Tuesday, March 19, 2019

मानव विकास के जैविक कारक


मानव विकास के जैविक कारक

परिचय

            मनुष्य का विकास कई प्रकार के कारकों से प्रभावित होता है 'जैविक' उनमें से एक हैं। जैविक कारक मनुष्यों की मनो-शारीरिक विशेषताओं में आकर्षक विविधता बनाने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। आंखों, त्वचा बालों का रंग तथा बौद्धिक क्षमता और व्यक्तित्व में विविधता इन कारकों के परिणाम स्वरूप होता है दिलचस्प बात यह है कि मनुष्य एक समान होते हुए भी अलग होता है। विकास, निर्भरता से स्वायत्तता की और बढ़ने की एक प्रक्रिया होती है (wikipedia.com).



कारक

1.         आनुवंशिक

2.         पोषण

3.         जन्मपूर्व अवधि

4.         हार्मोन

5.         लिंग

1.         आनुवंशिक  गुणसूत्रों के माध्यम से जीन माता-पिता से मनो-शारीरिक विशेषताओं को बच्चे में संचारित करते हैं। बालक जीवनपर्यन्त आनुवांशिक खाके (ब्लूप्रिंट) की सीमाओं के भीतर रहकर ही विकसित होता है। शारीरिक विशेषताएं जैसे लम्बाई, मोटापा, बालों का रंग इत्यादि और मनोवैज्ञानिक विशेषताएं जैसे बुद्धि, अभिवृत्ति, व्यक्तित्व आदि इस आनुवांशिक खाके (ब्लूप्रिंट) का ही परिणाम होते हैं (फेनोटाइप का उदाहरण)। दिलचस्प बात ये है की जीन विशेषताओं के साथ-साथ रोगों  के अंश भी संचारित करते हैं जैसे दिल से संबंधित रोग, स्वलीनता (ऑटिज़्म), मधुमेह, अस्थमा इत्यादि। किसी व्यक्ति की आनुवांशिक विरासत कोजीनोटाइप यानि जीन प्रारूप के रूप में जाना जाता है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि मनुष्य कि सारी अनुवांशिक सामग्री प्रत्यक्ष रूप से देखने योग्य नहीं होती है। और प्रत्यक्षित (जिसे देखा या मापा जा सकता हो) की जा सकने वाली अनुवांशिक सामग्री कोफेनोटाइप अर्थात दृश्य प्रारूप कहा जाता है।

2.    पोषण पोषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शरीर भोजन को ऊर्जा में बदलकर स्वयं को तथा अपने ऊतकों को पोषित करता है। पोषक तत्व शरीर को बढ़ने, मरम्मत करने और बनाए रखने के साथ-साथ आवश्यक ऊर्जा भी प्रदान करते हैं (Kids.britannica.com)। भोजन के विभिन्न घटक जैसे प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिजों और कार्बोहाइड्रेट मिलकर पोषक तत्व कहलाते हैं। हम इन पोषक तत्वों को विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों से प्राप्त करते हैं। संक्षेप में संतुलित पोषण शरीर प्रणाली का निर्माण करता है और इसकी कमी के कारण यह टूट भी सकता है

3.         जन्मपूर्व अवधियह गर्भधारण और जन्म के बीच का समय होता है। प्रसवपूर्व अवधि आमतौर पर तीन चरणों में विभाजित होती है यानी जीवाश्म चरण, भ्रूण चरण और गर्भस्थ शिशु चरण।

(i)        जीवाश्म चरणगर्भधारण (अंडे के साथ शुक्राणु कोशिका का समागम) से लेकर दो हफ्ते तक की अवस्था जिसमे युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है। इस चरण में कोशिकायें एक गेंद का आकार लेती हैं जो ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्व प्राप्त करना शुरू कर देती है।

(ii)       भ्रूण चरणजीवाश्म चरण के अंत से यानि तीसरे सप्ताह से आठवें सप्ताह तक (गर्भधारण के बाद दो महीने तक) कोशिकाओं की उस गेंद को 'भ्रूण' कहा जाता है। मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के विकास के लिए यह चरण सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस चरण में हृदय तथा रक्त वाहिकाओं (कार्डियोवैस्कुलर) और अन्य विशिष्ट अंगों जैसे आंखों, कानों, नाक आदि का निर्माण शुरू होता है। मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की मूल संरचना भी इसी चरण में निर्धारित होती है (verywellmind.com).

