परिभाषा-एवं-परिचय
“दुश्चिंता
को
आमतौर
पर
एक
विसरित
(diffused), अस्पष्ट भय
की
बहुत
ही
अप्रिय
अनुभूति
और
आशंका
के
रूप
में
परिभाषित
किया
जाता
है”एन
सी
ई
आर
टी.
दुश्चिंता
विकार
सबसे
आम
न्युरोटिक
विकार
होता
है।
दुश्चिंता
भविष्य
में
होने
वाले
खतरे
की
आशंका
होती
है।
दुश्चिंता
व्यक्ति
को
व्यथित
करने
के
साथ-साथ
उसके
दिन-प्रतिदिन
के
कामकाज
में
हस्तक्षेप
करने
लगे
तो
समझना
चाहिए
की
दुश्चिंता
विकार
ने
दस्तक
दे
दी
है।
यह
व्यक्ति
को
लगातार
तनाव,
बेचैनी
और
चिंता
की
स्थिति
में
उलझाए
रखती
है।
दुश्चिंता
विकार
के
प्रमुख
प्रकार
1. सामान्यीकृत
दुश्चिंता
विकार
2. आतंक
विकार
(Panic disorder)
3. दुर्भीति
(Phobia)
4. मनोग्रस्ति
बाध्यता
विकार
5. अभिघातज
उत्तर
दबाव
विकार
(PTSD)
सामान्यीकृत
दुश्चिंता
विकार
का
परिचय
जीएडी
दुश्चिंता
विकारों
के
प्रकारों
में
से
एक
होता
है।
इसमें
लंबे
समय
तक,
अस्पष्ट,
अस्पष्टीकृत
(unexplained) और गहन
भय
शामिल
होते
हैं
जो
किसी
भी
विशेष
वस्तु
या
घटना
से
जुड़े
नहीं
होते
हैं।
इस
हालत
में
व्यक्ति
समाज
में
और
समाज
के
बाहर
व्यवहार
के
प्रदर्शन
की
गुणवत्ता
के
बारे
में
खूब
चिंता
करता
है
और
किसी
भी
संभावित
खतरे
को
बढ़ा-चढ़ा
कर
आंकता
है।
सामान्यीकृत
दुश्चिंता
विकार
की
प्रमुख
विशेषता
यह
होती
है कि
व्यक्ति
विभिन्न
क्षेत्रों
के
बारे
में
ऐसी
लगातार
और
अत्यधिक
चिंता
करता
है
जिसे
वह
नियंत्रित
कर
पाने
में
असमर्थ
होता
है।
इसके
साथ
व्यक्ति
कुछ
शारीरिक
लक्षण
भी
अनुभव
करता
है,
जैसे
बेचैनी;
आसानी
से
थक
जाना;
ध्यान
लगाने
में
कठिनाई;
चिड़चिड़ापन;
मांसपेशियों
में
तनाव
और
नींद
न
आना
आदि।
पुरुषों की
अपेक्षा
महिलाओं
में
यह
अधिक
पाया
जाता
है।
लक्षण
(i) हृदय
गति
में
वृद्धि
और
सांस
लेने
में
तकलीफ,
(ii) निर्णय
लेने
में
कठिनाई,
(iii) ध्यान
केंद्रित
करने
में
असमर्थता,
(iv) बेहोशी
और
चक्कर
आना,
(v) अत्यधिक
संवेदनशीलता,
(vi) शरीर
में
स्पंदन,
(vii) अनिद्रा,
(viii) भूख
न
लगना,
(ix) अत्यधिक
पसीना,
(x) बार-बार
पेशाब
आना,
(xi) निराशा,
(xii) निरंतर
मांसपेशियों
में
तनाव,
और
(xiii) हाइपरविजिलेंस
(खतरों
के
लिए
आसपास
के
पर्यावरण
पर
लगातार
पुरग़ौर
नज़र (scan) लगाए
रखना
)।
सामान्यीकृत
दुश्चिंता
विकार
के
लिए
जिम्मेदार
प्रोटीन
और
रसायन
(न्यूरोट्रांसमीटर)
1. दुश्चिंता
को
कम
करने
वाले
(Anxiolytic) न्यूरोट्रांसमीटर
(i) GABA
