परिचय
संस्कृति सीखे हुए व्यवहार
स्वरूप का एक ऐसा समुच्चय होता है जो ज्ञान के अंतर-पीढ़ी हस्तांतरण के माध्यम से सीखा
गया होता है और वह व्यवहार लोगों के एक खास समूह द्वारा प्रकट किया जाता है। यह जातीयता,
परंपराओं, परिधान शैली, कला, साहित्य, भाषा, धर्म, संगीत और भोजन आदि के संदर्भ में
एक सामूहिक व्यवहार होता है। लोग इसे संरक्षित करने के लिए विरासत में मिली पारंपरिक
शैली और स्वरूप के अनुसार व्यवहार करते हैं ताकि इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाया जा सके।
कंप्यूटर की भाषा में इसे बच्चे की ‘सामाजिक प्रोग्रामिंग’ का एक प्रकार कहा
जा सकता है। संस्कृति का स्वभाव गतिशील होता है लेकिन व्यक्तिगत दायरे में यह सार्वभौमिक
होता है। इसका अर्थ है की व्यक्ति अपनी संस्कृति के पदचिह्नों को हमेशा संजोय रखता
है, भले ही वह उससे कितने ही लम्बे समय से और कितनी दूर रह रहा हो।
कारक
1. जातीयता और लालन-पालन,
2. परंपरा और रिवाज,
3. त्यौहार और पहनावा,
4. कला और साहित्य,
5. भोजन और पाक कला,
6. भाषा और बोलियाँ,
7. धर्म और प्रथाएं, और
8. संगीत।
1. जातीयता और लालन-पालन - जातीयता एक व्यापक
शब्द है, जो धर्म, राष्ट्रीयता, वंश, बोली, सांस्कृतिक विरासत आदि जैसे सांस्कृतिक
कारकों को अपनी परिभाषा में समेटे रहता है। जातीय समूह के सदस्य होने के लिए व्यक्ति
को सांस्कृतिक परंपराओं का पालन करना आवयशक होता है। बच्चे का लालन-पालन जातीय सांस्कृतिक
आचरण पर निर्भर होता है जहां जातीयता से वह अपनी सांस्कृतिक पद्धति को सीखकर उसका अनुसरण
करता है। इसके परिणामस्वरूप बालक समकालीन सांस्कृतिक जरूरतों की तर्ज पर व्यवहार करना
सीख जाता है।
2. परंपरा और रिवाज - परंपराएं सांस्कृतिक
प्रथाओं के चलन को कहा जाता है जबकि रिवाज प्रथाओं के पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण को कहा
जाता है। लोग सामाजिक समारोहोंऔर स्थितियों (शादी और कार्यों के दौरान) में क्या पहनते
हैं, क्याखाते हैं या कैसा साझा व्यवहार करते हैं इत्यादि परंपरा और रिवाज के दायरे
में आते हैं, उदाहरण के लिए भारत में माथे की सजावट (बिंदी और चंदन का पेस्ट) और अभिवादन
(हाथ जोड़कर) का तरीका। परंपरा और रिवाज सार्थक रूप से बच्चे के संज्ञानात्मक और शारीरिक
विकास को प्रभावित करते हैं। यह कहना सुरक्षित है कि बच्चे का व्यवहार विभिन्न परंपराओं
और रिवाजों की अंतःक्रिया का परिणाम होता है। इनमें परिवर्तन अपेक्षाकृत कठिन होता
है क्योंकि इनका पालन करने से व्यक्ति को एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक आराम और सांत्वना
मिलती है।
3. त्यौहार और पहनावा - त्यौहारों और वस्त्र-धारण
शैली 'संस्कृति' की प्रत्यक्ष एवं भौतिक अभिव्यक्ति होती है। यह एक सांस्कृतिक समूह
को एक मजबूत इकाई में पिरोये रखती है। बच्चा सांस्कृतिक त्यौहारों के माध्यम से सहयोग,
साझेदारी, समायोजन और सामूहिक उत्सव के कौशल को सीखता है। ये दो मुख्य मानवीय प्रेरकों
