मनशास्त्र और कानून सम्बन्धी परिप्रेक्ष्य
(i) मनशास्त्रऔर विधिशास्त्र
(ii) विधिशास्त्र का मनशास्त्र
(iii) विधिशास्त्र में मनशास्त्र
ब्लैकबर्न (1996) के अनुसार
कपार्डिस द्वारा उद्धृत, (2010)
(i) मनशास्त्र और कानून
– मनशास्त्र एवं विधिशास्त्र का ऐसा संयुक्त प्रयास है जिसमे वकील, मजिस्ट्रेट, न्यायाधीश, जूरी, अपराध और अपराधियों
से संबंधित मनःशास्रीय अनुसंधान किया जाता है।
(ii) विधिशास्त्र का मनशास्त्र-
इस तरह के मुद्दों, जैसे क्यों व्यक्ति जाने अनजाने में कानूनों का उलंघन करते हैं,
सम्बंधित मनःशास्रीय अनुसंधान।
(iii) विधिशास्त्र में मनशास्त्र -
विधिशास्त्र में मनशास्त्र एवं इसके सिद्धांतों का विशिष्ट अनुप्रयोग।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
कानून प्रणाली और इसकी कार्य शैली पूर्ण रूप से तर्क पर आधारित
होती है। मनशास्त्र कानून को मनो-व्यवहार संबंधी संदर्भ प्रदान करता है। इसका अर्थ
है कि मनःशास्त्र किसी भी कानून की व्याख्या मानव व्यवहार के दृष्टिकोण से करता है।
कानून सम्बन्धी एक नए दृषिटकोण का जन्म हुआ जिसके जिसके अनुसार कानून की व्याख्या स्थानीय सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं
के संबंध में ही की जानी चाहिए। इस दृष्टिकोण से विशुद्ध रूप से एक अंतःविषय क्षेत्र
का उदय हुआ जिसे आमतौर पर मनशास्त्र और विधिशास्त्र के रूप में जाना जाता है। इस का
उद्भव २०वीं शताब्दी की शुरुआत में कानून प्रणाली में दुनिया भर के मनोवैज्ञानिकों
द्वारा दिखाई गई अकादमिक रुचि का परिणाम था।
सिगमंड फ्रायड, ह्यूगो मुंस्टरबर्ग, जे एम कैटेल, जे बी वाटसन,
एच ई बर्ट, ए आर लुरिया और कई अन्य मनोवैज्ञानिकों ने मनशास्त्र और विधिशास्त्र के शुरूआती विकास में योगदान दिया। प्रारंभ में क़ानूनविद
न्यायशास्त्र में मनशास्त्र की भूमिका को स्वीकार करने के लिए कतई तैयार नहीं थे। हालांकि, कानून पर प्रत्यक्षदर्शी
की गवाही सम्बंधित मनःशास्त्र के वैज्ञानिक
योगदान ने कानूनी क्षेत्र में अपनी उपयोगिता
साबित की। इस विषय ने एक लंबा और विवादों से
भरा सफर तय किया है, और आज तकनीक सक्षम अनुसंधान और वैज्ञानिक निष्कर्षों के फलस्वरूप
इसकी उपयोगिता आश्चर्य जनक रूप से बढ़ गई है।
भारतीय के प्रोफेसर सी आर मुकुंदन ने ब्रेन इलेक्ट्रिकल ऑसिलेशन
सिग्नेचर (बीईओएस) नामक तकनीक की खोज की जिसका
इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है।
भारत विशिष्ट कुछ महत्वपूर्ण
घटनाएँ: -
(i) 1968 - सीबीआई की फोरेंसिक
विज्ञान प्रयोगशाला में लाई डिटेक्शन डिवीजन की स्थापना।
(ii) 1989 - न्यायालय द्वारा प्रथम
नार्को-विश्लेषण का आदेश।
(iii) 2010 - सुप्रीम कोर्ट ने
फैसला सुनाया कि मनोवैज्ञानिक झूठ का पता लगाने वाले यंत्र, नार्को-विश्लेषण, बीईओएस
जैसे परीक्षण केवल व्यक्ति की सूचित सहमति से ही किये जा सकते हैं और उनसे मिले परिणामों
को सबूत के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
परिभाषा
विधिशास्त्र मनशास्त्र
व्यक्तियों पर कानून के प्रभाव और व्यक्तियों का कानून पर प्रभाव का वैज्ञानिक अध्ययन
होता है; विधिशास्त्र मनशास्त्र में कानूनी संस्थानों और कानून के संपर्क
में आने वाले लोगों के लिए मनशास्त्र के अध्ययन और अभ्यास का अनुप्रयोग भी शामिल होता
है (ओग्लॉफ, 2000)।
मन:विधिक अनुसंधान में न्यायशास्त्र, मूल कानून, कानूनी प्रक्रियाएं
और कानून के उलंघन का अध्ययन करने के लिए मनशास्त्र
के तरीकों और इससे अर्जित ज्ञान का प्रयोग किया जाता है (फेरिंगटन एट अल,1979)।
अर्थ-सह-परिचय
मनशास्त्र और विधिशास्त्र कोई विशेष शाखा नहीं है, बल्कि यह एक
उदार विषय होता है जिसमें मनशास्त्र की विशिष्ट शाखाएं अपना योगदान देती हैं। उदाहरण
के लिए, खंडपीठ के चयन में सामाजिक मनःशास्त्री से परामर्श एवं सलाह ली जाती है।
न्यायशास्त्र में बतौर परामर्श और सलाहकार के रूप में इस विषय
का महत्वपूर्ण योगदान होता है। खोजी साक्षात्कार के 5 चरणों वाले शांति मॉडल की लोकप्रियता
और विधिशास्त्र में व्यापक अनुप्रयोग इस बात की पुष्टि करता है यह विषय विधिशास्त्र
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मॉडल मनःशास्त्र की ही देन है।
विधिशास्त्र में मनशास्त्र
का योगदान
मनशास्त्र की विभिन्न शाखाओं
ने विधि व्यवस्था में भरपूर योगदान दिया है। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं: -
(i) संज्ञानात्मक मनशास्त्र (चश्मदीद गवाह)
(ii) सामाजिक मनशास्त्र (परीक्षण के दौरान अभियुक्त
व्यवहार)
(iii) नैदानिक मनशास्त्र (मुकदमा सामना करने में समर्थता)
(iv) विकासात्मक मनशास्त्र (बच्चों की गवाही)
(v) जैविक मनशास्त्र (पॉलीग्राफ)
(vi) औद्योगिक और संगठनात्मक मनशास्त्र (कार्यस्थल
का वातावरण)
(vii) साइबरसाइकोलॉजी (साइबर अपराध और साइबर अपराधी)
(viii) आपराधिक मनशास्त्र (इरादा और अपराध की प्रक्रिया)
(ix) फोरेंसिक मनशास्त्र (नार्को-विश्लेषण)
कानून या विधिशास्त्र को मनशास्त्र की आवश्यकता क्यों है?
