Wednesday, July 21, 2021

जन्मपूर्व विकास

 


परिभाषा

            प्रसवपूर्व विकास उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसमें गर्भाधान के बाद एक भ्रूण से गर्भस्थ शिशु और बाद में एक एक बच्चे के रूप में विकसित होता है।

 

विकास

             पितासूत्र से मातृसूत्र के निषेचन की प्रकृति की अद्भुत प्रक्रिया से मानव जीवन प्रारम्भ होता है। निषेचन से जन्म तक के समय को जन्म पूर्वकाल अथवा जन्म पूर्व विकास का काल कहा जाता है। सामान्यत: जन्म पूर्वकाल दस चन्द्रमास अथवा नौ कैलेण्डर मास अथवा अड़तीस से चालीस सप्ताह तक अथवा 280 दिन का होता है। निशेचित मातृसूत्र एकल कोशिका को युग्म कहते हैं, जिसका अर्थ होता है "संयोजन या परस्पर गठन"। गर्भाधान के लगभग 24 से 30 घंटे पश्चात् युग्म अपनी पहली कोशिका विभाजन पूरा करता है।  सर्वप्रथम दो कोषों में विभाजित होता है, जिसमे से प्रत्येक कोष पुन: दो-दो में विभाजित हो जाते हैं। कोष विभाजन की यह प्रक्रिया अत्यंत तीव्र गति से चलने लगती है। इनमें से कुछ कोष प्रजनन कोष बन जाते हैं तथा अन्य शरीर कोष बन जाते हैं। शरीर कोषों से ही माँसपेशियों, स्नायुयों तथा शरीर के अन्य भागों का निर्माण होता है।

 

          युग्म के 46 क्रोमोसोम्स से एक नए व्यक्ति के पूरे जनन खाकों का पहला चरण पूरा होता है। इसे डीएनए कहते हैं जिसमे पूरे शरीर के विकास के अनुदेश निहित होते हैं। डीएनए के अणु एक मरोङी सीढ़ी जैसे दिखते हैं।

 

यदि हम किसी प्रौढ़ व्यक्ति की 1000 खरब कोशिकाओं के भीतर से सभी डीएनए अलग-अलग करें तो इसकी लंबाई 630 अरब मील हो जाएगी। यह दूरी पृथ्वी से सूर्य तक तथा सूर्य से वापसी पृथ्वी तक 340 बार होती है

 

          गर्भाधान के 3 से 4 दिन बाद भ्रूण की विभाजक कोशिकाएं गोलाकार रूप धारण करती हैं और वह भ्रूण बीजाणु कहलाता हैं। उसके पश्चात प्रारंभिक भ्रूण माता के गर्भाशय की भीतरी पर्त के साथ संलग्न हो जाता है।

 

            3 सप्ताह में मस्तिष्क तीन प्रारंभिक खंडों में विभक्त होता है। जिन्हें अग्र मस्तिष्क मध्य मस्तिष्क और पश्च मस्तिष्क कहते हैं। इसी दौरान श्वसन और पाचन प्रणालियों का विकास भी चलता रहता है। गर्भाधान के तीन सप्ताह और एक दिन के बाद दिल धड़कने लगता है। परिसंचलन प्रणाली या संबंधित अंगों का समूह शरीर के कार्य को शुरू करने के लिए पहली शारीरिक प्रणाली है। 3 और 4 सप्ताह के बीच भ्रूण में शारीरिक विन्यास दिखने लगता है।

 

            दिल एक समान प्रति मिनट लगभग 113 बार धड़कता है। दिल जन्म से पहले लगभग 540 लाख बार धड़कता है और 80 वर्ष के जीवन काल में 320 करोड़ से अधिक बार धड़कता है। पांचवे सप्ताह में त्वचा भी पारदर्शी होती है क्योंकि इसकी मोटाई केवल एक कोशिका की होती है। सिर भ्रूण के कुल आकार का लगभग 1/3 हिस्सा होता है।

 

            4 और 5 सप्ताहों के बीच मस्तिष्क में तेज़ी से वृद्धि होती है, प्रमस्तिष्कीय गोलार्ध दिखाई देने लगता है और धीरे-धीरे यह मस्तिष्क का बड़ा हिस्सा हो जाता है।यह कार्यों में विचार, सीखने की क्षमता, स्मृति, जुबान, दृष्टि, श्रवण, स्वैच्छिक गतिविधि तथा समस्या समाधान को नियंत्रित करता है। स्थायी गुर्दे 5 सप्ताह में दिखाई देने लगते हैं। भ्रूण में अपने आप तथा प्रतिक्रियास्वरूप हलचल होने लगती है। 6 सप्ताह में श्वेत रक्त कोशिकाएं विकसित होना शुरू होती हैं जो रोग निरोधक प्रणाली का मुख्य हिस्सा होती हैं।

