Wednesday, July 21, 2021

शिशुओं का समायोजन

 


परिचय

            माँ के गर्भ के प्राकृतिक वातावरण में शिशु सुरक्षित रहता है। शिशु के लिए जन्म प्रक्रिया कठिन और दर्दनाक होती है। जन्म के बाद का वातावरण पूरी तरह से अलग होता है जिसमें शिशु को समायोजन की आवश्यकता होती है क्योंकि बाहरी वातावरण ठंडा, चमकदार, और शोर शराबे से युक्त होता है। जन्म के पश्चात् वह भूख और प्यास का अनुभव करता है। शिशु को बाहरी चुनौतियों से निपटने और जीवित रहने के लिए समायोजन और अनुकूलन करना पड़ता है।

             शिशुओं को अपनी विकास की प्रगति को शुरू करने से पहले चार प्रमुख समायोजन करने होते हैं। पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाने में विफलता घातक हो सकती है। समायोजन की अवधि के दौरान वृद्धि और विकास लगभग थम सा जाता है बल्कि शिशु विकास के एक पठार पर जाता है और कई बार तो विकास के निचले चरण तक भी पहुँच जाता है।

 समायोजन की प्रक्रिया

1.         तापमान में परिवर्तन सम्बन्धी समायोजन माँ के गर्भ के (आंतरिक) तापमान (100 डिग्री F या 37.78 डिग्री सेल्सियस) और बाहरी तापमान के बीच के अंतर को देखते हुए शिशु को जिंदा रहने के लिए त्वरित समायोजन की आवश्यकता होती है।

2.         श्वसन सम्बन्धी समायोजनजन्म से पहले गर्भनाल बच्चे को ऑक्सीजन प्रदान करती है लेकिन जन्म के बाद जब गर्भनाल को काट कर अलग कर दिया जाता है तो उस समय शिशु को स्वयं साँस लेने की जरूरत होती है जिसमे देरी करना घातक हो सकता है।

3.         निष्कासन सम्बन्धी समायोजन शिशु के मल-मूत्र निष्कासन सम्बन्धी अंगों को जन्म के तुरंत बाद काम शुरू करना अति आवश्यक होता है। जन्म से पहले गर्भनाल द्वारा जिन अपशिष्ट पदार्थों को समाप्त कर दिया जाता था उनको अब इन अंगों के माध्यम से निष्कासित करना होता है।

4.         पोषण सम्बन्धी समायोजन जन्म से पहले गर्भनाल बच्चे को पोषण प्रदान करती है लेकिन जन्म के बाद जब गर्भनाल को काट कर अलग किया जाता है, तो शिशु को चूसने और निगलने की प्रक्रिया से पोषण प्राप्त करना होता है। चूसने और निगलने की प्रक्रियाएं जन्म के समय कम विकसित होती हैं जिसके परिणामस्वरूप शिशु आवश्यकता से कम पोषण ग्रहण कर पाता है जिसके कारण उसका वजन घट जाता है।

 

समायोजन प्रक्रिया की असफलता के परिणाम

             जन्म के बाद लगभग 13 दिन तक की अवधि अत्यंत संक्रमणकालीन होती है जहां शिशु निम्नलिखित चुनौतियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं : -

1.         जन्म के पहले सप्ताह में शिशु का वजन तेजी से कम होता है।

2.         लगभग एक सप्ताह तक शिशु विभेदित और अव्यवस्थित व्यवहार प्रदर्शित करता है। यह कपाल संचलन (Cranial Circulation) और शारीरिक समस्थिति (homeostasis) में असंतुलन के कारण

होता है।

3.         संक्रमण और अंगों की कार्य   करने की संभावना।

4.         उच्च शिशु मृत्यु दर।

            शिशु की प्राथमिक देखभाल माँ करती है, इसलिए उसे पहले से ही इन जोखिमों से अवगत कराया जाना चाहिए ताकि वह अपने शिशु की उचित देखभाल कर सके और उसे इन जोखिमों से बचा सके। परिवार के सदस्यों को भी शिशु एवं उसकी माँ की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। उन्हें माँ और बच्चे को सुरक्षित और स्वस्थ (मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से) रखने के लिए आवश्यक व्यवस्था करनी चाहिए।

 

References:

1.         NCERT, XI Psychology Text book.

2.         https://www.imbalife.com/major-adjustment-of-infancy-and-different-kinds-of-birth.

