Thursday, December 16, 2021

मनोविदलता की प्रकृति

 परिभाषा

           ऐसी कार्यात्मक मनोविकृति जिसमें व्यक्ति वास्तविकता से संपर्क खो देता है।

 

           मनोविदलता मानसिक विकारों के एक ऐसे समूह के लिए प्रयोग किया जाता है जिसमे व्यक्ति की सामाजिक अंतक्रिया में कमी होने के साथ साथ, प्रत्यक्षण, विचारों और संवेगों में अव्यवस्थता और विखंडता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। (Coleman, 1988).

निम्न प्रक्रियाओं में विकृतियां होती हैं

(i) चिंतन,

(ii) प्रत्यक्षण,

(iii) भाषा,

(iv) स्वयं और व्यवहार।

 

मनोविदलता की मुख्य विशेषताएं



 

मतिभ्रम और भ्रम (Hallucinations and Delusions)



चिह्न

          मनोविदलता से पीड़ित व्यक्ति का बचपन में सामान्य विकास हुआ होता है। लेकिन निम्नलिखित बच्चों के चार समूहों को मनोविदलता के लिए उच्च जोखिम वाला समझा जाता है:-

 

(i)       जिनकी माँ मनोविदलता से ग्रसित होती है,

(ii)      जिन्हे गर्भ या जन्म के दौरान गंभीर परेशानी का सामना करना पड़ा हो,

(iii)     जो अत्यधिक आक्रामक एवं असामाजिक व्यवहार वाले हों, और

(iv)     प्रतिकूल सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में लालन पालन।

          

           उच्च जोखिम वाले बच्चों का अध्ययन मनोविदलता की उत्पत्ति को गहराई से समझने में योगदान देता है।

 

प्रकृति: परिचय

          मनोविदलता मानसिक विकारों में सबसे गंभीर विकार होता है और इसे विषम नैदानिक ​​सिंड्रोम भी कहा जाता है। मनोविदलता से ग्रसित व्यक्ति उनकी देखभाल करने वालों में तीव्रता और प्रकार के अनुसार परेशानी का कारण बनते हैं। इस प्रकार के व्यवहार का कोई सटीक कारण नहीं होता है। लक्षणों की तीव्रता धीरे-धीरे उस स्तर तक बढ़ जाती है जहां यह एक गंभीर मनोशारीरक विकलांगता का कारण बन सकती है।

 

मनोविदलता की प्रकृति से जुड़ी कुछ विशेषताएं

          मनोविदलता की शुरुआत किशोरावस्था के अंतिम पड़ाव (पुरुष) और प्रारंभिक वयस्कता (महिला) में होती है। हालांकि, बचपन में ही इसका असर दिखना शुरू हो जाता है। जिन व्यक्तियों में मनोविदलता के प्रकरण बाल्यवस्था के अंतिम पड़ाव  में प्रकट होने लगते हैं उनमे विकास संबंधी समस्याओं से ग्रस्त होने की संभावना अधिक होती है। यह मस्तिष्क की रसायन प्रणाली को विकृत कर देता है जिसके फलस्वरूप संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली भी विकृत हो जाती है। दिलचस्प बात यह है कि विकृत जागरूकता या एनोसोग्नोसिया (मस्तिष्क क्षति के कारण तंत्रिका संबंधी परेशानी) के कारण मनोविदलता से ग्रसित व्यक्ति अपने विकार से अनजान होते हैं। इस विकार की शुरुआत के प्रारंभिक वर्षों में व्यक्ति दुश्चिंता और अवसाद के लक्षणों जैसे लक्षण दिखाता हुआ प्रतीत होता है।

 

          मनोविदलता विकार अपने लक्षणों की अभिव्यक्ति में एक चयनात्मक प्रकार की प्रक्रिया प्रदर्शित करता है जैसे नकारात्मक लक्षण लम्बे समय के लिए बने रहते हैं जबकि सकारात्मक लक्षण उम्र बढ़ने के साथ कम होते जाते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि विकार के विकास में नकारात्मक लक्षण ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मनोविदलता से ग्रसित चाहे पुरुष हो या महिला को जीवन भर आत्महत्या करने का ख़तरा बना रहता है। यह विकार  व्यवहार में लगातार होने वाले परिवर्तन के कारण व्यक्ति के समायोजन में बाधा बनता रहता है।

(i)       मनोविदलता ऐसा विकार होता है जिसका उपचार सम्भव होता है।

(ii)      यह विकार व्यक्ति में आत्म नियंत्रण को लगभग समाप्त कर देता है जिसके कारण व्यक्ति में आत्महत्या और आत्महत्या सम्बन्धी विचारों आने लगते हैं, वह अप्रत्याशितता व्यवहार करने लगता है, किसी भी घटना के प्रति प्रतिसंवेदन में अपने आप को असमर्थ पाता है।

(iii)     यह विकार लिंग तटस्थ होता है लेकिन पुरुषों में इसकी शुरुआत महिलाओं की तुलना में पहले होती है।

(iv)     दबाव और पर्यावरण से उत्पन्न होने वाले दबाव कारक इसके लक्षणों की तीव्रता को बढ़ा देते हैं।

(v)      यह मनो-शारीरिक लक्षणों का एक विश्वकोषीय झुंड होता है।

(vi)     अत्यधिक विकृत संवेदी प्रतिसंवेदन (सभी पांचों इन्द्रियों)

(vii)    ये जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति में सभी लक्षण पाए जाएं।

(viii)   मनोविदलता व्यक्ति में अपर्याप्तता की भावना पैदा करता है।

(ix)     मनोवैज्ञानिक क्षमताओं को कम करता है।

(x)      शारीरिक स्वास्थ्य को ख़राब करने में भी योगदान देता है।

(xi)     मस्तिष्क में सिनैप्टिक कनेक्शन को कम कर देता है।

(xii)    जागरूक और अवधान पर सीधा और महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

 

प्रसार

          जीवन भर मनोविदलता से पीड़ित रहने वालों का प्रतिशत 1% से भी कम होता है। विकार का प्रसार निम्नलिखित कारकों के आधार पर भिन्न हो सकता है: -

(i) सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंड

(ii) भौगोलिक स्थिति

(iii) आवासीय स्थिति

 

सन्दर्भ:

1.       Coleman, C. J. (1988). Abnormal psychology and modern life. Bombay, India: D. B. Taraporevala Sons & Co.

2.       NCERT. (XII). Psychology Book.

3.       DSM V Manual. Published by APA.

 

 

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