परिभाषा
उद्दीपकों
के एक समूह में से कुछ उद्दीपकों को चुनने की प्रक्रिया को आम तौर पर अवधान कहा जाता है (NCERT, XI)।
ऐसी
स्थिति जिसमें व्यक्ति के
संज्ञानात्मक संसाधन पर्यावरण के कुछ विशिष्ट पहलुओं पर ही केंद्रित होते हैं और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र उद्दीपकों के प्रति प्रतिक्रिया करने की तत्परता की स्थिति में होता है (एपीए)।
संक्षेप में, किसी विशिष्ट उद्दीपक के प्रति केंद्रित जागरूकता की स्थिति को
अवधान कहा जाता है।
अर्थ
संवेदी या मनोवैज्ञानिक इनपुट के प्रति की जाने वाली प्रतिक्रिया के लिए संज्ञानात्मक संसाधनों को इकट्ठा करने में लगने वाले श्रम को अवधान
कहा जाता है।
साधारण शब्दों में, बाहरी या आंतरिक उद्दीपकों के लिए स्वैच्छिक या अनैच्छिक रूप से ध्यान देने की प्रक्रिया।
परिचय
अवधान संज्ञानात्मक प्रक्रिया
होती है। इस प्रक्रिया को एक प्रकार की संज्ञानात्मक उत्तेजना भी कहा जा सकता है। मस्तिष्क के पास अपने सीमित संसाधन
होते हैं जिन्हें कुछ चुनिंदा उद्दीपकों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
ध्यान के निम्नलिखित तीन महत्वपूर्ण गुण होते हैं: -
(i) सतर्कता,
(ii) एकाग्रता, और
(Iii) अन्वेषण (Search)।
(i) सतर्कता – सतर्कता का तात्पर्य किसी व्यक्ति के सामने प्रकट
होने वाले उद्दीपकों से निपटने की तत्परता से होता है (NCERT)।
(ii) एकाग्रता – एकाग्रता का तात्पर्य है एक समय में कुछ विशिष्ट वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करना (NCERT)।
(iii) अन्वेषण या खोज – खोज में एक पर्यवेक्षक वस्तुओं के एक समुच्चय के बीच कुछ निर्दिष्ट (Specific) वस्तुओं के
उप-समुच्चय की तलाश करता है (NCERT)।
अवधान के मॉडल
(i) खोज-दीप (स्पॉटलाइट) मॉडल – यह मॉडल अवधान को केन्द्रित करने की तुलना स्पॉटलाइट से करता है जहां अवधान में केंद्र-बिंदु के
साथ-साथ एक सीमांत (Fringe) भी होता है। जब जागरूकता किसी विशेष वस्तु या घटना पर केंद्रित होती है, तो इसे अवधान का केंद्र बिंदु कहा जाता है। इसके विपरीत, जब वस्तुएं या घटनाएँ जागरूकता के केंद्र से दूर होती हैं और व्यक्ति केवल उनके बारे में थोड़ा बहुत जागरूक होता है, तो उस स्थिति को अवधान की सीमांत कहा जाता है। और जब सीमांत एक निर्दिष्ट क्षेत्र तक फैलकर अवधान की कट-ऑफ निर्धारित करता है और उस कट-ऑफ को मार्जिन (Margin) कहा जाता है।
(ii) ज़ूम-लेंस मॉडल (Eriksen
& Yeh, 1985) – यह मॉडल बताता है कि अवधान के लिए प्रयुक्त होने वाले मस्तिष्क के संसाधनों को रुचि, कार्य की प्रकृति तथा अन्य कारकों के अनुसार आवंटित किया जाता है। सीमित प्रसंस्करण क्षमताओं के कारण, मस्तिष्क को उद्दीपक के आकार एवं विवरण में एक प्रकार का समझौता करना पड़ता है: किसी एक क्षेत्र में वृद्धि होने से से उस क्षेत्र में पाए जाने वाले उद्दीपकों से सम्बन्धी विवरण जानने में कमी हो जाती है (एपीए)। किसी दृश्य क्षेत्र का जितना बड़ा अवधान केंद्र होगा उस से सम्बंधित प्रसंस्करण भी उतना ही धीमा होगा क्योंकि संसाधन तो निश्चित होते हैं और उनको जितने बड़े क्षेत्र में उपयोग
किया जायेगा उनकी कार्यक्षमता विस्तृत हो जाने के कारण कमजोर पड़ती जाती है।
अवधान के सिद्धांत
(i) फ़िल्टर सिद्धांत (Broadbent, 1956) – यह सिद्धांत बताता है कि एक साथ कई सारे उद्दीपक हमरे
ग्राहकों में प्रवेश करते हैं। इन उद्दीपकों की बड़ी संख्या एक प्रकार की "गत्यवरोध" की स्थिति पैदा करती है। अल्पकालिक स्मृति के माध्यम से होते हुए ये उद्दीपक एक फिल्टर के पास एकत्र हो जाते हैं। यह फ़िल्टर इन उद्दीपकों
में से केवल एक उद्दीपक को उच्च स्तरीय प्रसंस्करण के लिए स्थानांतरित करने की अनुमति देता है जिसे हम जान पाते हैं। और अन्य उद्दीपकों को वहीं रोक दिया जाता है।
(ii) फ़िल्टर क्षीणन सिद्धांत (Triesman, 1962) – इस सिद्धांत के अनुसार जिन उद्दीपकों को फिल्टर से गुजरने की अनुमति नहीं होती है, उन्हें पूरी तरह से अवरुद्ध नहीं किया जाता है, बल्कि उनकी ताकत को फिल्टर द्वारा क्षीण या कमजोर कर दिया जाता है। कुछ उद्दीपकों की ताकत फ़िल्टर द्वारा
क्षीण या कमजोर कर देने के बावजूद वे उच्च प्रसंस्करण के लिए पहुंच जाते
हैं और जिन्हे हम थोड़ा बहुत जान पाते हैं ।
(iii) बहुविधिक (Multimode) सिद्धांत (Johnston and Heinz (1978) – इस सिद्धांत के अनुसार अवधान के लिए उद्दीपकों का चयन तीन चरणों में होता है।
(a) चरण I – उद्दीपकों के संवेदी अभ्यावेदन (Sensory representations) (उदाहरण के लिए-दृश्य चित्र) का निर्माण होता है;
(b) चरण II – शब्दार्थ निरूपण (उदाहरण के लिए-वस्तुओं के नाम) का निर्माण कानिर्माण होता है;
(c) चरण III – दोनों (संवेदी और अर्थ संबंधी) अभ्यावेदन चेतना में प्रवेश करते हैं।
अवधान
को प्रभावित करने वाले कारक
(i) बाह्य कारक - वे कारक जो उद्दीपकों से संबंधित होते हैं, उन्हें बाह्य कारकों के रूप में जाना जाता है। इन कारकों में उद्दीपक का आकार, गति, चमक, तीव्रता, नयापन आदि शामिल होते हैं।
(ii) आंतरिक कारक - वे कारक जो प्रत्यक्षणकर्ता से संबंधित होते हैं उन्हें आंतरिक कारकों के रूप में जाना जाता है जैसे प्रेरणा (जैविक उद्देश्य जैसे कि भूख, प्यास आदि) और संज्ञानात्मक (बौद्धिक क्षमता, तैयारी, रुचि आदि) कारक।
सन्दर्भ:
1. NCERT, XI Psychology Text
book.
2. https://dictionary.apa.org/attention.
3. https://www.britannica.com/science/attention.
No comments:
Post a Comment