3.         https://opentextbc.ca/anatomyandphysiology/ chapter/28-5-adjustments-of-the-infant-at-birth-and-postnatal-stages/

  

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शैशवकाल के जोखिम

 


परिचय

            शैशवावस्था का चरण 0 से 24 महीने (2 वर्ष) का होता है। शिशु असहाय एवं माता-पिता परअत्यधिक निर्भर होते हैं तथा बाहरी वातावरण की चुनौतियों का सामना में असमर्थ होते हैं जिन्हें शैशवावस्था के जोखिमों के रूप में जाना जाता है। शिशुओं को मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दोनों प्रकार के जोखिम  हो सकते हैं। इन जोखिमों से शिशु की विकास प्रक्रिया महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित होती है।

 

जोखिम                       

(i)        मनोवैज्ञानिक एवं

(ii)       शारीरिक

मनोवैज्ञानिक जोखिम

1.         जन्म से संबंधित मान्यताएं और विश्वासमान्यताएं और विश्वास सांस्कृतिक प्रभावों का परिणाम होते हैं कुछ संस्कृतियों में प्रसव के बाद महिलाओं को एक या दो सप्ताह के लिए अंधेरे कमरे में रखा जाता है। शिशु और महिलाओं के विकास पर ये सांस्कृतिक प्रथाएं नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल सकती हैं।

2.         प्राकृतिक बेबसी शिशु की पूर्ण निर्भरता उसे बेबस और लाचार बनाती है जो उस के मनोवैज्ञानिक विकास में बाधा का कारण बनती है।

3.         अतिसंरक्षित (हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग)शिशुओं की अतिसंरक्षिता से उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो सकती है, तथा ऐसे शिशुओं में बड़े होने पर आत्मविश्वास और आत्म सम्मान, की कमी पाई जाती है। और उनमे जिम्मेदारी से बचने की प्रवृति उत्पन्न होती है

4.         विकासात्मक पिछड़ना विकास के दौरान अपनी उम्र के अन्य बच्चों से पीछे रहने वाले बच्चे को विकासात्मक रूप से पिछड़ना कहा जाता है। यह जन्म सम्बन्धी जटिलताओं, पर्यावरणीय कारकों और कुछ चिकित्सा स्थितियों के कारण हो सकता है।

5.         विकास सम्बन्धी  समस्याएंशैशवावस्था से जुड़े विभिन्न कारकों के कारण शिशु को संज्ञानात्मक, भावनात्मक, भाषण और भाषा क्षेत्रों में विकास सम्बन्धी  जोखिमों  का सामना करना पड़ सकता है।

6.         माता का मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य यह स्थिति शिशु के विकास के लिए बड़ा खतरा होती है। माताएँ अगर किसी सेआशंका, अवसाद, दुश्चिंता आदि से पीड़ित होने पर उनका व्यवहार अलग तरह का हो सकता है जो शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है।

7.         माता-पिता का दृष्टिकोणमाता-पिता का रवैया बच्चे के लालन-पालन सम्बन्धी प्रथाओं को निर्धारित करता है जिसका शिशु के विकास के साथ सीधा संबंध होता है।

8.         परिवार के सदस्यों का दृष्टिकोणपरिवार के सदस्यों की सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताएं शिशु के प्रति उनके रवैये को निर्धारित करते हैं। यह दृष्टिकोण उनके व्यवहार के रूप में परिलक्षित होता है और शिशु पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।

9.         नामकरण  नाम किसी भी व्यक्ति की प्राथमिक पहचान होती है जिसका प्रभाव व्यक्ति केव्यक्तित्वऔर 'स्वपर जीवन पर्यन्त बना रहता है। हास्यजनक और अनुचित नाम मनोवैज्ञानिक रूप से हानिकारक हो सकते हैं।

 

