Tuesday, March 19, 2019

मानव विकास के सामाजिक कारक

परिचय

      मानव द्वारा विविध सामाजिक व्यवहार की सुंदरअभिव्यक्ति विभिन्न सामाजिक कारकों की अंतः क्रिया का परिणाम होता है। ये कारक संयुक्त रूप से बच्चे के मनो-सामाजिक प्रभाव क्षेत्र में 'विकास' को व्यक्त करते हैं।

कारक

1. परिवार,

2. सामाजिक वातावरण

3. पारिस्थितिकी,

4. सामाजिक-आर्थिक स्थिति,

5. साथियों के समूह की परस्पर क्रिया,

6. शिक्षा, एवं

7. पड़ोस।

1.    परिवार – परिवार सामाजिक स्थापना की सबसे महत्वपूर्ण इकाई होती है। बच्चे अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में अधिकतर पारिवारिक परिवेश में रहकर ही सीखते हैं। यह परिवेश सामाजिक स्थितियों और अवसरों को प्रदान कर बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए आधार तैयार करता है। परिवार बच्चे को विकास के लिए एक शुरुआती मंच उपलब्ध कराता है जहां बच्चा बाहरी दुनिया से निपटने के लिए व्यवहार के स्वरूप, मूल्यों, वास्तविकताओं, कौशल, मानदंडों और समायोजन आदि सीखता है। परिवार का आकार, भौगोलिक स्थिति और सांस्कृतिक पहलू विकास को सार्थक रूप से प्रभावित करते हैं। पारिवारिक स्थिति (जैसे आर्थिक, बीमारी, नौकरी का तनाव, आदि) भी बच्चे के विकास पर प्रभाव डालते हैं। परिवार व्यक्ति के जीवन के सभी पांच चरणों (शैशव काल, बचपन, किशोरावस्था,वयस्कता और बुढ़ापे) को जीवन पर्यन्त प्रभावित करना जारी रखता है। संक्षेप में, परिवार बच्चे के मनोसामाजिक तरकश को जीवन के लिए आवश्यक तीरों से परिपूर्ण कर देता है।

2.    सामाजिक वातावरण – सामाजिक वातावरण सामाजिक विकास को प्रोत्साहित करता है। इसमें तत्काल सामाजिक संस्थाएँ जैसे कि पड़ोस, परिवार के सदस्य, साथियों का समूह आदि शामिल होकर अपना योगदान देते हैं। पारस्परिक संबंध सामाजिक वातावरण के सबसे महत्वपूर्ण पहलू होते हैं। इससे बच्चा सही और गलत को पहचानने के भाव के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं जैसे विश्वास, सहयोग, साझाकरण आदि भी सीखता है। सामाजिक

वातावरण ऐसे अवसर प्रदान करता है जो बच्चे को आत्म-प्रतिनिधित्व के लिए अन्वेषण और

सामाजिक पहचान के विकास में मदद करता है। यह बच्चे को उन कौशलों के विकास में सहायता करता है जो उसको अलगाव, अस्वीकृति और मानसिक संघर्ष से निपटने में मददगार साबित होते हैं। सामाजिक वातावरण प्रेरणास्रोत (रोल मॉडल) के माध्यम से अवलोकन कौशल के विकास में योगदान देता है जो निर्णयों में स्वायत्तता के विकास के लिए मूलभूत घटक होते हैं। यह तुलनात्मक रूप से जीवन के शेष तीन चरणों से ज्यादा बचपन और किशोरावस्था के दौरान अधिक प्रभाव डालता है।

3.    पारिस्थितिकी – आसपास के वातावरण के साथ व्यक्तियों की अंतःक्रिया के अध्ययन को पारिस्थितिकी कहते हैं। पारिस्थितिक पर्यावरण गतिशील होता है। दुर्गानंद सिन्हा (1977) के अनुसार बच्चे की पारिस्थितिकी को दो संकेंद्रित परतों यानी ऊपरी परत और आसपास की परत के संदर्भ में समझा जा सकता है।

      (i)    ऊपरी परत (दृश्य परत) - इसमें घर, स्कूल, साथियों का समूह आदि होते हैं।

      (ii)    आसपास की परत - इसमें सामान्य भौगोलिक वातावरण,संस्थागत       परिस्थितियां जैसे जाति, वर्ग इत्यादि और सामान्य सुख सुविधाएं आदि शामिल होते       हैं।

      ये दोनों परतें एक-दूसरे के साथ अंतःक्रिया करते हुए एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं और बच्चे के विकास को आगे बढाती हैं।

