Thursday, November 25, 2021

पुनर्वास

 मान्यता: पुनर्वास का आधार  


           “प्रत्येक इंसान में अंतर्निहित एक ताकत और योग्यता होती है और उसे अपने स्वास्थ्य देखभाल में विशेषज्ञ होने का अधिकार होता है”।

 अर्थ-एवं-परिभाषा     

          किसी को सामान्य जीवन में वापस आने में मदद करना। बाहरी सहयोग के साथ तन्यकता (Resilience) (निर्भरता से स्वतंत्रता की और की यात्रा)। अपने पर्यावरण के साथ अंतःक्रिया में स्वास्थ्य सम्बन्धी स्थितियों में अक्षमता को कम करने एवं व्यक्तियों की कार्यकुशलता को इष्टतम बनाए जाने के लिए डिज़ाइन किए गए हस्तक्षेपों का एक सेट को पुनर्वास कहते हैं (डब्ल्यूएचओ)।

          एक ऐसी देखभाल जो व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक और शारीरिक क्षेत्र  में खोई हुई क्षमता को वापस पाने में मदद करती हो।

 किसे पुनर्वास की आवश्यकता होती है?       

          ऐसे व्यक्ति जिन्होंने सामान्य रूप से कार्य करने की क्षमता को या तो खो दिया है या निम्न में से कम से कम किसी एक समस्या का सामना करना पड़ रहा है: -

(i)       चोट के बाद (जलन, फ्रैक्चर), सर्जरी, आघात (दुर्घटना), बीमारी।


(ii)      जेल की अवधि के तहत।

(iii)      मनोचिकित्सा के बाद।

(iv)      ब्रेन स्ट्रोक या दिल का दौरा।

(v)      आनुवंशिक विकार या जन्मदोष।

(vi)      विकासात्मक अक्षमताओं से पीड़ित व्यक्ति।

(vii)     बढ़ती आयु के कारण कार्यात्मक क्षमता में कमी।

(viii)    अंतरिक्ष यात्री जिन्होंने अंतरिक्ष में लंबा समय बिताया।

 

संक्षिप्त परिचय         

          यह एक प्रकार की मनो-सामाजिक-शारीरिक कार्यात्मक बहाली या पुनर्प्राप्ति प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति को जागरूक, शिक्षित और अपने लिए दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को करने में सक्षम बनाया जाता  है। इस तरह व्यक्ति पर्यावरण और जीवन की नित नई उत्पन्न होने वाली जरूरतों के प्रति अनुकूलित और समायोजित होने  के लिए तैयार होता है। इसमें व्यक्ति की जीवन शैली में बदलाव की आवश्यकता होती है। पुनर्वास व्यक्ति को परिवर्तनों को स्वीकार करने के लिए तैयार करता है।

 

उद्देश्य 

(i)       सामान्य या लगभग सामान्य कार्यक्षमता की बहाली।

(ii)      भविष्य में उत्पन्न होने वाली जटिलताओं के समाधान के लिए पहले से तैयारी करना।

(iii)      स्वतंत्रता पर निर्भरता।

(iv)      आशावादी और सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास।

(v)      समायोजन और अनुकूलन के माध्यम से कुशलक्षेम में वृद्धि करना।

 

प्रमुख विशेषताऐं       

(i)       यह अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है, बीमारी से बचाता है, उपचार और देखभाल में मदद करता है।

(ii)      व्यक्ति को सभी संभावित क्षेत्रों में  भागीदारी और गुणवत्तापूर्ण योगदान के लिए  सक्षम बनाता है।

(iii)      सार्थक जीवन जीने की सुविधा के साथ-साथ  (सभी प्रकार की कठिनाइयों को दूर करने के लिए) आत्मविश्वास को पुनर्स्थापित करता है।

(iv)      यह लिंग और आयु तटस्थ होता है।      

(v)      यह एक व्यक्ति-केंद्रित प्रक्रिया होती है, जिसका अर्थ होता है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए चुने गए उपचार और दृष्टिकोण अद्वितीय होते हैं जो उनके लक्ष्यों और प्राथमिकताओं पर निर्भर करते हैं।

(vi)      पुनर्वास ग्राहक को बेहतर आत्म प्रबंधन और आत्म-प्रभावकारिता के लिए तैयार करता है।

