परिचय
शैशवावस्था का चरण 0 से 24 महीने (2 वर्ष) का होता है। शिशु असहाय एवं माता-पिता परअत्यधिक निर्भर होते हैं तथा बाहरी वातावरण की चुनौतियों का सामना में असमर्थ होते हैं जिन्हें शैशवावस्था के जोखिमों के रूप में जाना जाता है। शिशुओं को मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दोनों प्रकार के जोखिम हो सकते हैं। इन जोखिमों से शिशु की विकास प्रक्रिया महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित होती है।
जोखिम
(i) मनोवैज्ञानिक एवं
(ii) शारीरिक
मनोवैज्ञानिक जोखिम
1. जन्म से संबंधित मान्यताएं और विश्वास – मान्यताएं और विश्वास सांस्कृतिक प्रभावों का परिणाम होते हैं कुछ संस्कृतियों में प्रसव के बाद महिलाओं को एक या दो सप्ताह के लिए अंधेरे कमरे में रखा जाता है।
शिशु और महिलाओं के विकास पर ये सांस्कृतिक प्रथाएं नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल सकती हैं।
2. प्राकृतिक बेबसी – शिशु की पूर्ण निर्भरता उसे बेबस और लाचार बनाती है जो
उस के मनोवैज्ञानिक विकास में बाधा का कारण बनती है।
3. अतिसंरक्षित (हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग) – शिशुओं की अतिसंरक्षिता से उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो सकती है, तथा ऐसे शिशुओं में बड़े होने पर आत्मविश्वास और
आत्म सम्मान, की कमी पाई जाती है। और उनमे जिम्मेदारी से बचने की प्रवृति उत्पन्न होती है
4. विकासात्मक पिछड़ना – विकास के दौरान अपनी उम्र के अन्य बच्चों से पीछे रहने वाले बच्चे को विकासात्मक रूप से पिछड़ना कहा जाता है। यह जन्म सम्बन्धी जटिलताओं, पर्यावरणीय कारकों और कुछ चिकित्सा स्थितियों के कारण हो सकता है।
5. विकास सम्बन्धी समस्याएं – शैशवावस्था से जुड़े विभिन्न कारकों के कारण शिशु को संज्ञानात्मक, भावनात्मक, भाषण और भाषा क्षेत्रों में विकास सम्बन्धी जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है।
6. माता का मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य – यह स्थिति शिशु के विकास के लिए बड़ा खतरा होती है। माताएँ अगर किसी सेआशंका, अवसाद, दुश्चिंता आदि से पीड़ित होने पर उनका व्यवहार अलग तरह का हो सकता है जो शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है।
7. माता-पिता का दृष्टिकोण – माता-पिता का रवैया बच्चे के लालन-पालन सम्बन्धी प्रथाओं को निर्धारित करता है जिसका शिशु के विकास के साथ सीधा संबंध होता है।
8. परिवार के सदस्यों का दृष्टिकोण – परिवार के सदस्यों की सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताएं शिशु के प्रति उनके रवैये को निर्धारित करते हैं। यह दृष्टिकोण उनके व्यवहार के रूप में परिलक्षित होता है और शिशु पर
प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।
9. नामकरण – नाम किसी भी व्यक्ति की प्राथमिक पहचान होती है जिसका प्रभाव व्यक्ति के ‘व्यक्तित्व’ और 'स्व’ पर जीवन पर्यन्त बना रहता है। हास्यजनक और अनुचित नाम मनोवैज्ञानिक रूप से हानिकारक हो सकते हैं।
शारीरिक जोखिम