4.    सामाजिक-आर्थिक स्थिति – सामाजिक आर्थिक स्थिति किसी व्यक्ति या समूह की सामाजिक प्रतिष्ठा या श्रेणी होती है। इसे अक्सर शिक्षा, आय और व्यवसाय (एपीए) के संयोजन के रूप में मापा जाता है। यह एक परिमाण और निर्णायक कारक होता है जो बच्चे के विकास पर गहरा प्रभाव डालता है। पोषण, शिक्षा, जीवन की गुणवत्ता, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य भौतिक सुविधाएं सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती हैं। बहुत सारे अध्ययनों ने स्थापित किया है कि एसईएस बाल विकास में प्रमुख कारक होता है। निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति नकारात्मक मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्य, वंचित शिक्षा और परिवार कल्याण को जन्म देती है जो बाद में विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।

5.    शिक्षा    स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा व्यक्ति में पहले से ही उपस्थित पूर्णता की अभिव्यक्ति होती है। शिक्षा मानव का निर्माण करने वाली, जीवन को साकार करने वाली और चरित्र निर्माण का उपकरण होती है। यह सीखने, कौशल प्राप्त करने, नैतिकता का विकास, शिष्टाचार और मूल्य निर्धारण में समाजीकरण का एक सटीक उपकरण होती है। शिक्षा अनुसंधान की अवधारणा को जन्म देतीहै जिससे मनोवैज्ञानिक जिज्ञासा संतुष्ट होती है। शिक्षा मन और शरीर के विकास को पूर्णता की और ले जाती है। उपयुक्त शिक्षा व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप से सम्पूर्ण बनाने का प्रयास करती है जो मानव को आत्म-प्राप्ति की ओर अग्रसर करती है।  शिक्षा रचनात्मकता और समग्र विकास को गति देती है। संक्षेप में शिक्षा व्यक्ति को पूर्ण, विनम्र और मानवीय बनाने का प्रयास करती है।

6.    साथियों के समूह की परस्पर क्रिया (बच्चे के संदर्भ में) – साथियों का समूह (पीजी) लगभग समान आयु, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और हितों वाले लोगों का एक सामाजिक समूह होता है। पीजी का सबसे दिलचस्प एवं प्रत्यक्ष प्रभाव किशोरावस्था के दौरान दिखाई देता है। यह व्यक्तिगत मान्यताओं, सामाजिक मूल्यों, विचारस्वरुप और यहां तक ​​कि शैक्षिक उपलब्धियों को भी प्रभावित करता है। साथियों का समूह एक ठोस आबद्ध संस्था होती है जो किसी व्यक्ति के व्यवहार प्रतिक्रियाओं को अनुकूलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 6.      साथियों के समूह की परस्पर क्रिया (बच्चे के संदर्भ में) – साथियों का समूह (पीजी) लगभग समान आयु, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और हितों वाले लोगों का एक सामाजिक समूह होता है। पीजी का सबसे दिलचस्प एवं प्रत्यक्ष प्रभाव किशोरावस्था के दौरान दिखाई देता है। यह व्यक्तिगत मान्यताओं, सामाजिक मूल्यों, विचार स्वरुप और यहां तक ​​कि शैक्षिक उपलब्धियों को भी प्रभावित करता है। साथियों का समूह एक ठोस आबद्ध संस्था होती है जो किसी व्यक्ति के व्यवहार प्रतिक्रियाओं को अनुकूलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

7.    पड़ोस – विकास की यात्रा के दौरान बचपन (3-12 वर्ष) पड़ोस के कारण पड़ने वाले प्रभावों के लिए सबसे अधिक संवेदनशील होता है। पड़ोस, बच्चे में समाजीकरण के एक स्वीकृत स्वरूप की शुरुआत करता है। बच्चा पड़ोस से विभिन्न अमूर्त घटनाओं को सीखकर उनका तुलनात्मक अध्ययन करना सीखता है। पीयर ग्रुप की अवधारणा पड़ोस के साथ अंतः क्रिया के समय ही परिभाषित हो जाती है। बच्चा अपने सामर्थ्य और सीमाओं की पहचान की अवधारणा, बाहरी जीवन में व्यवहार, जिम्मेदारी की भावना, भावनात्मक प्रबंधन आदि पड़ोस के साथ अंतः क्रिया द्वारा सीखता है।

References:

(i)        NCERT, XI Psychology Text Book.

(ii)       Mangal, S. K. (2002). Advanced Educational Psychology. Delhi: PHI.

(iii)      Tripathi, L. B. & Pandey, S (2009). मानव विकास का मनोविज्ञान. New Delhi: Concept Publishing Company.

(iv)      https://www.apa.org/topics/socioeconomic-status/index. Aspx.

(v)       https://www.apa.org/pi/ses/resources/publications/ children- families.aspx.

(vi)      https://parenting.firstcry.com/articles/role-of-family-in-childs-development/

(vii)     https://www.all4kids.org/2017/12/11/role-family-child-development/.

(viii)    https://en.wikipedia.org/wiki/Teachings_and_philosophy _of_Swami_Vivekananda

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