अर्थ
मनो-भौतिकी (साइकोफिजिक्स) शब्द मनोविज्ञान और भौतिकी से बना है अर्थात मनोविज्ञान + भौतिकी।
मनोविज्ञान = एक व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक गुण (विशेष रूप से संवेदना और प्रत्यक्षण)।
भौतिकी = उद्दीपक के भौतिक गुण
अर्थात मनोवैज्ञानिक घटना (phenomenon ) और एक उद्दीपक के भौतिक गुणों के बीच संबंध का अध्ययन।
परिभाषा
मनोविज्ञान की वो शाखा जो एक मनोवैज्ञानिक घटना और एक उद्दीपक के भौतिक गुणों के बीच संबंध का अध्ययन करती है।
उद्दीपकों और उनसे उत्पन्न होने वाली संवेदनाओं के बीच संबंध का अध्ययन करने वाली विद्याशाखा को मनो-भौतिकी कहा जाता है (NCERT, XI)।
"एक व्यक्ति के अनुभव या व्यवहार पर किसी उद्दीपक के एक
या उससे अधिक भौतिक आयामों पर उसके गुणों में व्यवस्थित रूप से परिवर्तन के प्रभाव
के अध्ययन द्वारा प्रत्यक्षणात्मक प्रक्रियाओं का विश्लेषण " (Bruce et. Al 1996 quoted by Wikipedia)।
परिचय
मनो-भौतिकी शब्द गुस्तव थियोडोर फैकनर द्वारा 1860 में शरीर और मन के बीच
गणितीय संबंध का वर्णन करने के लिए रचा गया था। वह एक जर्मन भौतिक विज्ञानी और दार्शनिक थे जिन्होंने इस शब्द का इस्तेमाल 'एलिमेंट्स ऑफ साइकोफिजिक्स' नामक पुस्तक जो जर्मन भाषा में लिखी गई
थी में किया है। लीपज़िग विश्वविद्यालय
में
काम
करते
हुए
उनके
काम
से
पहले,
अर्नस्ट हेनरिक वैबर ने स्पर्श और प्रकाश संवेदना के आधार पर पहचान के लिए न्यूनतम अंतर (Just Noticeable Difference or JND) की अवधारणा
को
प्रस्तावित किया था जिसे आमतौर पर वैबर का नियम कहा जाता है। यह नियम बताता है कि पहचान के लिए न्यूनतम
अंतर (Just Noticeable Difference or
JND) उत्पन्न करने के लिए आवश्यक परिमाण (required amount) मूल उद्दीपक या संदर्भ तीव्रता के मूल्य का एक निरंतर अनुपात होता है। आधुनिक मनो-भौतिकी की अवधारणा वैबर और फैकनर के काम पर आधारित है।
मनो-भौतिकी में पांच इंद्रियों को सक्रिय करने वाले उद्दीपकों की तीव्रता निष्पक्ष (वस्तुनिष्ठ) रूप से मापी एवं निर्धारित की जाती है।
मनो-भौतिकी में प्रयुक्त शब्दावली: -
(i) निरपेक्ष सीमा या निरपेक्ष देहली (Absolute
threshold or limen, AL) – इसे खोज सीमा (Detection
Threshold) या व्यक्तिपरक समानता का बिंदु (PSE) के नाम से भी जाना जाता है। यानी मानव संवेदी प्रणाली द्वारा पहचानने या प्रत्यक्षण करने के लिए उद्दीपक की न्यूनतम मात्रा, तीव्रता, मूल्य या वजन। निरपेक्ष सीमा विभिन्न मनो-शारीरिक दशाओं और स्थितिगत कारकों के आधार पर व्यक्तियों और स्थितियों में भिन्न-भिन्न होती है। इसलिए निरपेक्ष
सीमा को मापने के लिए प्रयासों की संख्या आधार बनती है। जब कुल प्रयासों में से 50 प्रतिशत बार उद्दीपक को सही-सही पहचाना या प्रत्यक्षण किया जाता है, तो उद्दीपक की उस विशेष तीव्रता या मूल्य को निरपेक्ष सीमा कहा जाता है।
(ii) भेद सीमा या भेद देहली (Differential
threshold of limen, DL) – इसे पहचानने योग्य न्यूनतम
अंतर
(Just Noticeable Difference or JND) or विभेदन सीमा भी कहा जाता है। दो उद्दीपकों के मूल्यों में वो सबसे छोटा अंतर जो उनके बीच के अंतर का पता लगाने में मदद करता है। निरपेक्ष सीमा की तरह ही भेद सीमा का मापन भी प्रयासों की संख्या से किया जाता है अर्थात् एक उद्दीपक के मूल्य में वो न्यूनतम परिवर्तन जो 50 प्रतिशत प्रयासों में उद्दीपक की सही-सही पहचान कराने या प्रत्यक्षण कराने में सक्षम हो।
मनो-भौतिकी की विधियां
उद्दीपक और प्रत्यक्षण की तीव्रता के बीच संबंध को मापने के लिए फैकनर ने तीन महत्वपूर्ण विधियों का विकास किया: -
(i) सीमा विधि (Method of Limits)
(ii) सतत उद्दीपक विधि (Method of Constant stimuli)
(iii) समायोजन विधि (Method of Adjustment)
इन विधियों
का
उपयोग
उद्दीपक की तीव्रता की उस दहलीज को मापने के
लिए किया जाता है जो इसका प्रत्यक्षण करने के
लिए
आवश्यक होती हैं जिसे निरपेक्ष सीमा या
निरपेक्ष देहली के नाम से जाना जाता है।
सन्दर्भ:
1. NCERT,
XI Psychology Text book.
2. Bruce.
V., Green, P. R. & Georgeson, M. A. (1996). Visual perception (3rd ed.).
Psychology Press.
3. https://www.britannica.com/science/Webers-law.
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Psychophysics.
5. https://www.britannica.com/science/
psychophysics.
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