Saturday, June 4, 2022

प्रत्यक्षदर्शी स्मृति की परिशुद्धता

परिचयात्मक नोट


मनःशास्त्र और न्यायपालिका के इतिहास में प्रत्यक्षदर्शी स्मृति की सटीकता एक बहस का विषय रहा है क्योंकि यह अक्सर अधूरी होती है और कभी-कभी तो गलत भी होती है। और दिलचस्प बात यह है कि झूठी यादें सच्ची यादों की तुलना में समय के साथ बरकरार रहती हैं (शपिरा और पांस्की, 2019) अर्थात उनमे कोई परिवर्तन नहीं होता। स्मृति के इस प्रकार के व्यवहार ने शोधकर्ताओं को इसकी विस्तार से जांच एवं अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया है। प्रयोगों से पता चला कि मनुष्य की संज्ञानात्मक प्रणाली की अस्थिरता के कारण ऐसा होता है। प्रत्यक्षदर्शी स्मृति की सटीकता सूचना के प्रसंस्करण पर निर्भर होती है। स्कैचर (1999) ने अपने प्रयोगों के आधार पर बताया कि सटीकता की कम दर गवाह द्वारा सूचनाओं के उथले प्रसंस्करण का परिणाम होती है।

 

प्रत्यक्षदर्शी स्मृति को प्रभावित करने वाले कारक

(i)        रूढियुक्तियाँ और पूर्वाग्रह - ऑलपोर्ट ने बताया है कि हमारे पूर्वाग्रह भी हमारी स्मृति में बसी यादों को विकृत करते हैं (लाहे, 2007 में उद्धृत) बाना जी और भास्कर (1999) ने बताया कि रूढियुक्तियाँ स्मृति को विकृत करती है (प्रतिभागियों को अपराधियों का नाम दिखाना)

(ii)       स्थितिजन्य कारक - हिंसक अपराधों में संलिप्त अपराधियों की संख्या यदि ज्यादा हो तो गवाह द्वारा पहचानने की  सटीकता घट जाती है (27% तक )  (क्लिफोर्ड एंड हॉलिन, 1981)

(iii)      यौन और शारीरिक शोषण की "दमित यादों" (एक बच्चे के रूप में जीन पियाजे का अपहरण) का स्मरण। वास्तविक घटनाओं की विकृतियों और सुझावों से परिपूर्ण पूछताछ से कभी-कभी व्यक्ति में झूठी यादें पैदा हो सकती हैं।

(iv)      प्रत्यक्षदर्शी से संबंधित कारक - जैसे, लिंग, आयु (बच्चों और किशोरों के प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य बौद्धिक कमी के कारण वयस्कों की तुलना में विकृति के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं), बुद्धि, व्यक्तित्व, चेहरा पहचानने का कौशल, नशा (नशा स्मृति की सटीकता को कम कर देता है), मनोदशा (सूचना का स्मरण सबसे अच्छा होगा जब उसका मूड वैसा ही हो जब व्यक्ति ने पहली बार घटना को देखा था), दबाव एवं तनाव का स्तर, स्वभाव, मनो-शारीरिक अक्षमता, चेतना की स्थिति, संवेगात्मक प्रतिक्रिया, तत्काल प्रतिक्रिया की प्रकृति, नींद की कमी, कल्पना क्षमता आदि।

(v)       समय - किसी घटना के घटित होने और उसे याद करने के बीच का अंतर जितना उसे होगा, प्रत्याह्वान की सटीकता उतनी ही कम होगी।

(vi)      सम्मोहन और प्रत्यक्षदर्शी स्मृति - सम्मोहन तकनीक का उपयोग व्यक्ति को अतीत में वापस लाने के लिए किया जाता है। 1976 में अमेरिका में एक बस चालक ने बच्चों के अपहरणकर्ता के वाहन की नंबर प्लेट का प्रत्याह्वान सम्मोहन की अवस्था में ही किया। हालांकि, अध्ययनों से मिले परिणाम बताते हैं कि सम्मोहन के तहत व्यक्ति उन घटनाओं को भी याद कर सकते हैं जो कभी हुई ही नहीं थीं। इसे एक वैध तकनीक के रूप में स्थापित करने के लिए और अधिक वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता है।

(vii)     पक्षपाती, विचारोत्तेजक और गलत प्रश्न - विकृत और विचारोत्तेजक प्रकार के प्रश्न प्रत्याह्वान की गई यादों की सटीकता को काफी हद तक घटा देते हैं।