(vii)     पुनर्वास में व्यक्ति का उपचार किया जाता है न कि बीमारी या चोट का।

 

पुनर्वास के सिद्धांत    

मौक (2012) ने पुनर्वास के निम्नलिखित सिद्धांतों का वर्णन किया:

(i)       अनुकूलन को बढ़ावा देना, न कि केवल पुनर्प्राप्ति

(ii)      क्षमता पर जोर देना

(iii)      व्यक्ति के साथ एक संपूर्ण व्यक्ति के रूप में व्यवहार करना

(iv)      विकलांगता पूरे परिवार को प्रभावित करती है

 

महत्वपूर्ण पुनर्वास मुद्दे

(i)       संज्ञानात्मक- व्यवहारात्मक (न्यूरोसाइकोलॉजिकल) पुनर्वास

(ii)      परिवार केंद्रित और समुदाय आधारित पुनर्वास

(iii)      दक्षताएं एवं प्रमाणन

(i)       संज्ञानात्मक- व्यवहारात्मक (न्यूरोसाइकोलॉजिकल) पुनर्वास – यह अलेक्जेंडर लुरिया (1963) के शोध पर आधारित है। यह विशेष रूप से उन रोगियों के लिए होता है जो मस्तिष्क की चोट से पीड़ित होते हैं। मस्तिष्क को खुद को पुनर्गठित करने और सामान्य कामकाज फिर से शुरू करने में लगभग 12 से 24 महीने का समय लगता है। इस अवधि के दौरान व्यक्ति को संज्ञानात्मक- व्यवहारात्मक पुनर्वास की आवश्यकता होती है। इसमें स्मृति प्रशिक्षण, मेटा-संज्ञानात्मक कौशल, स्मरक रणनीतियाँ,  तर्कहीन सोच के प्रबंधन लिए हस्तक्षेप, समस्या समाधान कौशल, क्रोध प्रबंधन, बेहतर प्रदर्शन के लिए तरीके और रणनीतियाँ आदि शामिल होते हैं।  

(ii)      परिवार केंद्रित और समुदाय आधारित पुनर्वास – यह इस मान्यता पर आधारित होती है कि विकलांगता एक सामाजिक अवधारणा होती है। पुनर्वास कोई जटिल प्रक्रिया नहीं होती है बल्कि इसको सफल होने के लिए परिवार और समुदाय के सदस्यों की भागीदारी एवं सहायता की आवश्यकता होती है। यह आवश्यक पुनर्वास रणनीतियों को लागू करने में मानव पर्यावरण की भूमिका को रेखांकित करता है। यह बच्चों, किशोरों या उन व्यक्तियों के लिए मददगार है जो दिन के अधिकांश समय घरों में कैद रहते हैं। इसका व्यक्ति पर अत्यधिक चिकित्सीय प्रभाव पड़ता है क्योंकि पुनर्वास कार्यक्रम में परिवार के सभी सदस्य सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

 (iii)    दक्षताएं एवं प्रमाणन – विकलांग लोगों के प्रति निम्न स्तर की सेवाओं और अनैतिक व्यवहार को रोकने के लिए अनुभवी पुनर्वास विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है। पेशेवरों को पुनर्वास कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन के लिए प्रमाणित किया जाना चाहिए क्योंकि प्रमाणीकरण प्रमाणिकता और क्षमता को सुनिश्चित करता है। 1986 में स्थापित भारतीय पुनर्वास परिषद (RCI) भारत में पुनर्वास पर सर्वोच्च संस्था है। यह पेशेवरों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों को निर्देशितऔर पुनर्वास संबंधी गतिविधियों की निगरानी करती  है।

 

भविष्य का परिप्रेक्ष्य   

          विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि "स्वास्थ्य और जनसंख्या की  विशेषताओं में परिवर्तन के कारण दुनिया भर में पुनर्वास की आवश्यकता बढ़ने का अनुमान है। उदाहरण के लिए, लोग लंबे समय तक जी रहे हैं, लेकिन दीर्घकालिक बीमारी और विकलांगता के साथ"

 

References:

1.        http://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/40004/1/Unit-5.pdf.

2.        https://www.who.int/news-room/fact-sheets/detail/rehabilitation.

 

 

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