‘अनुराग-का-बंधन और ‘संबंधन’को पूर्ण करने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिससे सांस्कृतिक सामंजस्य एवं संशक्ति और मजबूत होते
हैं। ये तनाव और दबाव को नियंत्रित करने के महत्वपूर्ण स्रोत माने गए हैं। त्यौहार
और पहनावा सामूहिक रूप से संस्कृति को विश्वास, प्रेम, अपनेपन, भाईचारा, संतोष, प्रकृति
के साथ सद्भाव, आदि मौलिक घटक उपलब्ध कराते हैं जो विकास को तारतम्य एवं सामंजस्य प्रदान
करते हैं।
4. कला और साहित्य - कला और साहित्य
को संस्कृति का दर्पण माना जाता है। इनके माध्यम से व्यवहार की रचनात्मकता, सुंदरता
और मनोरंजन सम्बन्धी विशेषताओं को समझा जा सकता है। ये समाज की समकालीन छवि प्रस्तुत
करते हैं। कला और साहित्य बालक की आंतरिक विचारधारा के निर्माण की नींव डालते हैं।
ये भावी पीढ़ियों को प्रेरित करने के साथ-साथ संस्कृति का मूल्यांकन भी करने में मददगार
होते हैं। संस्कृति को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए बच्चे को सामाजिक प्रदर्षकों
द्वारा कला और साहित्य में प्रशिक्षित किया जाता है। विचारों की पारस्परिक क्रिया कला
को अंकुरित करती है जो मानव जाति के प्रगतिशील विकास में सहायक होती है।
5. भोजन और पाक कला - भोजन, इसको पकाने
का तरीकाऔर खपत का स्वरूप मजबूत सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामाजिक पहचान का प्रतिनिधित्व
करता है। यह परंपराओं और रीति-रिवाजों का भंडार होता है। भोजन बच्चे के मनोवैज्ञानिक
(मांस खाना हिंदू धर्म में पाप माना जाता है) और भौतिक पहलुओं (उदाहरण के लिए हरियाणा
अपने समृद्ध भोजन के कारण उच्च क्षमता वाले खिलाड़ी उत्पन्न करता है, विशेष रूप से
संपर्क खेलों में जैसे कुश्ती, मुक्केबाजी, कबड्डी आदि) को खासा प्रभावित करता है।
लेवी स्ट्रॉस ने कहा है कि "आग का उपयोग करके खाना पकाना ही वह आविष्कार है जिसने
इंसान को इंसान बनाया है" (www.barillacfn.com)। यह स्थायी रूप से संस्कृति विशिष्ट
स्वाद का अंत:स्थापन करता है जो एक बच्चे के वृद्धि और विकास को प्रभावित करता है।
6. भाषा और बोलियाँ - ये ऐसे प्रतीक
होते हैं जो सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में अवधारणाओं और विचारों को प्रकट करते हैं।
भाषा, एक मूल वृत्ति (चॉम्स्की, 1960) होती है जो सामाजिक-सांस्कृतिक अंतःक्रिया के
माध्यम से विकसित होती है। भाषा और बोलियाँ स्वयं की अभिव्यक्ति के लिए बच्चे को एक
मंच प्रदान करती हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक सेट-अप सीखने के पर्याप्त मात्रा में अवसर
प्रदान करते हैं जो विकास की दिशा और महत्व को प्रभावित करते हैं। वायगोट्स्की के अनुसार,
‘शब्द’ आत्म-नियमन (वाल्टन एंड अय्यूब, 2011) के लिए मानसिक उपकरणों के
रूप में काम करते हैं। भाषा के कारण ही व्यक्ति अपनी विशिष्ट संस्कृति के बारे में
पढ़ पाता है जो सांस्कृतिक अनुबंधन (बॉन्ड) को और मजबूत करता है। भाषा और बोलियाँ हमारे
संज्ञान (cognition) को आकार देती हैं जो वास्तव में हमें एक इंसान बनाती हैं।
7. धर्म और प्रथाएं –
