चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए सामान्य संज्ञानात्मक क्षमता होती है।

परिभाषा         
        बुद्धि को अच्छी तरह से तर्क करने, तय या फैसला करने और समझने की क्षमता के रूप में समझा जा सकता है (Binet, 1916)     
        बुद्धि का आशय पर्यावरण को समझने, सविवेक चिंतन करने तथा किसी चुनौती के सामने होने पर उपलब्ध संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की व्यापक क्षमता से है (NCERT)

       वेश्लर (1944) के अनुसार बुद्धि व्यक्ति की वह समग्र क्षमता है जिसके द्वारा व्यक्ति सविवेक चिंतन करने, उद्देश्यपूर्ण व्यवहार करने अपने पर्यावरण से प्रभावी ढंग से निपटने में समर्थ होता है।

यह लक्ष्य - निर्देशित औरअनुकूली व्यवहार होता है (स्टर्नबर्ग और साल्टर, 1982) है।

          
बुद्धि की विशेषताएं
1.       यह एक मनोवैज्ञानिक अवधारणा होती है जिसका प्रत्यक्षण तो नहीं किया जा सकता लेकिन साबित किया जा सकता है जैसे गुरुत्वाकर्षण बल।
2.      बुद्धि तर्कसंगत और तार्किक चिंतन के लिए एक मार्गदर्शक और नियामक (Regulator) के रूप में कार्य करती है।
3.         पर्यावरण के साथ अनुकूलन में सहायक होती है।
4.         समस्या समाधान का यह सर्वश्रेष्ठ मनोवैज्ञानिक उपकरण होता है।
5.         यह संज्ञानात्मक संसाधनों का प्रभावी रूप से प्रबंधन करती है।
6.         यह नई-नई कृतियों के माध्यम से अभिव्यक्त की जाती है।
7.         बुद्धि सूचनाओं के भण्डारण और प्रत्याह्वान (Recall) के लिए प्लेटफॉर्म मुहैया कराती है।
8.         बुद्धि अवधारणाओं के गठन में मुख्य भूमिका निभाती है।
9.         यह आनुवंशिकता और पर्यावरण के परस्पर क्रिया द्वारा निर्धारित होती है।


बुद्धि की प्रकृति
            बुद्धि, आनुवंशिकता द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर रहकर पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव में विकसित होती है। यह मानव मन की संज्ञानात्मक अवधारणा होती है जिसे निम्नलिखित विशिष्ट व्यवहारिक प्रतिक्रियाओं व्यक्त के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है: -
            - सूचना का प्रसंस्करण और समझने योग्य बनाना,
            - तेजी से संगणना (Computation),
            - स्मृति का सृजन और
            - जल्दी और उचित निर्णय लेना।
            यह मनुष्यों, जानवरों और पौधों द्वारा अपना अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण के साथ अनुकूलन के लिए उपयोग में लाई जाती है। बुद्धि एक अनदेखा गुणात्मक (qualitative) बल होता है, जो पिछले अनुभवों से सीखने में मदद करता है जिसके फलस्वरूप व्यवहार में संशोधन संभव हो पाता है। यह उपयुक्त प्रतिक्रियाओं और संज्ञानात्मक योग्यता (faculty) की एक प्राकृतिक शक्ति होती है जो आत्मनिष्ठ स्तर पर संचालित (operate) होती है।
            यह तो कौशल है और ही एक आवश्यक परिस्थिति होती है लेकिन एक प्राकृतिक संज्ञानात्मक क्षमता है जिसे बढ़ाया नहीं जा सकता है। विभिन्न अध्ययनों और सिद्धांतों से पता चलता है कि इसका विकास किशोरावस्था की समाप्ति के साथ ही रुक जाता है, अर्थात वयस्कता की शुरुआत के साथ ही यह पूर्ण रूप से विकसित हो चुकी होती है । लिंग, संस्कृति, आनुवंशिकता और उद्दीप्तिकारक (stimulating) एवं प्रेरणादायक वातावरण के आधार पर प्रत्येक मनुष्य में यह अनूठे अंदाज में मिलती है।

            गार्डनर (1992) ने कहा है कि "मेरे हिसाब से, मानव की बौद्धिक क्षमता को समस्या को हल करने के कौशल का एक समुच्चय (Set) होना चाहिए - व्यक्ति को वास्तविक समस्याओं या कठिनाइयों को हल करने में सक्षम करना जिसका वह सामना करती / करता है और जब जरूरत हो, एक प्रभावी उत्पाद उपलब्ध कराए - और समस्याओं को खोजने या सृजन करने की क्षमता हो - और इस तरह नए ज्ञान के अधिग्रहण के लिए नींव डालनी होगी
     
      

सन्दर्भ:
1.        NCERT (2013). XII, Book
2.    Binet, Alfred (1916) [1905]. "New methods for the diagnosis of the intellectual level of subnormals". The development of intelligence in children: The Binet-Simon Scale. E.S. Kite (Trans.). Baltimore: Williams & Wilkins. pp. 37–90. originally published as Méthodes nouvelles pour le diagnostic du niveau intellectuel des anormaux. L'Année Psychologique, 11, 191–244
3.      Wechsler, D (1944). The measurement of adult intelligence. Baltimore: Williams & Wilkins. ISBN 978-0-19-502296-4. OCLC 219871557. ASIN = B000UG9J7E.
4.         Frames of mind: The theory of multiple intelligences. New York: Basic Books. 1993. ISBN 978-0-465-02510-7. OCLC 221932479.
5.         https://en.wikipedia.org/wiki/Intelligence.