(gamma-aminobutyric acid ),
(ii) एडेनोसाइन,
(iii) मेलाटोनिन,
और
(iv) न्यूरोएक्टिव
स्टेरॉयड।
2. दुश्चिंता
को
बढ़ाने
वाले
(Anxiogenic)
(i) न्यूरोट्रांसमीटर
(ii) ग्लूटामेट,
(iii) सेरोटोनिन,
(iv) ऐसेटिलकोलाइन,
(v) कोलेसीस्टोकिनिन,
और
(vi) कॉर्टिकोट्रॉफिन
का
स्राव
करने
वाली
हार्मोन।
रोग-संबंधी
कारक
(i) स्वभाव
से
सम्बंधित
(Temperamental) – व्यवहार
निषेध,
नकारात्मक
प्रभाव
(न्यूरोटिक),
और
नुकसान
से
बचकर
निकलना
जीएडी
सम्बंधित
होते
हैं।
(ii) पर्यावरणीय
– हालांकि
बचपन
की
परेशानियां
और
माता-पिता
द्वारा
दिया
गया
अति
संरक्षण
जीएडी
के
साथ सहसंबंधित
होता
है,
बावजूद
इसके
अभी
तक
कोई
भी
पर्यावरणीय
कारक
जीएडी
से
सार्थक
रूप
से
सहसंबंधित
नहीं
पाया
गया
है।
(iii) आनुवंशिक
और
शारीरिक
–
जीएडी
से
पीड़ित
व्यक्तियों
में
से
लगभग
एक
तिहाई
लोगों
में
यह
विकार
अनुवांशिकता
के
कारण
होता
पाया
गया
है,
और
ये
आनुवांशिक
कारक
तांत्रिकताप
के
जोखिम
को
बढ़ाते
हैं
और
उसके
साथ
अतिव्याप्त
(overlap) होकर दुश्चिंता
और
मनोदशा
विकारों
में
भी
दिखाई
देने
लगते
हैं
विशेष
रूप
से
अवसादग्रस्तता
विकार
के
साथ।
नैदानिक
मापदंड
(Diagnostic Criterion)
चिरकालिक
(Chronic) दुश्चिंता से
पीड़ित
व्यक्ति
जो
जीएडी
के
विशेष
मापदंडों
के
लिए
पात्र
हो
और
किसी
भी
अन्य
दुश्चिंता
विकार
या
किसी
अन्य
मानसिक
विकार
के
मानदंडों
को
पूरा
नहीं
करता
हो
को
ही
सामान्यीकृत
दुश्चिंता
विकार
से
ग्रसित
माना
जाना
चाहिए।
किसी
भी
व्यक्ति
को
जीएडी
से
ग्रसित
मानने
से
पहले
उसके
सांस्कृतिक
और
लैंगिक
कारकों
को
भी
संज्ञान
में
ले
लेना
चाहिए।
(i) किसी
भी
व्यक्ति
में
दुश्चिंता
की
घटना
(जैसे
अत्यधिक
चिंता)
या
गतिविधयां
कम
से
कम
6 महीने
से
अधिक
दिनों
तक
होनी
चाहिए।
(ii) व्यक्ति
को
चिंता
को
नियंत्रित
करना
मुश्किल
हो।
(iii) लक्षणों को
व्यक्ति
के
माजिक,
व्यावसायिक,
या
अन्य
महत्वपूर्ण
कामकाज
के
क्षेत्रों
में
सार्थक
रूप
से
हस्तक्षेप
करना
चाहिए।
(iv) दुश्चिंता
और
चिंता
निम्नलिखित
छह
लक्षणों
में
से
तीन
या
तीन
से
अधिक सम्बंधित
होनी
चाहिए:
-
नोट:
बच्चों
में
केवल
एक
ही
लक्षण
काफी
है।
(a) बेचैनी।
(b) बहुत
जल्दी
थक
जाना।
(c) ध्यान
केंद्रित
करने
में
कठिनाई।
(d) चिड़चिड़ापन।
(e) मांसपेशियों
में
तनाव।
(f) नींद
में
समस्या।
जीएडी
की
विशेषताएं
(i) जीएडी
में
सामाजिक
चिंताएं
आम
होती
हैं।
(ii) अत्यधिक
और
बेकाबू
चिंता
(आशंकित
