मनोदशा एक ऐसी आंतरिक
अनुभव की स्थिति होती है जो व्यवहारिक अभिव्यक्तियों और चेतना को प्रभावित करने की
क्षमता रखती है।
मनोदशा
विकारों को भावदशा विकार भी कहा जाता है। इस प्रकार के विकार में व्यक्ति 'संवेग या
भाव' के चरम को प्रकट करता है - अति उत्साह (उन्माद) या अवसाद।
भाव
-
यह मनोदशा की बाहरी अभिव्यक्ति होती है और इसे चेहरे पर आए भावों के माध्यम से जाना
जाता है।
मनोदशा
विकार के घटक
उन्माद
–
उत्साह और आवेश के अवास्तविक भाव के अनुभव की आंतरिक स्थिति।
अवसाद
-
तीव्र निराशा और अत्यधिक उदासी का अनुभव।
परिचय
1899 में क्रेपलिन ने मैनिक-डिप्रेसिव साइकोसिस
नामक शब्द को ईजाद किया। उन्होंने इसे उल्लास और अवसाद के आक्षेपों की एक ऐसी श्रृंखला
के रूप में वर्णित किया जिसके मध्य सामान्यताकी स्थिति में रहता है। आमतौर पर उन्माद
विकार की तुलना में अवसादग्रस्तता विकार अधिक पाए जाते हैं।
व्यक्ति जब अबाध क्रम की दो चरम सीमाओं के
बीच डोलता है या लंबे समय तक एक ही छोर पर स्थिर रहता है (उन्माद के लिए 4+ दिन और
अवसादग्रस्तता प्रकरण के लिए 2 सप्ताह) तो उसे मनोदशा विकारों से पीड़ित कहा जा सकता
है।
तुलनात्मक लक्षण
|
उन्मादी |
अवसादग्रस्त |
संवेगात्मक |
उल्लासित एवं उत्साहित मनोदशा, सामाजिकता की अधिकता, अत्यधिक अधीरता
(impatience) |
उदासी भरा दृष्टिकोण, निराशाजनक, लाचारी, सामाजिक आहर्ता
(Withdrawl), स्पष्ट रूप से दीखता हुआ चिड़चिड़ापन |
संज्ञानात्मक |
अवधान की अल्प अवधि, अनियंत्रित विचार और कल्पना की उड़ान, आवेग, अत्यधिक बातूनी, सकारात्मक आत्म-छवि, भव्य-भ्रम (Delusion), दूसरों को दोष देने की प्रवृत्ति। |
धीमी विचार प्रक्रिया, तीव्र एवं बाध्यकारी चिंता, समस्याओं की तीव्रता की अतिशयोक्ति, अनिर्णय की स्थिति, नकारात्मक आत्म-छवि, स्वयं को दोष देने की प्रवृत्ति, पाप का भ्रम (Delusion
of Sin), अपराधबोध, बीमारी, गरीबी |
क्रियात्मक |
अति सक्रियता (Hyperactivity), नींद की जरूरत में कमी, अस्थायी भूख, गहरी यौन इच्छा |
लगभग सम्पूर्ण निष्क्रियता, थकान, अनिद्रा, भूख में कमी, यौन इच्छा में कमी या न के बराबर |
नैदानिक
मानदंड
आईसीडी 11 - मनोदशा प्रकरण (भावदशा विकार)। लक्षण (उन्माद के प्रकरण के लिए 1 सप्ताह और अवसादग्रस्तता के प्रकरण के लिए 2 सप्ताह)
(i) उल्लासित,
(ii) चिड़चिड़ापन,
(iii) अत्याधिक
सक्रियता,
और
(iv) बढ़ी
हुई
आंतरिक
ऊर्जा
का
अनुभव।
डीएसएम
V
- प्रमुख
अवसादग्रस्तता
विकार
3 या
उससे
अधिक
लक्षण
(i) अत्यधिक
बातूनीपन
या
वाणी
में
किसी
प्रकार
के
दबाव
के
संकेत,
(ii) विचारों
की
अनियंत्रित
उड़ान,
(iii) आत्म-सम्मान
के
भाव
में
वृद्धि,
(iv) नींद
की
कमी,
(v) व्याकुलता,
(vi) आवेगी
एवं
लापरवाह
व्यवहार,
और
(vii) बढ़ी
हुई
यौन
इच्छा,
सामाजिकता
या
लक्ष्य-निर्देशित
गतिविधि।
वर्गीकरण
मनोदशा
विकारों
को
निम्नलिखित
श्रेणियों
में
वर्गीकृत
किया
गया
है:
(i) द्विध्रुवी
भावादशा
विकार
–
केवल
उन्माद
या
हाइपोमेनिया
के
बार-बार
होने
वाले
कम
से
कम
दो
प्रकरण
या
अवसाद
और
हाइपोमेनिया
/ उन्माद
दोनों
के
कम
से
कम
दो
प्रकरण।
(ii) अवसादग्रस्तता
प्रकरण
– हल्के
या
गंभीर
अवसाद
का
कम
से
कम
एक
प्रकरण।
(iii) आवर्तक
(Recurrent) अवसादग्रस्तता
विकार
–
अवसाद
के
बार-बार
(कम
से
कम
दो)
होने
वाले
प्रकरण।
(iv) सतत (Persistent) मनोदशा
विकार – लगातार, लंबे
समय
से
उतार-चढ़ाव