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व्यक्तित्व का विशेषक उपागम - भाग II


विशेषक उपागम का अर्थ
             विशेषक का अर्थ होता है आनुवंशिक रूप से निर्धारित ऐसी विशेषताएं जो जीवन भर स्थिर रहती हैं। मनोविज्ञान की बोल-चाल की भाषा में व्यवहार करने के समान, स्थिर और विशिष्ट तरीके को विशेषक कहा जाता है। ये एक व्यक्ति के अवलोकन योग्य, व्यक्तिपरक और अमूर्त गुण होते हैं जो विभिन्न परिस्थितियों में व्यवहार में स्थिरता सुनिश्चित करते हैं। विशेषक ऐसे मौलिक [मार्गदर्शक] कारक होते हैं जिनके आधार पर व्यवहार के परिणाम आधारित होते हैं। ये प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग तीव्रता और परिमाण (Magnitude) के साथ पाए जाते हैं। यह दृष्टिकोण विशेषकों को व्यक्तित्व के निर्माण खंडों के रूप में देखता है। एटकिंसन एवं साथियों के अनुसार "एक विशेषक किसी ऐसी विशेषता को कहा जाता है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अपेक्षाकृत स्थायी और सुसंगत (Consistent) तरीके से भिन्न होती है।" विशेषक सिद्धांतकारों का मानना ​​है कि विभिन्न व्यक्तित्व मनोवैज्ञानिक विशेषताओं के विभिन्न संयोजनों के परिणामस्वरूप होते हैं। विशेषकों के बीच सक्रिय और समकालिक अंतक्रिया अद्वितीय व्यवहार पैटर्न को जन्म देती है। विशेषकों के प्रकार और उनकी तीव्रता में समानता के आधार पर, व्यक्तियों को विभिन्न व्यक्तित्व प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है।

विभिन्न विशेषक सिद्धांत
भाग I
1.         ऑलपोर्ट का विशेषक सिद्धांत
2.         टेल का विशेषक सिद्धांत
भाग II
3.         आइजैंक का विशेषक सिद्धांत
4.         पाँच कारक सिद्धांत

3.       आइजैंक का विशेषक सिद्धांत
             एच. जे. आइजैंक (1952, 67 और 82) ने व्यक्तित्व के दो व्यापक आयाम बताये हैं जो जैविकी और आनुवंशिकी पर आधारित होते हैं। प्रत्येक आयाम में विभिन्न प्रकार के विशिष्ट विशेषक पाये जाते हैं।
(1)       न्युरोटिसीजम बनाम संवेगात्मक स्थिरतायह उस अवस्था संदर्भित होता है जिस को हद तक तक लोगों की अपनी भावनाओं पर नियंत्रण होता है। उनके अनुसार आयाम के एक सिरे पर ऐसे लोग होते हैं जो मानसिक रूप से विक्षिप्त होते हैं। वे चिंतित, मूडी, नर्वस, बेचैन और जल्दी से अपने आप पर नियंत्रण खो देने वाले होते हैं। दुसरे सिरे पर ऐसे लोग होते हैं जो शांत, समशीतोष्ण (Even Tempered), विश्वसनीय और आत्म नियंत्रित होते हैं। अर्थात एक सिरे पर संवेगात्मक रूप से स्थिर और दुसरे सिरे पर संवेगात्मक रूप से अस्थिर.
(2)       बहिर्मुखी बनाम अन्तर्मुखीयह सामाजिक निवर्तमान (outgoing) या सामाजिक रूप से पीछे हटने के विशेषक की डिग्री को परिभाषित करता है। एक सिरे पर वे लोग होते हैं, जो सक्रिय, मिलनसार, आवेगी और रोमांच चाहने वाले होते हैं। दुसरे सिरे पर वे लोग होते हैं जो निष्क्रिय, शांत, सतर्क और अपने आप में सिमटे रहने वाले होते हैं।
बाद में उन्होंने तीसरा एक और आयाम प्रस्तावित किया: -
(3)       मनोविक्षिप्तता बनाम सामाजिकतामनोवैज्ञानिक विकारों से पीड़ित व्यक्तियों के अध्ययन के बाद उन्होंने इसे अपने सिद्धांत में व्यक्तित्व के तीसरे आयाम के रूप में जोड़ा। उन्होंने सुझाव दिया कि व्यक्ति विशुद्ध रूप से मनोविक्षिप्त नहीं होता है, लेकिन आमतौर पर मानसिक रोगियों में पाए जाने वाले कुछ-न-कुछ लक्षण जरूर दिखाता है। एक व्यक्ति जो मनोविक्षिप्तता के आयाम पर उच्च स्कोर करता है उसमें शत्रुता, उदासीनतासामाजिक कायदे-कानूनों के लिए अवहेलना, लापरवाही, अनुचित संवेगात्मक अभिव्यक्ति, असामाजिक और वास्तविकता से निपटने में कठिनाई का अनुभव करता है।