 

            6-1/2 सप्ताह में कोहनियां दिखाई देने लगती हैं और अंगुलियां अलग-अलग बननी शुरू होती हैं। सातवें सप्ताह से हिचकियां आने लगती हैं और पैर भी हिलते-डुलते दिखाई देने लगते हैं। चार कोष्ठीय दिल लगभग पूरा हो जाता है।

 

            7-1/2 सप्ताह में आंख की पुतली आसानी से दिखाई देने लगती है और पलकों का तेज़ी से विकास होने लगता है।

 

            8 सप्ताह में मस्तिष्क काफी विकसित होता है और भ्रूण के कुल भार के लगभग आधा होता है।

 

            यद्यपि गर्भाशय में कोई हवा नहीं होती, फिर भी भ्रूण 8वें सप्ताह से रुक-रुक कर सांस लेने जैसी गतिविधियां करता दिखाई देता है त्वचा की पारदर्शिता काफी हद तक समाप्त हो जाती है और गर्भस्थ शिशु की अवधि आरम्भ होती है।

           

            8वां सप्ताह भ्रूणीय अवधि की समाप्ति होती है। भ्रूण में अब किसी प्रौढ़ व्यक्ति में पाए जाने वाली संरचना का 90% से अधिक भाग विकसित हो चूका होता है। गर्भस्थ शिशु की अवधि जन्म तक चलती है।

 

            9वें सप्ताह से शिशु अंगूठा चूसना आरंभ करता है  तथा लड़की है या लड़का होने कि पहचान होने लगती है।

 

            11वें सप्ताह से नाक और होंठों का पूरी तरह निर्माण हो जाता है। लिंग के आधार पर विकास में अंतर पहली बार दिखाई देता है। उदाहरण के लिए बालिका गर्भस्थ शिशु जबड़े को बालक शिशु से अधिक बार चलाता है। दांतों का विकास होने लगता है।

 

            19वें सप्ताह से गर्भस्थ शिशु का हिलना डुलना, उसकी श्वसन क्रिया और दिल की धड़कन दैनिक चक्र के अनुसार चलने लगती है जिसे सरकैडियन रिद्म कहते हैं।

 

            20वें सप्ताह  में खोपड़ी में बाल उगने शुरू होते हैं।

 

            21 से 22 सप्ताह तक फेफड़ों में सांस लेने की कुछ क्षमता जाती है।

 

            24वें सप्ताह में गर्भस्थ शिशु पलकें पुनः खोलता है और उसमें पलक झपकने की अनूठी प्रतिक्रिया विकसित होती है। 

 

            26वें सप्ताह से आंखों में आंसू तैयार हो जाते हैं तथा गंध सूंघने की क्षमता विकसित हो जाती है।

 

          गर्भस्थ शिशु में त्वचा के नीचे अतिरिक्त वसा भर जाता है जो  शरीर के तापमान को बनाए रखने और जन्म के पश्चात ऊर्जा भंडारण में भूमिका अदा करता है।

           

            28वें सप्ताह में गर्भस्थ शिशु धीमी और ऊंची आवाज़ पहचानने लगता है।

 

            30वें सप्ताह से सांस लेने की गतिविधि सामान्य हो जाती है।

            35वें सप्ताह में गर्भस्थ शिशु के हाथ की जकड़ मजबूत हो जाती है। माता के विभिन्न पदार्थों के सेवन से गर्भस्थ शिशु जन्म के बाद स्वाद के प्रति उसकी रुचि निर्धारित करता है उदाहरण के लिए यदि किसी गर्भस्थ शिशु की माता ने सौंफ खाई है तो बच्चे  में भी सौंफ के प्रति रुचि दिखाई देती है।

 

            गर्भस्थ शिशु एस्ट्रोजन नामक हार्मोन का अधिक स्त्राव करके प्रसव दर्द शुरू करता है और इस प्रकार गर्भस्थ शिशु से नवजात शिशु तक की यात्रा तय होती है। गर्भाधान से बच्चे के जन्म तक और उसके पश्चात मानव विकास जारी रहता है और इसमें जटिलता बढ़ती जाती है। इस आकर्षक प्रक्रिया के संबंध में नई खोजों से अधिकाधिक पता चलता है कि गर्भस्थ शिशु के विकास का जीवनपर्यंत स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव दिखाई देता है। जन्म से पूर्व की अवधि ऐसे समझी जाने लगी है जिसके दौरान विकासशील मानव अनेक प्रकार की संरचनाएं प्राप्त करता है तथा ऐसी अनेक दक्षता हासिल करता है जो जन्म के बाद जीने के लिए आवश्यक होती हैं।

 

 

References:

1.         http://www.ehd.org/resources_bpd_ documentation. php?language=37

2.         NCERT XI Psychology Text Book.

3.         NCERT XI & XII Biology Text Book.

 

 

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