जन्मपूर्व अवधि – यह गर्भधारण और जन्म के बीच का समय होता है। मानव शरीर, ज्यादातर जानवरों की तरह, एक कोशिका से विकसित होता है जो एक नर और मादा के शुक्राणु अथवा डिम्बाणु के मिलन से उत्पन्न होता है। प्रसवपूर्व विकास के लिए औसत समय लगभग 38 सप्ताह का होता है। प्रसवपूर्व अवधि आमतौर पर तीन चरणों में विभाजित होती है यानी जीवाश्म चरण, भ्रूण चरण और गर्भस्थ शिशु चरण।
(i) जीवाश्म चरण – गर्भधारण (अंडे के साथ शुक्राणु का समागम) से लेकर दो हफ्ते तक की अवस्था जिसमे युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है। इस चरण में कोशिकायें एक गेंद का आकार लेती हैं जो ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्व प्राप्त करना शुरू कर देती है।
(ii) भ्रूण चरण – जीवाश्म चरण के अंत से यानि तीसरे सप्ताह से आठवें सप्ताह तक (गर्भधारण के बाद दो महीने तक) कोशिकाओं की उस गेंद को 'भ्रूण' कहा जाता है। मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के विकास के लिए यह चरण सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस चरण में हृदय तथा रक्त वाहिकाओं (कार्डियोवैस्कुलर) और अन्य विशिष्ट अंगों जैसे आंखों, कानों, नाक आदि का निर्माण शुरू होता है। मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की मूल संरचना भी इसी चरण में निर्धारित होती है (verywellmind.com).
(iii) गर्भस्थ शिशु चरण – यह चरण 9वें सप्ताह (लगभग 2 महीने) से शुरू होता है और जन्म तक चलता रहता है। इस चरण में भ्रूण चरण के दौरान शुरू हुई शारीरिक प्रणालियाँ और विकसित होती हैं। भविष्य में विकसित होने वाली मनोवैज्ञानिक विशेषताओं के लिए ‘मस्तिष्क विकास की आंतरिक प्रक्रिया’ का निर्माण भी इसी चरण में होता है। इसी चरण में गर्भस्थ शिशु स्वयं को बाहरी जीवन के लिए तैयार करता है।
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