अपेक्षा)
जीएडी
के
लक्षण
को
परिभाषित
करती
है
जिसकी
प्रकृति
एक
विषय
से
दुसरे विषय
पर
स्थानांतरित
होने
की
होती
है।
(iii) इससे
दैनिक
जीवन
में
संकट
और
दुर्बलता
आती
है।
(iv) चिंताएँ
आमतौर
पर
मनोसामाजिक
कार्यप्रणाली
में
काफी
हस्तक्षेप
करती
हैं।
(v) चिंताएं
अधिक
व्याप्त,
स्पष्ट,
लंबी
अवधि
की
और
परेशान
करने
वाली
होती
हैं।
(vi) जीएडी
किशोरावस्था
से
पहले
शायद
ही
कभी
होता
है।
(vii) GAD अपनी
नैदानिक
अभिव्यक्ति
जीवन
भर
लगभग
एक
जैसी
ही
प्रदर्शित
करती
रहती
है।
(viii) जीएडी
के
लक्षण
वयस्कों
की
तुलना
में
कम
उम्र
के
लोगों
में
अधिक
गंभीर
दिखाई
देते
हैं।
(v) दुश्चिंता
से
सम्बंधित
कोई
भी
लक्षण
किसी
दवा
के
अधिक
सेवन
या
नशे
से
नहीं
होना
चाहिए।
जीएडी
के
कार्यात्मक
परिणाम
जीएडी,
रोगी
में
निम्नलिखित
मनो-शारीरिक
परिणामों
को
जन्म
देता
है:
-
(i) यह
कार्यों
को
जल्दी
और
कुशलता
से
करने
की
व्यक्ति
की
क्षमता
को
बाधित
करता
है।
(ii) चिंता
के
कारण
समय
और
ऊर्जा
की
खपत
होती
है
जिससे
थकान
होती
है,
ध्यान
केंद्रित
करने
में
कठिनाई
होती
है
और
नींद
खराब
होती
है।
(iii) सामान्यीकृत
दुश्चिंता
विकार
अक्षमता
और
पीड़ा
के
साथ
सार्थक
रूप
से
सम्बंधित
होता
है।
(iv) संज्ञानात्मक
संसाधनों
का
अत्यधिक
उपयोग
मनोवैज्ञानिक
थकान
का
कारण
बनता
है।
उपचार
उपयुक्त
चिकित्सा
और
व्यवहार
चिकित्सा
संयुक्त
रूप
से
इस
मानसिक
बीमारी
का
इलाज
करने
में
सक्षम
हो
सकते
हैं।
(i) संज्ञानात्मक
व्यवहार
थेरेपी
(कु-अनुकूलित
संज्ञानों
में
रूपांतरण)।
(ii) दवाएं
(जैसे
एंटीडिपेंटेंट्स)।
(iii) योग
(NYU Grossman School of Medicine).
(iv) विश्राम
तकनीक
(प्रणायाम,
श्वसन
व्यायाम,
विश्राम
रणनीति
और
ध्यान)।
(v) मनोचिकित्सा,
दवाओं
और
विश्राम
तकनीकों
का
संयोजन।
सन्दर्भ:
1. Coleman, C. J. (1988). Abnormal psychology
and modern life. Bombay, India: D. B. Taraporevala Sons & Co.
2. Generalized anxiety and generalized
anxiety disorder: description and reconceptualization. (1986). American Journal
of Psychiatry, 143(1), 40–44. doi:10.1176/ajp.143.1.40
3. NCERT. (XII). Psychology Book.
4. DSM V Manual. Published by APA.
5. Kaur, S.
& Singh, R. (2017). Role of different neurotransmitters in anxiety:
a systemic review. IJPSR, 8 (2), 411-421.
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