Tuesday, April 9, 2019

प्रत्यक्षणात्मक विकास






अर्थ    

            ‘Perception’ शब्द लैटिन भाषा के ‘पेरिस्पियो (percipio)’ शब्द से आया है, जिसका अर्थ होता है "प्राप्त करना, एकत्र करना, कब्ज़ा लेने की क्रिया, और मन या इंद्रियों से आशंकित होना"। Eysenck (1972) ने प्रत्यक्षण को एक शारीरिक कार्य के रूप में परिभाषित किया है, जो व्यक्ति को पर्यावरण की स्थिति और परिवर्तन के बारे में जानकारी प्राप्त करने और संसाधित करने में सक्षम बनाता है। संवेदी सूचनाओं को ग्रहण करने, संगठित करने और व्याख्या करने की प्रक्रिया को प्रत्यक्षण कहा जाता है। प्रत्यक्षण मल्टी मॉडल होता है जो कई प्रकार की संवेदी सूचनाओं के माध्यम से गतिकीय प्रतिक्रियाओं में योगदान देता है (Bertenthal 1996)। यह एक ज्ञान उद्धरण (Extract) की प्रक्रिया होती है। यह उद्दीपक की ऐसी व्याख्या होती है जो पहले से किसीअनुभव या अन्य क्रियाओं द्वारा ग्रहण सूचनाओं से जोड़कर की जाती सकती है।



फोरगस (1966) ने प्रत्यक्षण के चार चरणों का जिक्र किया है।

1.       पहला चरण - भौतिक ऊर्जा का इंद्रियों द्वारा अवशोषित होना।

2.       दूसरा चरण - तंत्रिका आवेग द्वारा भौतिक ऊर्जा के रूप में परिवर्तन करना।

3.       तीसरा चरण - तंत्रिका आवेग के मस्तिष्क तक पहुंचने पर मस्तिष्क में गतिविधियों का होना।

4.       चौथा चरण - यह चरण व्यक्ति के प्रत्यक्षणात्मक अनुभवों से संबंधितहोता है जिसमें मौखिक और शारीरिक व्यवहार शामिल होते हैं।



प्रत्यक्षणात्मक विकास का परिचय

            जन्म के तुरंत बाद शिशु में प्रत्यक्षणात्मक विकास की प्रक्रिया शुरू हो जाती है जो जीवन पर्यन्त बनी रहती है। बाल्यावस्था में प्रत्यक्षणात्मक विकास तेजी से आगे बढ़ता है। प्रत्यक्षण के माध्यम से बच्चे सीखते हैं और व्यक्तिगत अवधारणाओं का निर्माण करते हैं जो विचार प्रक्रिया में मददगार होते हैं।



प्रत्यक्षणात्मक विकास के कुछ उद्धरण

1.         दृश्यात्मक, श्रवणात्मक या स्पर्श उद्दीपक के परिणाम स्वरुप की गयी प्रतिक्रिया में शिशु द्वारा सिर का उद्दीपन की दिशा में घुमाना, प्रत्यक्षण का ही एक प्रकार होता है।

2.         जन्म के समय बच्चे की दृश्य क्षमता 20/400 होती है जो बाल्यावस्था में यह 20/20 हो जाती है। इसी प्रकार दूसरी इंद्रियां भी बाल्यावस्था के दौरान विकसित होती हैं।

3.         स्वरूप, विषमता (contrast) और आकार के प्रत्यक्षण की क्षमता भी बाल्यावस्था के दौरान तेजी से विकसित होती है।

4.         प्रत्यक्षण एक चयनात्मक प्रक्रिया होती है जो बाल्यावस्था में और अधिक परिष्कृत (refine) हो जाती है।

5.         अग्रभूमि पृष्ठभूमि चित्र प्रत्यक्षण - बच्चों में चित्र की अग्रभूमि और पृष्ठभूमि के बीच संबंधों को समझने की क्षमता भी इसी अवस्था में विकसित होती है।

6.         आकार और निरंतरता का प्रत्यक्षण - बच्चों में आकार और निरंतरता के प्रत्यक्षण की क्षमता लगभग 6 वर्ष की आयु तक पूरी तरह से विकसित हो जाती है।

7.         रंग प्रत्यक्षण - आँखों में पाए जाने वाले शंकु जो रंग प्रत्यक्षण और विभिन्न रंगों के बीच अंतर के लिए जिम्मेदार होते हैं जन्म के समय पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं। 4 से 8 वर्ष की आयु तक बच्चे

अलग-अलग रंगों (हर्लॉक एंड थॉम्पसन, 1954) में अंतर करने में सक्षम हो जाते हैं।

8.         वजन प्रत्यक्षण – बच्चा, आकार में छोटी वस्तुओं को बड़ी वस्तुओं की तुलना में हल्का समझता है जिसके कारण से कई बार बच्चे चीजों को तोड़ देते हैं। यह वजन सम्बन्धी अविकसित प्रत्यक्षण के कारण होता है। बाल्यावस्था में वजन प्रत्यक्षण में उल्लेखनीय सुधार होता है।

9.         समय प्रत्यक्षण – ‘समय के प्रत्यक्षण में अपेक्षाकृत देरी हो सकती है क्योंकि यह जटिलताओं से भरी घटना होती है। वर्ष की अवधारणा को समझने में 7 साल लगते हैं जबकि घड़ी में सही समय देखने के लिए 9 से 10 साल लगते हैं। 10 साल के बच्चे भूत, भविष्य और वर्तमान को ठीक से समझने में सक्षम हो जाते हैं।

10.       गहराई प्रत्यक्षण - गहराई का अनुभव करने की क्षमता 6 से 14 साल (गिब्सन, 1960) के बीच पूरी तरह से विकसित हो जाती है।

11.       मुद्रा प्रत्यक्षण - 6 साल का बच्चा आसानी से अलग- अलग मूल्यवर्ग की मुद्रा में अंतर कर सकता है। छोटे बच्चे मुद्रा के मूल्य और जीवन में इसकी भूमिका का अनुभव करने में विफल रहते हैं। एक 5 साल का बच्चा यह तो जानता है कि मुद्रा कुछ काम की चीज होती है लेकिन इसकी उपयोगिता

को समझना उसके लिए मुश्किल होता है।

12.       संख्या प्रत्यक्षण – संख्या प्रत्यक्षण या बोध एक महत्वपूर्ण घटना होती है जहाँ 6 वर्ष की आयु में बच्चा आसानी से संख्याओं को गिन और लिख सकता है।

13.       दूरी प्रत्यक्षण - बच्चे कम उम्र में दूरी का सही-सही प्रत्यक्षण नहीं कर पाते हैं, लेकिन उम्र के साथ-साथ यह क्षमता अधिक सटीकता के साथ विकसित हो जाती है।



References:

1.         Bertenthal, B. I. 1996. “Origins and Early Development of Perception, Action and Representation,” Annual Review of Psychology, Vol. 47, 431–59.

2.         NCERT, XI Psychology Text book.

3.         https://en.wikipedia.org/wiki/Childhood.

4.         https://www.cde.ca.gov/sp/cd/re/itf09percmotdev .asp.

5.         http://www.kkhsou.in/main/education/childhood. Html.





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