परिभाषा
संवेदना – बाहरी या आंतरिक उद्दीपकों की पहचान करना।
संवेदी प्रक्रिया – इंद्रियों (आंख, कान, नाक, त्वचा और जुबान) के सक्रियण के माध्यम से आंतरिक या बाहरी उद्दीपकों की पहचान करने की क्रिया।
संवेदी प्रक्रिया
मस्तिष्क विभिन्न इन्द्रियों से सूचना प्राप्त करता है और इन सूचनाओं के आधार पर मस्तिष्क शरीर को गतिविधि करने का आदेश देता है अर्थात मानवीय गतिविधियाँ मस्तिष्क के आदेश के परिणामस्वरुप उत्पन्न होती हैं। इन्द्रियां आंतरिक या बाहरी वातावरण से आने वाले उद्दीपकों से सक्रिय होती हैं। इन्द्रियों, न्यूरॉन्स, ऊतकों, मांसपेशियों, हड्डियों, मन और मस्तिष्क के सामूहिक प्रयासों से उद्दीपकों को ग्रहण करके व्यवस्थित किया जाता है और अंत में उनकी व्याख्या की जाती है।
संवेदी अंगों (इन्द्रियों) के संवेदी ग्राहक (विशिष्ट कोशिकाएं) बाहरी या आंतरिक भौतिक
उद्दीपकों को विद्युत रसायनिक संकेतों में परिवर्तित कर देते हैं जिन्हे तंत्रिका-आवेग
के रूप में जाना जाता है जो आगे के प्रसंस्करण के लिए विभिन्न चैनलों के माध्यम से
विशिष्ट मस्तिष्क केंद्रों तक भेजे जाते हैं। उद्दीपकों को तंत्रिका आवेग में परिवर्तित
करने की इस पूरी प्रक्रिया को संवेदी प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है।
संवेदी
सीमायें
संवेदी अंगों (इन्द्रियों) की भी कुछ सीमाएँ होती
हैं जैसे आँख 380-780 नैनो मीटर (एक नैनोमीटर एक मीटर का एक अरबवां भाग होता है) के
दृश्यमान स्पेक्ट्रम से परे नहीं देख सकती है, कान 20 हर्ट्ज से कम और 20000 हर्ट्ज
से ज्यादा नहीं सुन सकते हैं। उत्तेजना (Sensation) शुरू करने के लिए किसी भी उद्दीपक
का न्यूनतम मूल्य होना चाहिए। किसी भी संवेदी प्रणाली को उत्प्रेरित करने के लिए उद्दीपक
का न्यूनतम मूल्य ‘निरपेक्ष सीमा’ (Absolute Threshold or Absolute Limen) के रूप में
जाना जाता है (NCERT).
दृष्टि
संवेदी प्रक्रिया
दृष्टि
संवेदी प्रक्रिया का अर्थ है दृश्य उद्दीपकों को तंत्रिका आवेग में परिवर्तित करना।
‘प्रकाश’
(मानव आंख 380 - 780 नैनोमीटर के विद्युतचुंबकीय विकिरण के बीच ही देख सकती है) दृश्य
संवेदी प्रक्रिया की शुरुआत करता है। जब किसी वस्तु से परावर्तित होकर प्रकाश आंख में
प्रवेश करता है तो दृष्टि संबंधी प्रक्रिया की शुरुआत होती है। मानव आँख एक विशेष इन्द्री
होती है जो प्रकाश का पता लगा कर इसे तंत्रिका आवेग में बदल देता है।
प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा होती है
जो 299 792 458 मीटर/सेकंड (लगभग 3 लाख किमी प्रति सेकंड) की गति से यात्रा करता है)।
प्राकृतिक प्रकाश सात रंगों का मिश्रण होता है। रंग मनुष्य के संवेदी अनुभव का मनोवैज्ञानिक
गुण होते हैं और मस्तिष्क ही प्राकृतिक प्रकाश की विभिन्न रंगों के रूप में में व्याख्या
करता है।
रंगों की निम्नलिखित तीन मूल विमाएँ
होती हैं -
(i) द्युति
(चमक) [Brightness],
(ii) संतृप्ति
(Saturation) और
(iii) वर्ण
(Hue)।
(i) द्युति – प्रकाश की प्रत्यक्षित तीव्रता।
यह दृश्य प्रत्यक्षं की एक महत्वपूर्ण
विशेषता होती है। यह प्रकाश तरंग के आयाम (Amplitude) द्वारा निर्धारित होती है।
(ii) संतृप्ति – यह ऐसा मनोवैज्ञानिक गुण होता है जो रंग की शुद्धता
को परिभाषित करता है। यह बिंब में रंग की
तीव्रता को दर्शाता है। पूरी तरह से संतृप्त
रंग सबसे शुद्ध होता है। जब रंग पूरी तरह से संतृप्त होता है, तो रंग का यह शुद्धतम (ट्रूस्ट) संस्करण माना जाता
है। उच्चतम संतृप्ति के साथ लाल, नीले
और हरे रंगों को प्राथमिक रंग माना जाता है।
(iii) वर्ण – वर्ण दृश्य-प्रकाश स्पेक्ट्रम के
अंतर्गत तरंग दैर्ध्य को कहा जाता है
जहाँ पर किसी स्रोत से ऊर्जा का उत्पादन सबसे
अधिक होता है। यह रंग का वह गुण होता
है जिसके माध्यम से किसी भी रंग जैसे लाल, हरा, आदि
की पहचान होती है जो अपने विशिष्ट तरंग दैर्ध्य पर निर्भर होता है और किसी प्रकार की तीव्रता या चमक से स्वतंत्र होता है।
सन्दर्भ :
1. NCERT, XI Psychology Text book.
2. Ciccarelli, S. K. & Meyer, G. E. (2016). Psychology.
Noida: Pearson India.
3. Baron, R. (1993).
Psychology.
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