वाली
मनोदशा
।
(डायस्टीमिया
की
विशेषता
यह
होती
है
की
लगातार,
लंबे
समय
तक
हलके
अवसादग्रस्तता
के
लक्षण
दिखाई
देते
हैं
और
साइक्लोथाइमिया
के
रोगियों
में
हल्के
अवसाद
और
हल्के
उत्साह
के
लगातार
और
लंबे
समय
तक
उल्लसितता
के
लक्षण
दिखाई
देते
हैं)।
(v) अन्य
मनोदशा
संबंधी
विकार
–
मिश्रित
(Mixed) भावात्मक
प्रकरण
और
आवर्तक
(Recurrent) संक्षिप्त अवसादग्रस्तता
विकार।
(vi) किसी
विकार
को
अनिर्दिष्ट
मनोदशा
विकार
तब
कहा जाता
है
जब
ऊपर
वर्णित
किसी
भी
श्रेणी
के
विकारों
के
लक्षण
उपस्थित
नहीं
होकर
अन्य
मनोदशा
विकार
सम्बन्धी
लक्षण
दिखाई
देते
हैं।
मुख्य
विशेषताएं
(i) व्यक्ति
एक
प्रकार
से
संवेगात्मक
विस्फोट
का
अनुभव
करता
है।
(ii) मनोदशा
में
परिवर्तन
सामान्य
और
तीव्र
होने
के
साथ
साथ
लंबे
समय
तक
बने
रहते
हैं।
(iii) थोड़े
समय
के
लिए
मनोदशा
में
तेजी
से
बदलाव
होता
है।
(iv) उन्मादी
किस्म
के
लोगों में
दिन
के
असामान्य
समय
पर
गतिविधयों
का
बढ़ा
हुआ
स्तर दिखाई
देता
है।
(v) आत्म सम्मान के भ्रम की सीमा
तक उच्च होने का अनुभव।
(vi) उन्मादी
व्यक्तियों
में
बोलने
की
गति
तेज
तेज़,
दबावपूर्ण, उंचे
स्वर
की
होती
है
जिसे
रोकना
काफी
मुश्किल
होता
है।
(vii) विचारों
की
श्रंखला
बोलने
की
गति
की
तुलना
में
तेजी
से
चलती
है।
(viii) सामाजिक
एवं
व्यावसायिक
सम्बन्धी
कार्यक्षमता
में
नुकसान।
(ix) वे
ये
कभी
अनुभव
नहीं
करते
की
वो
किसी
विकार
से
ग्रसित
हैं
और
उन्हें
उपचार
की
आवश्यकता
है।
व्यावहारिक
परिणाम
उन्मादी |
अवसादग्रस्त |
खूब खर्चा करने की इच्छा एवं जमकर खर्च करना, अपनी खुद की चीज़ों को बेवज़ह देना या लुटाना, लापरवाही और बेवकूफी भरी उल्लासिता से वाहन चलाना, मूर्खतापूर्ण और बिना सोचे समझे व्यापार में निवेश, और असामान्य यौन संलिप्तता। |
न्यूनतम गतिविधियां एवं क्रियात्मकता , पारस्परिक संबंधों के प्रति हर हद तक लापरवाह, अपने तक ही सीमित रहना, पाचन क्रिया में कठिनाइयाँ, मतिभ्रम के स्तर का व्यवहार, बोलने या खाने में अरुचि , जड़ता की अवस्था, गतिहीनता |
कारण
जैविक
कारक
(i) आनुवंशिक
कारक,
(ii) न्यूरोफिज़ियोलॉजिकल
कारक,
और
(iii) जैव
रासायनिक
कारक।
मनःशास्त्रीय
कारक
(i) पूर्वनिर्धारित
परिवार
और
व्यक्तित्व
सम्बन्धी
कारक,
(ii) दबाव
एवं
तनाव,
(iii) असहाय
(Helplessness) और लाचारी
(Hopelessness) की प्रबल
भावना,
और
(iv) अत्यधिक
परिहार्यता
(Excessive avoidance)।
सामाजिक-सांस्कृतिक
कारक
उदाहरण के
लिए
- सेठी एवं
उसके
सहयोगियों (1973) ने
भारत
में
शहरी
और
ग्रामीण
आबादी
के
बीच
अवसाद
का
अनुपात
4:1 पाया।
(i) आधुनिक
तकनीक,
(ii) सामाजिक
मूल्यों
में
परिवर्तन,
और
(iii) आधुनिक
जीवन
(शारीरिक
दूरियों
में
बढ़ोत्तरी)।
उपचार
(i) औषधीय
उपचार
(ii) मनःचिकित्सा
(iii) मनः-शिक्षा
(iv) परामर्श
(v) द्विध्रुवी
विकार
के
लिए
पारस्परिक
और
सामाजिक
लय
चिकित्सा
(Interpersonal
and Social Rhythm therapy)
(vi) अवसाद
के
लिए
संज्ञानात्मक
व्यवहार
थेरेपी
(सीबीटी)
(vii) अवसाद
के
लिए
शारीरिक
व्यायाम
संदर्भ:
1. 1. Verma,
L. P. (1965). Psychiatry in ayurveda. Indian J Psychiatry. 1965;7:292.
2. पांडेय,
जगदानंद.
(1956). असामान्य
मनोविज्ञान.
पटना:
ग्रंथमाला
प्रकाशन
कार्यालय।
3. Coleman, J. C. (1981). Abnormal
psychology and modern life.
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