व्यक्तित्व का पाँच कारक सिद्धांत
            टुप्स और क्रिस्टाल (1961), गोल्डबर्ग (1982), कैटेल, कोस्टा और मैकक्रे (1987) सभी एक जैसे ही परिणामों पर पहुंचे और व्यक्तित्व को पांच व्यापक कारकों में परिभाषित किया। इस मॉडल को OCEAN (अंग्रेजी भाषा के पांचों कारको के नाम के पहले अक्षरों को मिलाकर ये OCEAN शब्द बना है) मॉडल भी कहा जाता है। ये कारक होते हैं: -  
(i)        अनुभवों के लिए खुलापन,
(Ii)       अंतर्विवेकशीलता,
(Iii)      बहिर्मुखता,
(iv)      सहमतिशीलता, और
(v)       तंत्रिकाताप।

व्यक्तित्व कारकों के विशेषक
अ (O)
अं (C)
ब (E)
स (A)
तं (N)
स्वप्न
सामर्थ्य
गर्मजोशी व् प्यार से परिपूर्ण
विश्वास
मूड में बदलाव
सौंदर्यशास्त्री,
आदेश
सामाजिक
स्पष्टवादिता
दुश्चिन्तित
भावुक
कर्तव्यनिष्ठ
मुखर / बोल्ड
परोपकारिता / मानवता
निराशावादी
क्रियाशील
उपलब्धि के लिए उच्च प्रेरणा
कर्मठ
अनुपालन / आज्ञाकारिता
नकारात्मक
विचार
स्व अनुशासन
उत्साही
विनयशीलता
संवेगात्मक रूप से अस्थिर
मूल्य
विवेचना
सकारात्मक संवेग
कोमल मन
तनावग्रस्त

(i)       अनुभवों के लिए खुलापन - इस विशेषक वाले व्यक्ति उत्सुक, कला की सराहना करने वाले, नए विचारों को आजमाने के लिए हरदम तैयार, कल्पनाशील, उत्सुक और नवीनता को खोजने वाले होते हैं। वे अपरंपरागत विचारों का पालन करते हुए रचनात्मक, जोखिम उठाने वाले और अपने लिए नहीं राहें बनाना पसंद करते हैं।
(ii)      अंतर्विवेकशीलता - ऐसे लोग उच्च आत्म-नियंत्रण, आत्म-अनुशासन, अपने आवेगों के प्रति सचेत नियंत्रण, उपलब्धि प्रेरणा पर उच्च प्रदर्शन करने वाले और नियोजित (Planned) व्यवहार में विश्वास करते हैं।
(iiii)     बहिर्मुखता - इस विशेषता वाले व्यक्ति को दूसरों की संगत पसंद होती है, वे ऊर्जा से लबालब होते हैं, अत्यधिक मिलनसार, सामाजिक सक्रियता, कार्रवाई उन्मुख, उत्साही होते हैं और उनके मोबाइल फोन में अपेक्षाकृत बड़ी संख्या में संपर्क नंबर संग्रहीत होते।
(iv)      सहमतिशीलता - सहमतिशीलता एक सामाजिक विशेषक होता है जो समाज के लिए चिंता दर्शाता है। वे दूसरों के साथ आगे बढ़ने के लिए उन्मुख होते हैं, उन पर भरोसा किया जा सकता है, दयालु, विश्वासयोग्य, आशावाद पर उच्च और मानव प्रकृति के बारे में उनका दृष्टिकोण सकारात्मक होता है। दिलचस्प रूप से वे कई बार दूसरों की खातिर अपने हित के साथ समझौता कर लेते हैं। ऐसे लोगों के प्रति आम जनता अटूट विश्वास करती है।
(v)     तंत्रिकाताप - इस विशेषता वाले व्यक्ति का मूड बार-बार और जल्दी जल्दी बदलता है, दुश्चिन्तित, निराशावादी, नकारात्मक विचारों से घिरे हुआ, संवेगात्मक रूप से अस्थिर, उनके लिए तनाव से निपटना मुश्किल होता है और वे आलोचना के लिए कम सहिष्णुता होते हैं।



References:
1.         https://en.wikipedia.org/wiki/Gu%E1%B9%87a.
2.         http://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/ 23532/1/Unit-1.pdf.
3.         https://dictionary.apa.org/surface-trait.
4.         https://en.wikipedia.org/wiki/Big_Five_ personality_traits.


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