(viii)    गलत सूचना प्रभाव - गवाह को दी गई घटना के बाद की जानकारी में हेरफेर करने से गवाह के मन में भ्रम पैदा हो जाता है, जो उस जानकारी को अपने वर्णन में शामिल कर लेते हैं। यदि घटना के बाद की जानकारी मूल घटना के अनुरूप है, तो याद करने की सटीकता 75% होगी जबकि घटना के बाद की जानकारी

असंगत होने पर यह 41% होती है और तटस्थ जानकारी के मामले में 50% होती है (सिंह, 2014)

(ix)      स्रोत-आरोपण त्रुटि - यह तब होता है जब कोई व्यक्ति एक स्रोत से प्राप्त स्मृति का श्रेय दूसरे स्रोत  को देने लगता है।

(x)       जबरन जानकारी उगलवाना - जिन गवाहों को घटना के बारे में बताने के लिए लिए मजबूर किया जाता है, वे सूचना की सटीकता से समझौता करने लगते हैं।

(xi)      अन्य नस्ल प्रभाव - अपने से दूसरी नस्ल के लोगों की पहचान करना व्यक्तियों के लिए कठिन होता है जिसका सीधा प्रभाव प्रत्याह्वान की सटीकता पर पड़ता है।

(xii)     एक्सपोजर समय - गवाह द्वारा आपराधिक गतिविधि का एक्सपोजर जितना कम होगा, याद की गई जानकारी की सटीकता उतनी ही कम होगी।

(xiii)    अपराध स्थल पर हथियारों की उपस्थिति - इस के कारण उत्पन्न भय या तनाव से व्यक्ति सूचना को ठीक से ग्रहण नहीं कर पाता है जिसके कारण मस्तिष्क में सूचना का सही से प्रसंस्करण नहीं हो पाता है और सटीक प्रसंकरण की अनुपस्थिति में सूचना भंडारित नहीं हो पाती है। भण्डारण नहीं होने पर प्रत्याह्वान लगभग असंभव हो जाता है। 

 

न्यायप्रणाली का अपराध

(i)        गोपाल शेटे, एक होटल प्रबंधक, मामला (2009 में बलात्कार का दोषी और जेल में 7 साल की सजा)

(ii)       मधुबाला मंडल 59 वर्षीय महिला मामला (जेल में 3 वर्ष)

(iii)      विष्णु तिवारी केस (23 साल की उम्र में बलात्कार का दोषी और आगरा जेल में 20 साल बिताने के बाद 43 साल की उम्र में जेल से रिहा)

(iv)      संतोष केस (बलात्कार का आरोपी, बाद में डीएनए टेस्ट ने अपनी बेगुनाही साबित की और अदालत ने बरी कर दिया, 15 लाख मुआवजा)

(v)       रुदुल शाह मामला, 1983 (रुदुल साह को 1953 में उनकी पत्नी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 1968 में एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा बरी कर दिया गया था, जिन्होंने अगले आदेश तक जेल से उनकी रिहाई का निर्देश दिया था। उनके निर्दोष साबित होने के (बरी होने के आदेशबावजूद वो 14 साल तक जेल में बंद रहे। 1982 में मीडिया ने उनकी दुर्दशा पर प्रकाश डाला और तब जाकर वे रिहा किये गए। उसी दौरान उनकी ओर से जनहित याचिका दायर की गई)

 

References:

Banaji, M. R., & Bhaskar, R. (1999). Implicit stereotypes and memory: The bounded rationality of social beliefs. In D. L. Schachter & E. Scarry (Eds.) Memory, brain and belief. Cambridge, MA: Harvard University Press.

Clifford, B. R., & Hollin, C. R. (1981). Effects of the type of incident and the number of perpetrators on eyewitness memory. Journal of Applied Psychology, 66(3), 364–370. https://doi.org/10.1037/0021-9010.66.3.364.

Lahey, B. B. (2007). Psychology An introduction. McGraw Hill.

Pansky, A., & Nemets, E. (2012). Enhancing the quantity and accuracy of eyewitness memory via initial memory testing. Journal of Applied Research in Memory and Cognition, 1(1), 2–10. doi:10.1016/j.jarmac.2011.06.001

Shapira, A. A., & Pansky, A. (2019). Cognitive and metacognitive determinants of eyewitness memory accuracy over time. Metacognition and Learning. doi:10.1007/s11409-019-09206-7

सिंह, . के. (2014). उच्चतर सामान्य मनोविज्ञान: मोतीलाल बनारसीदास

 

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