ऐतिहासिक परिचय
संगठनात्मक मनोविज्ञान संगठनात्मक सेट अप में मानव व्यवहार का
अध्ययन करता है। संगठनात्मक मनोविज्ञान का मुख्य लक्ष्य इष्टतम उत्पादन के साथ कर्मचारियों
की संतुष्ट होती है। संगठनात्मक मनोविज्ञान की शुरुआत बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशक
में हुई थी इसलिए इसका इतिहास अपेक्षाकृत छोटा है।
1903 में वाल्टर डिल स्कॉट (The Theory of Advertising) और
1910 में ह्यूगो मस्टरबर्ग द्वारा प्रकाशित दो पुस्तकों (Psychology and
Industrial Efficiency) को संगठनात्मक मनोविज्ञान का प्रारंभिक बिंदु माना जाता है।
स्कॉट ने व्यापार में एप्लाइड मनोविज्ञान के योगदान पर प्रकाश डाला है जबकि मस्टरबर्ग ने कार्य के लिए
उपयुक्त मानसिक क्षमताओं वाले व्यक्तियों के चयन पर प्रकाश डाला है।
प्रथम विश्व युद्ध ने संगठनात्मक मनोविज्ञान की आवश्यकता के द्वार
खोल दिए। इस युद्ध के दौरान बड़ी संख्या में सैनिक कई स्थानों पर तैनात किये गये थे।
संगठनात्मक मनोवैज्ञानिकों को भर्तियों के लिए सैनिकों का मनोवैज्ञानिक आकलन करके उनको
तदनुसार स्थानन के लिए नियोजित किया गया था। उनके मूल्यांकन के लिए अल्फा (साक्षर लोगों
के लिए) और बीटा (निरक्षर लोगों के लिए) नामक दो परीक्षणों का उपयोग किया गया था।
थॉमस एडिसन जैसे महान वैज्ञानिक भी मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के
महत्व को समझते थे जिसके फलस्वरूप उन्होंने 150 – प्रश्नों वाले एक परीक्षण का आयोजन
किया था। इस आयोजन में लगभग 900 लोगों ने आवेदन किया था जिसको केवल 45 (5%) लोग ही
उत्तीर्ण कर पाए थे। आज संगठनात्मक मनोविज्ञान ने विविध क्षेत्रों में अपनी उपयोगिता
को साबित कर दिया है।
गिल्बर्ट दंपति प्रमुख वैज्ञानिक थे जिन्होंने संगठनात्मक मनोविज्ञान
के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने गतियों का अध्ययन करके उत्पादकता
में सुधार और कर्मचारियों की थकान को कम करने सम्बन्धी अनुसंधान किये।20वीं सदी के
तीसरे दशक (1930) में संगठनात्मक मनोविज्ञान का व्यापक विस्तार हुआ।
हॉथोर्न अध्ययन (At Hawthorne plant of Western Electric
Company, Chicago) ने मनोवैज्ञानिकों को काम के माहौल की गुणवत्ता और कर्मचारियों के
दृष्टिकोण का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। हॉथोर्न अध्ययन का प्रमुख योगदान यह
था कि इसने मनोवैज्ञानिकों को कार्यस्थल पर मानवीय संबंध तथा कर्मचारियों के दृष्टिकोण
के प्रभाव का पता लगाने के लिए प्रेरित किया (ओल्सन, वर्ले, सैंटोस और सालास,
2004)।
मानव संसाधन प्रबंधन के उभरते क्षेत्र ने कर्मचारियों के निष्पक्ष
चयन तकनीकों को विकसित करने के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों को अपनाया। 1960 के दशक
में प्रबंधकों के लिए संवेदनशीलता प्रशिक्षण और टी-ग्रुप (प्रयोगशाला प्रशिक्षण समूह)
का भरपूर उपयोग हुआ। “Beyond Freedom and Dignity” नामक पुस्तक में बी एफ स्किनर
(1971) ने संगठनों में कर्मचारियों के व्यवहार में परिवर्तन के लिए इसके इस्तेमाल की
वकालत की है। 80 और 90 के दशकों में संगठनात्मक मनोविज्ञान में चार महत्वपूर्ण बदलाव
हुए।
(1) सांख्यिकीय तकनीकों और विश्लेषण के तरीकों का
बढ़ता उपयोग,
(2) उद्योग के लिए संज्ञानात्मक मनोविज्ञान के अनुप्रयोग
में रुचि,
(3) पारिवारिक जीवन और फुर्सत की गतिविधियों पर कार्य
का प्रभाव, और
(4) नौकरी के लिए उपयुक्त व्यक्तियों का चयन।
21वीं सदी के पहले दशक में विकसित हुई कंप्यूटर प्रौद्योगिकी ने
ओ पी के प्रतिमानों में तेजी से बदलाव किया। अविश्वसनीय गति और सटीकता के साथ कंप्यूटर
का उपयोग परीक्षणों के लिया किया गया। मशीनों के बेहतर डिजाइन और उन्हें मनुष्यों के
अनुकूल बनाने तथा उनके स्वचालन में कंप्यूटर एवं ओ पी का साँझा इस्तेमाल किया गया।
कर्मचारियों को ई-मॉड्यूल के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया जिसे बिजली की गति से होने
वाले संचार ने मुमकिन बनाया।
References:
1. Aamodt, M. G. (2010). Industrial/
Organizational Psychology: An applied approach. Belmont: Wadsworth.
2. http://oxfordre.com/psychology/view/10.1093/
acrefore/9780190236557.001.0001/acrefore-9780190236557-e-39.
3. https://www.apa.org/ed/graduate/specialize/
industrial.
4. http://ijar.org.in/stuff/issues/v4-i1(1)/v4-i1(1)-a013.pdf.
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