फोरेंसिक का प्रयोजन
"एक
अपराधी हमेशा अपने अपराध के दृश्य से अपने साथ कुछ संकेत ले जाता है और अपनी उपस्थिति
के भी कुछ संकेत पीछे छोड़ जाता है " (लेन, 1992)।
फोरेंसिक
मनःशास्त्र: का प्राथमिक उद्देश्य आम जनता का कानून और न्यायिक प्रणाली में विश्वास को पुनर्स्थापित करना होता है।
फोरेंसिक
मनःशास्त्र की विषय वस्तु
फोरेंसिक
मनःशास्त्र: में मनःशास्त्र के दृष्टिकोण से अपराधियों का अध्ययन किया जाता है। इसके
अध्ययन के दायरे में निम्नलिखित क्षेत्र आते हैं: -
(i) यह जानना कि किस वजह से इंसान आपराधिक व्यवहार
करता है।
(ii) न्यायपालिका और कानूनी व्यवस्था को सलाह।
(iii) अपराध जांच एजेंसियों को सहयोग।
(iv) अपराधियों का मनःशास्त्रीय(फोरेंसिक) मूल्यांकन।
(v) अदालत में विशेषज्ञ गवाही।
(vi) अपराध स्थल विश्लेषण।
(vii) एक अपराधी द्वारा फिर से हिंसा करने की भविष्यवाणी।
(viii) नैतिक मुद्दे।
(ix) जेल और कैदी।
(i) यह जानना कि इंसान किस वजह से आपराधिक व्यवहार करता है - उन कारकों की खोज करना जिसके कारण अपराध हुआ है जैसे सुझाव, उकसाना, अस्थिर मानसिक स्थिति आदि। यह आपराधिक व्यवहार में मनःशास्त्रीय कारकों की भूमिका को उजागर करने के लिए एफ पी की तरफ से एक शैक्षिक योगदान होता है।
(ii) न्यायपालिका और कानूनी व्यवस्था को सलाह –
अदालती मामलों का आकलन। आकलन का अर्थ होता है की यह पता लगाना कि अपराधी मुकदमे का
सामना करने के लिए मनःशास्त्रीय रूप से सक्षम है या नहीं। इसके साथ ही जेलों में अदालत
के फैसलों को लागु करवानें में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। फोरेंसिक मनःशास्त्र: स्वीकारोक्ति
की सत्यता का पता लगाने में मदद करता है।
(iii) अपराध जांच एजेंसियों को सहयोग –
फोरेंसिक मनःशास्त्र जांचकर्ताओं को प्रामाणिक जानकारी का पता लगाने, साक्षात्कार तकनीक,
समस्या समाधान, व्यवहार प्रबंधन, निर्णय लेने, निष्कर्ष पर पहुंचने, अपराधी की मनःस्थिति
की पेचीदगियों और अपराधियों से प्रभावी ढंग से निपटने के उपाय सुझाने की सलाह देता
है।
(iv) अपराधियों का मनःशास्त्रीय (फोरेंसिक) मूल्यांकन
– मूल्यांकन में उन कारकों की जांच शामिल होती हैं जो अपराधी के नियंत्रण से परे होते
हैं जैसे, अपराध की प्रक्रिया, अपराधी की पृष्ठभूमि, पारिवारिक वातावरण, पर्यावरण कारक,
तत्काल स्थानीयता कारक और मस्तिष्क से संबंधित कारक। इस प्रकार का मूल्यांकन अपराधी के व्यवहार की भविष्यवाणी
करने में मदद करते हैं।
(v) अदालत में विशेषज्ञ गवाही
- फोरेंसिक मनःशास्त्र कानूनी प्रणाली के दायरे के भीतर रहकर ही मनःशास्त्रीय सिद्धांतों
और तकनीकों पर आधारित प्रासंगिक साक्ष्य प्रदान करता है। कई मुद्दों पर रेंसिक मनःशास्त्री
अदालत में गवाही देता है, जैसे, बच्चे की हिरासत, मुकदमे का सामना करने किए अपराधी
की मनःशास्त्रीय योग्यता, आपराधिक प्रोफाइलिंग, जूरी का चयन और रिपोर्ट लेखन।
(vi) अपराध स्थल विश्लेषण –
अपराध-स्थल एक महत्वपूर्ण स्थान होता है जो अपराधी तक पहुँचने में महत्वपूर्ण सुराग
प्रदान करता है। यह अपराधी द्वारा छोड़े गए
