Thursday, October 31, 2019

मानव आँख की संरचना और कार्य



परिभाषा

संवेदनाबाहरी या आंतरिक उद्दीपकों की पहचान करना।
संवेदी प्रक्रियाइंद्रियों (आंख, कान, नाक, त्वचा  और जुबान) के सक्रियण  के माध्यम से आंतरिक  या  बाहरी उद्दीपकों की  पहचान करने की क्रिया।

दृष्टि संवेदी प्रक्रिया
          दृष्टि संवेदी प्रक्रिया का अर्थ है दृश्य उद्दीपकों          को तंत्रिका आवेग में परिवर्तित करना। मानव आँख एक विशेष इन्द्री होती है जो प्रकाश का पता लगा कर इसे तंत्रिका आवेग में बदल देता है। वास्तव में आँख, प्रकाश की किरणों को प्रतिबिम्बों में परिवर्तित करने की क्षमता रखती है।
मानव आँख की संरचना
1.       आंख की सबसे बाहरी परत में एक पारदर्शी झिल्ली होती है जिसे श्वेतपटल (Cornea) के रूप में जाना जाता है।
2.       आंख की दूसरी परत पानी जैसे द्रव से बनी होती है जिसे नेत्रोद (Aqueous Humor) (पोषण चैनल) कहा जाता है।
3.       फिर उसके बाद एक गोलाकार छेद होता है जिसे पुतली (Pupil) के रूप में जाना जाता है जो परितारिका (Iris) नामक मांसपेशी (आंख का रंगीनहिस्सा) में पाया गया।
4.       लेंस आंख का अगले हिस्सा होता है जो परितारिका (Iris) नामक मांसपेशी के पीछे लटका हुआ होता है।
5.       उसके बाद होता है जेली जैसे पदार्थ काचाभ द्रव (Vitreous Humor ) जो एक प्रोटीन होता है से भरा खुला स्थान (आंखों को पोषण देता है और आंख के आकार के लिए जिम्मेदार होता है)।
6.       अंतिम भाग जहां जाकर प्रकाश रुकता है वह दृष्टिपटल (Retina) होता है जिसमें दो प्रकार के प्रकाशग्राही (Photoreceptor) स्थित होते हैं जिन्हें दंड और शंकु (Rod and Cones) के रूप में जाना जाता है।

प्रत्येक भाग का कार्य
1.       श्वेतपटल (Cornea) – प्रकाश का अपवर्तन (Refraction)।
2.       पुतली (Pupil) – इष्टतम प्रकाश का प्रवेश सुनिश्चित करना।
3.       परितारिका (Iris) – पुतली के छिद्र के आकार का नियंत्रण (सिकोड़ना या विस्तृत करना)।
4.       नेत्रोद (Aqueous Humor) – पोषण और आँख को आकार देना।
5.       लेंस – प्रकाश का अपवर्तन। 
6.       काचाभ द्रव (Vitreous Humor) – पोषण और आँख को आकार देना।
7.      दृष्टिपटल (Retina) – दंड और शंकु की मदद से प्रकाश को तंत्रिका आवेग में परिवर्तित करना।
8.       दृष्टि तंत्रिका (Optic Nerve) – तंत्रिका आवेग को मस्तिष्क तक पहुंचाना।
मानव आँख की क्रियाविधि
           पहली मुठभेड़ में प्रकाश की किरणें श्वेतपटल (कॉर्निया) से मिलती हैं और फिर गोल द्वार यानी पुतली में प्रवेश करती हैं जिसका व्यास प्रहरी के रूप में जाने जानी वाली वाले परितारिका (Iris) नामक मांसपेशी की एक जोड़ी द्वारा नियंत्रित किया जाता है। पुतली के माध्यम से मिलने के बाद प्रकाश की किरणें नेत्रोद से होकर गुजरती हैं और पारदर्शी लटकते हुए (सिलिअरी मांसपेशियों द्वारा) सा थी लेन्स से गुजरती है जिसे वह परावर्तित कर देता है। उसके बाद प्रकाश, जेली जैसे पदार्थ जिसे काचाभ द्रव (विटरियस ह्यूमर) कहा जाता है से गुजरते हुए नेत्रगोलक के पीछे मौजूद रेटिना पर केंद्रित हो जाता है। लेंस प्रकाश की किरणों को इस तरह से परावर्तित करता है कि वस्तु का बिम्ब रेटिना पर उल्टा बनता है। इस स्थिति में दंड और शंकु उत्तेजित होकर प्रकाश की किरणों को तंत्रिका आवेग में परिवर्तित कर देते हैं जो दृष्टि तंत्रिका के माध्यम से मस्तिष्क में पहुँच जाता है। और इस प्रकार वास्तु हमें दिखाई देती है।


