Friday, January 15, 2021

मनोग्रस्ति बाध्यता विकार (न्युरोसिस)

 

परिभाषा      

          मनोग्रस्ति को लगातार आने वाले विचारों, आवेगों या छवियों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बार-बार होते रहते हैं और जिन्हें रोजाना के जीवन में दखलंदाज, अनुचित और परेशान करने वाले के रूप में अनुभव किया जाता है

 

          बाध्यता बार-बार दोहराए जाने वाले वो व्यवहार या मानसिक कार्य होते हैं जो व्यक्ति किसी मनोग्रस्ति या कुछ कठोर नियमों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया करने के लिए मजबूर होता है

         

          अतः मनोग्रस्ति बाध्यता विकार वो विकार होता  है जिसमे व्यक्ति ऐसे विचारों के साथ संलग्न रहता है जिन्हे वह शर्मनाक और अप्रिय समझता है और कुछ  क्रियाएँ

जैसे,धुलाई, गिनती, आदि बार-बार करने के लिए उत्पन्न होने वाले आवेग पर नियंत्रण करने में असमर्थ होता है”।

 

मनोग्रस्ति बाध्यता विकार के उदाहरण

मनोग्रस्ति एक अवांछनीय विचार के बार-बार आने की प्रवृत्ति (जैसे: उसकी हिम्मत कैसे हुई? होता कौन वो है मेरा नाम रखने वाला ?, दूसरों को नुकसान पहुंचाने का डर, मैं एक अपराध / गलती कर सकता हूं? आदि)

बाध्यताबार - बार की जाने वाली धुलाई, गिनती, सफाई, जाँच आदि।

 

परिचय

           मनोग्रस्ति बाध्यता विकार को मनोग्रस्ति बाध्यता न्युरोसिस भी कहा जाता है।  क्योंकि ओसीडी में व्यक्ति दुश्चिंता और रक्षा उन्मुख बचकाने व्यवहार से परिपूर्ण अननुकूलित (Maladaptive) जीवन शैली प्रदर्शित करता है (Coleman, 1988) मनोग्रस्ति से दुश्चिंता को बढ़ावा मिलता है जिसके कारण व्यक्ति के लिए उन घटनाओं को जो मनोग्रस्ति का कारण बनते हैं को दबाना या उन्हें  बेअसर करना मुश्किल हो जाता है। मनोग्रस्तता वास्तविक जीवन से संबंधित मात्र चिंताएं नहीं होती हैं (DSM-IV)

          दिलचस्प रूप से, ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति मनोग्रस्तित विचारों के बारे में पूरी तरह से जानते हैं की ये विचार उनके अपने मन की देन हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति वो सब सोचने के लिए मजबूर हो जाता है जिसे वह सोचना नहीं चाहता है और वो सब करने के लिए अपने आप को बाध्य

महसूस करता है जिसे वो करना नहीं चाहता है।

 

चाहते हुए भी व्यक्ति क्यों  मनोग्रस्तित विचारों और बाध्य करने वाली क्रियाओं में उलझ जाता है?

 

           क्योंकि यह तनाव को कम करने और संतुष्टि की भावना को सुदृढ़ करने में मदद करता है (कोलमैन, 1988 द्वारा उद्धृत) यदि व्यक्ति बाध्यता को रोकने का प्रयास करता है तो दुश्चिंता का शिकार हो जाता है।

 

ओसीडी के प्रकार

(i)       जमाखोरी (Hoarding)

(ii)      संदूषण (Contamination)

(iii)     अत्यधिक चिंतन,

(iv)     सुव्यवस्था के प्रति अत्यधिक सचेतन, और

(v)      जाँच (Checking)

 

कुछ स्पष्ट लक्षण

(i)       कार्य और गतिविधियों की पुनरावृत्ति (जैसे: बार-बार हाथ धोना)

(ii)      एक ख़ास पैटर्न में क्रमबद्ध व्यवहार।

(iii)     विभिन्न विषयों पर मनोग्रस्तित [पीड़ादायक] विचार (जैसे: शारीरिक कार्य, अनैतिक कार्य करना, आत्महत्या का प्रयास करना, या नायाब समस्याओं का समाधान खोजना)

(iv)     अपर्याप्त और असुरक्षित महसूस करना।

(v)      अपराधबोध की प्रवृत्ति।

(vi)     बार-बार डर, दुश्चिंता और अवसाद के लक्षण प्रदर्शित करना।

(vii)    कार्य करने की प्रवृत्ति धीमी परन्तु हर कार्य में पूर्णता का प्रयास।

(viii)   बार-बार क्रोध और चिड़चिड़े व्यवहार का प्रदर्शन।

 

ओसीडी के लिए जिम्मेदार प्रोटीन और रसायन (न्यूरोट्रांसमीटर)

          विभिन्न शोधों से प्राप्त निष्कर्ष बताते हैं कि निम्नलिखित न्यूरोट्रांसमीटर के असंतुलन से ओसीडी होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

(i)       मस्तिष्क-व्युत्पन्न न्यूरोट्रोपिक फैक्टर (एक प्रोटीन जो नई मस्तिष्क कोशिकाओं के उत्पादन को प्रोत्साहित करता है और पहले से उपस्थित कोशिकाओं को मजबूत बनाता है)

