Wednesday, June 15, 2022

व्यावहारिक मनोविज्ञान का इतिहास

          

लगभग 5152 वर्ष पहले पारंपरिक चंद्र कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष के 11 वें दिन (नवंबर - दिसंबर) यानि मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन गीता का उपदेश दिया गया था जो व्यावहारिक मनोविज्ञान का एक अद्भुत उदाहरण है। केवल अपने विचारों के माध्यम से श्री कृष्ण ने अर्जुन के सभी भ्रम दूर कर दिए थे और उसे मानसिक रूप से अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार कर लिया था।

 

आधुनिक व्यावहारिक मनोविज्ञान के संस्थापक       

          ह्यूगो मस्टरबर्ग को आधुनिक व्यवहारिक मनोविज्ञान का संस्थापक माना जाता है।

 

इतिहास

          अरस्तु और प्लेटो से लेकर पेस्टलोजी, फ्रांसिस गाल्टन, विलियम स्टर्न, थोरंडाइक, वॉलटर स्कॉट और फिर ह्यूगो मस्टरबर्ग ने शिक्षा एवं जीवन में मनोविज्ञान की भूमिका पर प्रकाश डाला है। इस दौरान कई महत्वपूर्ण पुस्तकों जैसे “The soul of child” (William Thierry Preyer, 1892); “Teachers handbook of Psychology” (James Sully, 1886); “Witness Testimony” (William Stern, 1910); Educational Psychology (E. L. Thorndike, 1903); “Psychology and Industrial Efficiency” (Musterberg, 1913) इत्यादि प्रकाशित की गई जिनमें मनोविज्ञान की व्यावहारिकता पर प्रकाश डाला गया।

 

          इस दौरान कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों का निर्माण हुआ जिन्होंने इस विषय को लोगों के करीब लाने में अपनी भूमिका  निभाई। कुछ पत्रिकाएँ भी शुरू की गई जिन्होंने नये नये अनुसंधानों एवं सिद्धांतों तक आम  लोगों की पहुंच बनाई। “Psychological Clinic, Journal of applied Psychology, Association of Consulting Psychologists, American Association of Applied Psychology इत्यादि। मनोविज्ञान को व्यावहारिकता में लाने के लिए 1921 में टरमन द्वारा जीनियस स्टडी आरम्भ की गई और हरमैन रोशा द्वारा रोशा स्याही धब्बा टेस्ट का निर्माण किया गया। 1925 में मनोविज्ञान ने सेना में अपनी उपयोगिता साबित की। वॉटसन ने व्यवहारवाद की शुरुआत की और दिखाया कि वातावरण का व्यक्तित्व पर सार्थक प्रभाव पड़ता है। 1928 में मार्गरेट मीड ने साबित किया कि सामाजिक कारकों में परिवर्तन करके बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन किया जा सकता है। 1938 में मरे एवं मॉर्गन ने TAT का निर्माण किया। मनोविज्ञान का प्रयोग लगभग हर क्षेत्र में होने लगा, उदाहरण के लिए शिक्षा, नैदानिक, सैन्य, स्वास्थ्य आदि। इसके बाद तो मनोविज्ञान का विस्तार तेजी से हुआ। 1979 में एलिज़ाबेथ लोफ्टुस ने चश्मदीद गवाह की रचना की जिसके कारण मनोविज्ञान न्यायिक प्रणाली में अपनी जगह बनाने में सफल हुआ जिसके फलस्वरूप फोरेंसिक मनोविज्ञान का जन्म हुआ और उसे मान्यता प्राप्त हुई। इसके बाद तो मनोविज्ञान ने आर्थिक क्षेत्र, राजनितिक, समाज, संगठनात्मक एवं खेल में भी अपनी उपयोगिता साबित की। इस प्रकार मनोविज्ञान एक लंबा सफर तय करके आज के आधुनिक युग तक पहुँच चुका जहां यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास में भी अपना योगदान दे रहा है।

 

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