(iii)      गर्भस्थ शिशु चरणयह चरण 9वें सप्ताह (लगभग 2 महीने) से शुरू होता है और जन्म तक चलता रहता है। इस चरण में भ्रूण चरण के दौरान शुरू हुई शारीरिक प्रणालियाँ और विकसित होती हैं। भविष्य में विकसित होने वाली मनोवैज्ञानिक विशेषताओं के लिएमस्तिष्क विकास की आंतरिक प्रक्रिया का निर्माण भी इसी चरण में होता है। इसी चरण में गर्भस्थ शिशु स्वयं को बाहरी जीवन के लिए तैयार करता है।

4.         हार्मोन (मानव शरीर के छोटे प्रबंधक)  हार्मोन एक नियामक रसायन होता है जिसे कोशिकाओं के एक विशिष्ट समूह द्वारा उत्पादित किया जाता है जिसे ग्रन्थि (ग्लैंड्स) कहा जाता है। अंतःस्रावी (डक्टलेस) ग्रंथियां हार्मोन के नियमित एवं समय-समय पर स्त्राव के माध्यम से मानव विकास को नियंत्रित करती हैं। स्त्रावित हार्मोन रक्तधारा के माध्यम सेनिश्चित स्थान पर पहुंचाया जाता है। कुछ हार्मोन मानव शरीर द्वारा जीवनपर्यन्त उत्पादित किये जाते हैं जबकि कुछ केवल एक निश्चित समय पर ही उत्पादित किये जाते हैं। मानव शरीर के विकास में प्रत्येक हार्मोन की एक विशिष्ट भूमिका होती है। उदाहरण के लिए ‘संवृद्धि हार्मोन मानव शरीर की वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार होता है जो जीवनपर्यन्त उत्पादित होता रहता है। गौण यौन विशेषताओं का विकास किशोरावस्था के समय गोनाड्स ग्रंथियों द्वारा 'गोनाडोट्रोपिक' हार्मोन के स्राव का परिणाम होता है। मनो-शारीरिक विकास के लिए सभी हार्मोन का सामान्य और समय पर स्राव बहुत महत्वपूर्ण होता है। निश्चित एवं विशिष्ट समय पर हार्मोन के संतुलित स्राव की अनुपस्थिति से शरीर का विकास बाधित होता है जिसके परिणाम स्वरुप परिपक्वता में कमी आती है और प्रजनन क्षमता का ह्रास होता है (एनसीईआरटी)।

5.    लिंग – बच्चे का लिंग किशोरवास्था के समीप मनो-शारीरिक विकास में निर्णायक भूमिका निभाता है। लड़कियों और लड़कों का विकास उनके गुणसूत्रों के खाके के अनुसार होता है। किशोरावस्था के दौरान लड़कियां तेजी से विकसित होती हैं जबकि लड़कों को परिपक्व होने में अधिक समय लगता है। लड़कों का मांसपेशीय द्रव्यमान और हड्डियों की शक्ति लड़कियों की तुलना में अधिक होती है। उनके शरीर की संरचना अलग-अलग मनो-सामाजिक और जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विकसित होती है। लिंग लड़कियों और लड़कों के स्वभाव एवं व्यक्तित्व को भी सार्थक रूप से प्रभावित करता है।

संदर्भ:

(i)    wikipedia.com

(ii)    https://parenting.firstcry.com/articles/factors-that-affect-growth-and-development-in-children/

(iii)   https://kids.britannica.com/students/article/food-and-nutrition/274373.

(iv)   https://www.youtube.com/watch?v=7kC6p1twkXk.

(v)    https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/list-of-ductless-glands-present-in-the-human-body-1513862468-1

(vi)   NCERT, XI Psychology Text Book.

(vii)   Mangal, S. K. (2002). Advanced Educational Psychology. Delhi: PHI.

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