(ii)      सेरोटोनिन (बेसल गैन्ग्लिया में इसके स्तर का कम होना) 

(iii)     डोपामाइन (प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में इसके स्तर में बढ़ोतरी)

(iv)     ग्लूटामेट (CSF में बढ़ा हुआ स्तर) नोट: बेसल गंगालिया पर कार्बनिक परिस्थितियों के प्रभाव के फलस्वरूप पुनरावर्त और बाध्यकारी क्रियाओं में बढ़ोतरी होने लगती है।

 

महत्वपूर्ण कारण और निर्धारक

कारण

(i)       जेनेटिक्स,

(ii)      पर्यावरण,

(iii)     मनोरोग का इतिहास, एवं

(iv)     संवेगात्मक आघात।

निर्धारक

(i)      स्थानापन्न (Substitutive) विचार और गतिविधियाँदुश्चिंता [भयसूचक विचारों से उत्पन्न] से बचने के लिए किसी और प्रकार के चिंतन या गतिविधियों में शामिल होना। यह एक तरह की समस्या-से-पलायन-प्रणाली होती है।

(ii)     अपराधबोध और सजा का डरओसीबी आमतौर पर अपराध और आत्म-निंदा की भावनाओं से उपजता है।

(iii)    क्रमिक व्यवस्था और भविष्यवाणी का आश्वासनव्यवहार के सावधानीपूर्वक व्यवस्थित और कठोर पैटर्न को बनाए रखना। कठोर व्यवहार मानसिक शांति और कुछ भी गलत होने के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।

 

नैदानिक ​​ मापदंड  (Diagnostic Criterion)

           निदान, हमेशा योग्य और अनुभवी व्यक्ति द्वारा निर्धारित वैज्ञानिक मानकों के आधार पर ही किया जाना चाहिए। जिनमे से कुछ नीचे वर्णित हैं (DSM V): -

(i)       व्यक्ति को मनोग्रस्तता या बाध्यता का इतना अनुभव हो की वह उसके रोजमर्रा के जीवन को भी नकारत्मक रूप से प्रभावित करते हों।

(ii)      प्रतिदिन एक घंटे से भी ज्यादा OCB में समय व्यतीत करना।

(iii)     जीवन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे सामाजिक, व्यावसायिक, या अन्य कामकाज के क्षेत्र में नैदानिक ​​रूप से सार्थक क्षति।

(iv)     OCB किसी भौतिक वस्तु जैसे दवा या नशीले पदार्थ के परिणामस्वरूप उत्पन्न नहीं होना चाहिए।

 

ओसीडी के विशेषताएं (Characteristics)

(i)       OCB (व्यवहार) असाध्य (maladaptive) होता है।

(ii)      यह सामान्य तनावों का सामना करने के लिए तर्कहीन और अतिरंजित (exaggerated ) व्यवहार को दर्शाता है।

(iii)     यह व्यक्ति के व्यावहारिक लचीलेपन को कम करता है।

(iv)     व्यक्ति अत्यधिक अपर्याप्त और असुरक्षित महसूस करता है।

(v)      बाध्यकारी कार्य मनोग्रस्तिता के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में किये जाते हैं। 

(vi)     विचार भाषा या चित्र के रूप में हो सकते हैं।

(vii)    ओसीडी तो एक लक्षण है और ही व्यक्तित्व का हिस्सा है, बल्कि एक मानसिक बीमारी होती है।

(viii)   OCB दुश्चिंता की अभिव्यक्ति होती है की तनाव की।

(ix)     ओसीडी लिंग तटस्थ होती है।

 

उपचार की रणनीति

          किसी व्यक्ति के OCB का 100% परिवर्तन संभव नहीं होता है, लेकिन विभिन्न उपचारों के संयोजन से जीवन शैली में महत्वपूर्ण सुधार और इससे सम्बंधित लक्षणों को कम किया जा सकता है।

 

चिकित्सक द्वारा अपनाई जाने वाली तीन बुनियादी रणनीतियाँ इस प्रकार हैं: -

(i)       विचार और गतिविधि के बीच विभेदन को समझना और स्वीकार करना की कुछ इच्छाएं एवं व्यवहार लगभग सभी लोगों में पाए जाते हैं।

(ii)      काल्पनिक खतरों एवं यथार्थ में विभेदन को समझना और स्वीकार करना।

(iii)     प्रबलन द्वारा OCB को अवरुद्ध करना (OCB नहीं करने पर पुरष्कार देना)

 

उपचार

           उपयुक्त दवा और व्यवहार चिकित्सा संयुक्त रूप से इस मानसिक बीमारी का इलाज करने में सक्षम पाए गए हैं।

(i)       संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT)

(ii)      एक्सपोजर और प्रतिक्रिया की निवारण (ERP) (विशेष CBT)

(iii)     कुण्डलिनी  योग (Study by: The Institute for Nonlinear Science, University of California, San Diego, USA).

(iv)     प्राणायाम, गायत्री मंत्र और योग आसन के संयोजन से (देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)

(v)      अश्वगंधा बूटी (यह BDNF को प्रोत्साहित  करने के साथ-साथ उसकी  गिरावट को रोकता है)

BDNF - Brain-derived neurotrophic factor.

 

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