(i) देश के कानून का उद्देश्य सत्यापित करना।
(ii) मनोवैज्ञानिक मान्यताओं पर आधारित नियम कानून
बनाना।
(iii) आचरण और व्यवहार के नियमों से संबंधित अदालतों
द्वारा की गई व्याख्याओं का सत्यापन या सकारात्मक आलोचना करना।
(iv) विधिशास्त्र की इस धारणा का वैज्ञानिक ढंग से
खंडन करना की व्यक्ति की शारीरिक प्रक्रियाओं में संवेगों का कोई सम्बन्ध होता है
(केर्न्स, 1935)।
(v) मनशास्त्र और सबूत के बीच संबंधों का अध्ययन।
(vi) झूठ का पता लगाना (अदिति शर्मा केस ईईजी तकनीक
का उपयोग)।
(vii) तलाक के मामले में बच्चे की कस्टडी (सारिका और
कमल हसन केस)।
(viii) विभिन्न दंडात्मक प्रतिबंधों के प्रति जनता का
प्रत्यक्षण और दृष्टिकोण (सन 2012 में निर्भया कांड)।
(ix) आतंकवादियों में प्रेरणा का स्तर (आत्मघाती मिशन
पर) (मुदासिर अहमद खान, पुलवामा हमले का मास्टरमाइंड, 2019)।
(x) मीडिया द्वारा केस की अत्यधिक चर्चा और जूरी
निर्णय पर इसका प्रभाव (कमांडर नानावती मामला)।
(xi) मध्यस्थता और समझौता वार्ता।
(xii) ऐसी मनोवैज्ञानिक सूचनायें उपलब्ध करवाना जो जाँच
में तेजी लाती हैं।
मौजूदा स्थिति
(i) भारत की अधिकांश अपराध
जांच एजेंसियों में मनशास्त्र का एक समर्पित विभाग है।
(ii) ज्यादातर वकील मनशास्त्र
का कोर्स करते हैं।
(iii) लॉ डिग्री कोर्स के छात्र
इस संयोजन को चुन रहे हैं।
(iv) लिव-इन-रिलेशनशिप के कारण
उत्पन्न मनो-कानूनी मुद्दों के समाधान में मदद।
(v) भविष्य में हमारे जीवन
में कृत्रिम बुद्धि का अपरिहार्य उपयोग जो कई सारे मानव व्यवहार से सम्बंधित जटिल मुद्दों
को जन्म दे सकता है, उन मुद्दों के समाधान में योगदान।
छात्रों के लिए अवसर
भारत के कुछ प्रमुख संस्थान
जो मनशास्त्र और कानून से संबंधित डिग्री या डिप्लोमा प्रदान करते हैं
(i) राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय,
गुजरात फोरेंसिक मनशास्त्र में एम एस सी प्रदान करता है।
(ii) रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय (गुजरात)।
(iii) फोरेंसिक विज्ञान संस्थान, मुंबई।
(iv) लोक नायक जयप्रकाश नारायण नेशनल इंस्टीट्यूट
ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड फोरेंसिक विज्ञान।
(v) एन एल एस आई यू, बैंगलोर 5 वर्षीय एल एल बी पाठ्यक्रम
के भाग के रूप में मनशास्त्र की पढाई।
(vi) पुणे विश्वविद्यालय आपराधिक और फोरेंसिक मनशास्त्र
में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्रदान करता है।
सन्दर्भ:
Cains, H. (1935). Law and
Social Sciences. Read Books.
Farrington, D.P.,
Hawkins, K., & Lloyd-Bostock, S.M.A. (1979). Psychology, Law and Legal Processes. London: Macmillan.
Kapardis, A. (2010).
Psychology and Law: A Critical Introduction, (3rd Ed).
Ogloff, J. R. P. (2004) -
Taking Psychology and Law into the Twenty-First Century. Springer.
Vaya, S. L. (2017).
Forensic evidence in civil and criminal trial. http://nja.nic.in/ Concluded_Programmes/2017-18.
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