धर्म इतिहास, भौगोलिक स्थिति और संस्कृति द्वारा आकारित नियमों का एक संगठित समूह होता
है। यह मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य, सामाजिक
मूल्यों, अर्थतंत्र और अनुयायियों की आध्यात्मिकता को प्रभावितकरता
है। बच्चा, समाज और सांस्कृतिक वातावरण से धार्मिकता सीखता है और जीवन के अधिकांश पहलुओं
(सुरक्षा, स्वास्थ्य, आत्म, आशा आदि) में उसका इस्तेमाल करता है। धर्म एक मार्गदर्शक
की भूमिका निभाने के साथ-साथ नैतिक मूल्यों और सामाजिक सामंजस्य का मार्ग भी सिखाता
है। स्वामी विवेकानंद ने कहा, "धर्म मनुष्य में पशुता को समाप्त करता है और फिर
वही मनुष्य सार्वभौमिक शक्ति का रूप धारण करता“है। अपने रूढ़िवादी
रूप में धर्म मानव के विकास संबंधी पहलुओं पर नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकता है।
8. संगीत - संगीत मनुष्य द्वारा सृष्टि के माधुर्य की
अभिव्यक्ति होती है। दिलचस्पी की बात ये है
की दुनिया-भर में मनुष्य सार्वभौमिक तरीके से संगीत के प्रति एक जैसा व्यवहार करते
हैं। संगीत गैर-इनवेसिव तकनीक है जो तंत्रिका तंत्र को झकझोर देता है। यह बुद्धि, एकाग्रता
और खुशी को बढ़ाने के अलावा मस्तिष्क को भी स्वस्थ रखता है। संगीत को मन को शांत करने
के लिए जाना जाता है जिससे व्यक्ति की उत्पादकता में गुणात्मक सुधार आता है। जो बच्चे
अपने शुरुआती जीवन में संगीत के संपर्क में आते हैं, वे अपने भावी जीवन के हर पहलू
में बुद्धिमान पाये जाते हैं। संगीत, छात्रों को निम्नलिखित तरीकों से उत्कृष्ट बनाने
में मदद करता है (ब्राउन, एल एल):
(i) भाषा के विकास में सुधार,
(ii) बुद्धि लब्धि (IQ) में थोड़ी वृद्धि,
(iii) परीक्षण स्कोर में सुधार,
(iv) मस्तिष्क की संयोजकता (Connectivity) में वृद्धि, एवं
(v) स्थानिक (Spatial) बुद्धि में वृद्धि।
References:
(i) Albert, I.,
& Trommsdorff, G. (2014). The Role of Culture in Social Development Over
the Life Span: An Interpersonal Relations Approach. Online Readings in
Psychology and Culture, 6(2). https://doi.org/10.9707/2307-0919.1057
(ii) Vallotton,
C., & Ayoub, C. (2011). Use your words: The role of language in the
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26(2), 169–181. doi:10.1016/j.ecresq.2010.09.002
(iii) http://psychology.wikia.com/wiki/Sociocultural_factors.
(iv) http://www.oxfordhandbooks.com/view/10.1093/oxfordhb/9780195396430.001.0001/oxfordhb-9780195396430-e-5.
(v) https://www.barillacfn.com/m/publications/pp-cultural-dimension-of-food.pdf.
(vi)
https://bebrainfit.com/music-brain/
(vii)
http://www.pbs.org/parents/education/music-arts/the-benefits-of-music-education/
(viii) Agarwal, A.
& Saxena, A. K. (2003). Psychological Perspectives in Environmental and
Developmental Issues. New Delhi: Concept Publishing.
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