व्यवहारिक पदचिन्हों की व्याख्या करने और उनमे छिपे मकसद सम्बन्धी पर सलाह देता है।
मनःशास्त्र के दृष्टिकोण से साक्ष्यों का मूल्यांकन जैसे हमले की शैली एवं प्रकृति,
आपराधिक कृत्य का क्रम, अपराध में प्रयुक्त वस्तुयों के आधार पर अपराधी की पसंद आदि।
(vii) एक अपराधी द्वारा फिर से हिंसा करने की भविष्यवाणी
–
इसमें अपराधियों की रिहाई के बाद हिंसा करने की संभावना का पता लगाने की कोशिश की जाती
है। फोरेंसिक मनःशास्त्र संभावितखतरनाक गतिविधियों में शामिल होने और समाज के मानदंडों
के उल्लंघन की संभावना का अनुमान लगाने के लिए मूल्यांकन करता है। अपराधी को जमानत
देने और सजा पर निर्णय लेने के संबंध में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(viii) नैतिक मुद्दे –
फोरेंसिक मनःशास्त्रियों को अपराधी के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना कानूनी सीमाओं
के भीतर रहकर ही काम करना चाहिए। मनःशास्त्रीय सेवाएं जैसे मनःशास्त्रीय परिणामों,
उपकरणों का दुरुपयोग, अपराधी की सूचित सहमति, अपराधी की निजी जानकारी आदि के कारण उत्पन्न
होने वाले नैतिक मुद्दों के प्रति फॉरेंसिक मनःशास्त्री को नैतिकता का कड़ाई से पालन
करना चाहिए।
(ix) जेल
और कैदी – कैदियों के बीच आपसी संबंध, कैदियों का एक दूसरे से अपराध
के नए तरीके सीखना, अपराधियों को एकांत या अलगाव की स्थिति में रखने की रणनीति से उनमें
सुधार की सम्भावना की जांच करना, कैदियों की दैनिक दिनचर्या एवं जेल के भीतर और अन्य
साथियों के साथ व्यवहार का मूल्यांकन तथा समय-समय
पर विषय से संबंधित उत्पन्न होने वाले मुद्दों का अध्ययन आदि शामिल होता है।
कैदियों का जेल में प्रवेश करने और समाज में
फिर से जाने के पहले विभिन्न मनःशास्त्रीय गुणधर्मों जैसे व्यक्तित्व (असामाजिक),
सामाजिकता, पागलपन का स्तर, आदि के लिए मूल्यांकन किया जाता है। कैदियों को मनोचिकित्सा
और परामर्श जैसी जरुरी सेवाएं भी दी जाती हैं।
एफपी
द्वारा संबोधित किये जाने वाले कुछ जटिल मुद्दे –
पागलपन
- मानसिक स्थिति के कारण दोषी नहीं होने की दलील देना।
ढोंग
(उर्फ मलिंगरिंग) - अपने द्वारा किये गए गलत कामों की जिम्मेदारी
से बचने का प्रयास।
अतिशयोक्ति
और झूठ - अपनी और ध्यान खींचने, विशेषाधिकार, मुआवजा या सहानुभूति पाने के लिए मानसिक
बीमारी के लक्षणों को जानबूझकर बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना।
मनोचिकित्सा
की जटिलताएँ - मामला विचाराधीन होने पर भी पीड़ित को मनोचिकित्सा
प्रदान करना।
झूठ
का पता लगाना - पॉलीग्राफ मशीन का उपयोग यह आकलन करने के
लिए करना कि आरोपी सच कह रहा है या नहीं।
संदर्भ:
Canter, D. (2010). Forensic Psychology: A Very Short
Introduction-Oxford University Press.
Lane, B. (1992). The Encyclopedia of Forensic Science. Headline
Book Publishing.
Sandie Taylor, S. (2015). Forensic
Psychology: The Basics. Routledge.
Solomon M. F., & Wrightsman, L. S. (2008). Forensic
Psychology (3rd Ed). Wadsworth Publishing.
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