शारीरिक जोखिम

1.         समय से पहले जन्म नियत तारीख से 3 सप्ताह या उससे पहले होने वाला जन्म। यह एक बड़ा खतरा होता है जिसके कारण ऐसे शिशुओं में अपरिपक्व फेफड़े पाये जाते हैं, शरीर के तापमान को विनियमित करने में कठिनाई होती है और वजन भी धीमी गति से बढ़ता है आदि।

2.         जन्म प्रक्रिया संबंधित जटिलताएंजन्म से संबंधित समस्याएं जैसे कि जन्म से पहले बच्चे की असामान्य स्थिति, बच्चे की गर्दन के चारों ओर गर्भनाल का लिपटना, बच्चे से पहले जनन मार्ग में गर्भनाल का आना, जनन मार्ग में बच्चे का फंस जाना आदि बच्चे के साथ-साथ इससे माँ को भी खतरा हो सकता है।

3.         नवजात या शिशु मृत्यु दर – 5 वें जन्मदिन से पहले प्रति 1000 शिशुओं पर मृत शिशुओं की संख्या। समय से पहले जन्म, निमोनिया, जन्मजात विकृतियां, लम्बी प्रसव पीड़ा, नवजात संक्रमण, दस्त, मलेरिया, खसरा और कुपोषण आदि कुछ ऐसे कारक हैं जो शिशु को मृत्यु की ओर ले जाते हैं।

4.         रोगों के प्रति संवेदनशीलता शिशु रोगजनकों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं जिसका मुख्य कारण उनकी अविकसित प्रतिरक्षा प्रणाली एवं बाहरी कठोर पर्यावरण की स्थिति होती है।

5.         प्रसवोत्तर प्रसव – 42 सप्ताह की गर्भावस्था के बाद जन्म लेने वाले शिशु। प्रसवोत्तर प्रसव के कारण शिशुओं को कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है जैसे वे मोटापे के शिकार हो सकते हैं, बचपन का मधुमेह, शिशु की सांस के साथ एमनियोटिक द्रव का घुसना, प्लेसेंटा अपर्याप्तता के कारण ऑक्सीजन की कमी (प्लेसेंटा पर्याप्त ऑक्सीजन देने में विफल रहता है) आदि।

6.         एक से अधिक  जन्म एक साथ एक से अधिक बच्चों का जन्म होना। इसके साथ जो सबसे बड़ा जोखिम है वह है समय से पहले जन्म। समय से पहले जन्मे शिशुओं में पाचन तंत्र और हृदय सम्बन्धी जोखिम, एनीमिक, कम वजन आदि समस्याएं पाये जाने की सम्भावना अधिक होती है।

7.         जन्मपूर्व विकास का प्रभाव शिशु के प्रत्येक अंग का विकास जन्मपूर्व विकास के दौरान विशिष्ट समय अवधि से जुड़ा होता है जो आनुवंशिक ब्लूप्रिंट द्वारा निर्धारित होता है। प्रसवपूर्व किसी भी अंग के विकास में हुई देरी जन्म के बाद के जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है जो कई बार खतरनाक भी हो सकती है।

8.         बड़े भाई-बहनों का व्यवहारनए बच्चे का आगमन बड़े  भाई-बहन के लिए थोड़ा परेशान करने वाला हो सकता है जो समायोजन संबंधित समस्या को जन्म दे सकता है। बड़े भाई-बहन शिशु से जलन महसूस करने लगते हैं, उन पर प्रहार कर सकते हैं, मार सकते हैं, चुटकी काट सकते हैं या यहाँ तक कि तकिये के साथ उसका दम भी घोट सकते हैं। ये गतिविधियाँ बड़े भाई-बहनों में कुंठा का संकेत होते हैं।

 

References:

1.         https://www.slideshare.net/danielesguapito/ infancy-the-early-stage-of-development

2.         https://www.babygaga.com/15-crazy-ways-childbirth-differs-from-culture-to-culture/

3.         https://www.understood.org/en/learning-attention-issues/treatments-approaches/early-intervention/what-you-need-to-know-about-developmental-delays.

4.         https://www.familylives.org.uk/advice/early-years-development/behaviour/dealing-with-challenging-behaviour-when-a-new-baby-arrives/

 

 

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