1. समय से पहले जन्म – नियत तारीख से 3 सप्ताह या उससे पहले होने वाला जन्म। यह एक बड़ा खतरा होता है जिसके कारण ऐसे शिशुओं में अपरिपक्व फेफड़े पाये जाते हैं, शरीर के तापमान को विनियमित करने में कठिनाई होती है और वजन भी धीमी गति से बढ़ता है आदि।
2. जन्म प्रक्रिया संबंधित जटिलताएं – जन्म से संबंधित समस्याएं जैसे कि जन्म से पहले बच्चे की असामान्य स्थिति, बच्चे की गर्दन के चारों ओर गर्भनाल का लिपटना, बच्चे से पहले जनन मार्ग में गर्भनाल का आना, जनन मार्ग में बच्चे का फंस जाना आदि बच्चे के साथ-साथ इससे माँ को भी खतरा हो सकता है।
3. नवजात या शिशु मृत्यु दर – 5 वें जन्मदिन से पहले प्रति 1000 शिशुओं पर मृत शिशुओं की संख्या। समय से पहले जन्म, निमोनिया, जन्मजात विकृतियां, लम्बी प्रसव पीड़ा, नवजात संक्रमण, दस्त, मलेरिया, खसरा और कुपोषण आदि कुछ ऐसे कारक हैं जो शिशु को मृत्यु की ओर ले जाते हैं।
4. रोगों के प्रति संवेदनशीलता – शिशु रोगजनकों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं जिसका मुख्य कारण उनकी अविकसित प्रतिरक्षा प्रणाली एवं बाहरी कठोर
पर्यावरण की स्थिति होती है।
5. प्रसवोत्तर प्रसव – 42 सप्ताह की गर्भावस्था के बाद जन्म लेने वाले शिशु। प्रसवोत्तर प्रसव के कारण शिशुओं को कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है जैसे वे मोटापे के शिकार हो सकते हैं, बचपन का मधुमेह, शिशु की सांस के साथ एमनियोटिक द्रव का घुसना, प्लेसेंटा अपर्याप्तता के कारण ऑक्सीजन की कमी (प्लेसेंटा पर्याप्त ऑक्सीजन देने में विफल रहता है) आदि।
6. एक से अधिक जन्म – एक साथ एक से अधिक बच्चों का जन्म होना। इसके साथ जो सबसे बड़ा जोखिम है वह है समय से पहले जन्म। समय से पहले जन्मे शिशुओं में पाचन तंत्र और
हृदय सम्बन्धी जोखिम, एनीमिक, कम वजन आदि समस्याएं
पाये जाने की सम्भावना अधिक होती है।
7. जन्मपूर्व विकास का प्रभाव – शिशु के प्रत्येक अंग का विकास जन्मपूर्व विकास के दौरान विशिष्ट समय अवधि से जुड़ा होता है जो आनुवंशिक ब्लूप्रिंट द्वारा निर्धारित होता है। प्रसवपूर्व किसी भी अंग के विकास में हुई देरी जन्म के बाद के जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है जो कई बार खतरनाक भी हो सकती है।
8. बड़े भाई-बहनों का व्यवहार – नए बच्चे का आगमन बड़े भाई-बहन के लिए थोड़ा परेशान करने वाला हो सकता है जो समायोजन संबंधित समस्या को जन्म दे सकता है। बड़े भाई-बहन शिशु से जलन महसूस करने लगते हैं, उन पर प्रहार कर सकते हैं, मार सकते हैं, चुटकी काट सकते हैं या यहाँ तक कि तकिये के
साथ उसका दम भी घोट सकते हैं। ये गतिविधियाँ बड़े भाई-बहनों में कुंठा का संकेत होते हैं।
References:
1. https://www.slideshare.net/danielesguapito/
infancy-the-early-stage-of-development
2. https://www.babygaga.com/15-crazy-ways-childbirth-differs-from-culture-to-culture/
3.
https://www.understood.org/en/learning-attention-issues/treatments-approaches/early-intervention/what-you-need-to-know-about-developmental-delays.
4.
https://www.familylives.org.uk/advice/early-years-development/behaviour/dealing-with-challenging-behaviour-when-a-new-baby-arrives/
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