कुछ महत्वपूर्ण पद
1.       दंड – ऐसे संवेदी ग्राहक जो कम प्रकाश में में दृष्टि के लिए जिम्मेदार होते हैं (स्कॉप्टिक दृष्टि या रात की दृष्टि)। मानव की हर आँख में लगभग दस करोड़ दण्ड पाये जाते हैं।
2.       शंकु – ऐसे संवेदी ग्राहक जो वर्णक्रमीय दृष्टि या रंग दृष्टि (वर्ण दृष्टि या दिन दृष्टि) के लिए जिम्मेदार होते हैं। प्रत्येक आंख में लगभग 70 लाख शंकु पाए जाते हैं।
3.       गर्तिका (Fovea) – रेटिना का केंद्रीय हिस्सा जिसमे शंकु उच्चतम सांद्रता (concentration)में उपस्थित होते हैं । इसे पीत बिन्दु भी कहा जाता है
4.       अंध स्थल – रेटिना का वह क्षेत्र जहाँ पर कोई भी प्रकाश ग्राही नहीं पाए जाते हैं और दृष्टि तन्त्रिका दृष्टि पटल को इस क्षेत्र से छोड़ती है। इस क्षेत्र में दृष्टि संवेदना अनुपस्थित रहती है।
5.       निकटदृष्टिता – ऐसी स्थिति में पास की वस्तुएं स्पष्ट रूप से दिखाई देती है और दूर की वस्तुएं फोकस से बाहर होती हैं। वस्तु का बिंब रेटिना पर बनने के बजाय रेटिना से पहले ही बन जाता है।
6.       दूरदृष्टिता – ऐसी स्थिति में दूर की वस्तुएं स्पष्ट रूप से दिखाई देती है और पास की वस्तुएं फोकस से बाहर होती हैं। वस्तु का बिंब रेटिना पर बनने के बजाय रेटिना से परे बनता है।
7.       दृष्टि तंत्रिका  – नाड़ीग्रन्थि कोशिकाओं के अक्षतंतुओं का एक समूह जो रेटिना के पीछे पाया जाता है।
8.       दृश्य अनुकूलन – प्रकाश की विभिन्न तीव्रता         में समायोजित होने की प्रक्रिया।
9.      प्रकाश अनुकूलन – कम प्रकाश के प्रभाव के बाद तेज प्रकाश में समायोजित होने की प्रक्रिया। (समय लगभग 1 से 2 मिनट)।
10.     तमोनुकूलन – तेज प्रकाश के प्रभाव के बाद कम प्रकाश में समायोजित होने की प्रक्रिया। (समय लगभग 30 मिनट)।
11.     उत्तर प्रतिमाएँ – उद्दीपक को दृश्य क्षेत्र से हटाए जाने के बाद भी दृश्य उत्तेजना के प्रभाव का बने रहना।

संदर्भ:
1.       NCERT, XI Psychology Text book.
2.       Ciccarelli, S. K. & Meyer, G. E. (2016). Psychology. Noida: Pearson India.
3.       Baron, R. (1993).  Psychology.
4.       https://www.thepoke.co.uk/2011/06/16/ colour-mind-trick/

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