Thursday, October 31, 2019

श्रवण-संबंधी संवेदी प्रक्रिया


परिभाषा
संवेदना – बाहरी या आंतरिक उद्दीपकों की पहचान करना।
संवेदी प्रक्रिया – इंद्रियों (आंख, कान, नाक, त्वचा और जुबान)के सक्रियण के माध्यम से  आंतरिक या  बाहरी उद्दीपकों की पहचान करने की क्रिया।

संवेदी प्रक्रिया
           मस्तिष्क विभिन्न इन्द्रियों से सूचना प्राप्त करता है और इन सूचनाओं के आधार पर मस्तिष्क शरीर को गतिविधि करने का आदेश देता है अर्थात मानवीय गतिविधियाँ मस्तिष्क के आदेश के परिणामस्वरुप उत्पन्न होती हैं। इन्द्रियां आंतरिक या बाहरी वातावरण से आने वाले उद्दीपकों से सक्रिय होती हैं। इन्द्रियों, न्यूरॉन्स, ऊतकों, मांसपेशियों, हड्डियों, मन और मस्तिष्क के सामूहिक प्रयासों से उद्दीपकों को ग्रहण करके व्यवस्थित किया जाता है और अंत में उनकी व्याख्या की जाती है।
          संवेदी अंगों (इन्द्रियों) के संवेदी ग्राहक (विशिष्ट कोशिकाएं) बाहरी या आंतरिक भौतिक उद्दीपकों को विद्युत           रसायनिक संकेतों में परिवर्तित कर देते हैं जिन्हे तंत्रिका-आवेग के रूप में जाना जाता है जो आगे के प्रसंस्करण के लिए विभिन्न चैनलों के माध्यम से विशिष्ट मस्तिष्क केंद्रों तक भेजे जाते हैं। उद्दीपकों को तंत्रिका आवेग में परिवर्तित करने की इस पूरी प्रक्रिया को संवेदी प्रक्रिया के रूप में जाना जाता

संवेदी सीमायें
           संवेदी अंगों (इन्द्रियों) की भी कुछ सीमाएँ होती हैं जैसे आँख 380-780 नैनो मीटर (एक नैनोमीटर एक मीटर का एक अरबवां भाग होता है) के दृश्यमान स्पेक्ट्रम से परे नहीं देख सकती है, कान 20 हर्ट्ज से कम और 20000 हर्ट्ज से ज्यादा नहीं सुन सकते हैं। उत्तेजना (Sensation) शुरू करने के लिए किसी भी उद्दीपक का न्यूनतम मूल्य होना चाहिए। किसी भी संवेदी प्रणाली को उत्प्रेरित करने के लिए उद्दीपक का न्यूनतम मूल्य ‘निरपेक्ष सीमा (Absolute Threshold or Absolute Limen) के रूप में जाना जाता है (NCERT). दो उद्दीपकों के बीच अंतर के लिए दोनों के मान के बीच कुछ न्यूनतम अंतर होना चाहिए। दो उद्दीपकों के मान में न्यूनतम अंतर, जो उसकी अलग पहचान के लिए अंतर होता है, को भेद सीमा या भेद देहली (Difference Threshold or Difference Limen) कहा जाता है। इसे ‘केवल ध्यान देने योग्य अंतर’ (Just Noticeable Difference or JND)  के रूप में भी जाना जाता है।

श्रवण संवेदी प्रक्रिया

           ध्वनि (गति 20 or C या 1100 फुट प्रति सेकंड शुष्क हवा में प्रति सेकंड 343 मीटर) कान और उसके श्रवण अंगों को सक्रिय करने वाला मुख्य घटक होता है जो श्रवण संवेदना को आरंभ करता है। श्रवण संवेदना व्यक्ति को स्थानिक (Spatial) जानकारी प्रदान करती है, व्यक्ति को किसी वस्तु की ओर उन्मुख करती है और मौखिक संचार में मदद करती है। ध्वनि एक भौतिक उद्दीपक होता है जो वायु के अणुओं के कंपन द्वारा उत्पादित होता है। ध्वनि के तीन महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक गुण होते हैं तारत्व (Pitch) (Frequency or wavelength), आयाम (Volume or amplitude), ध्वनिगुण (Timbre) [स्वर में समृद्धि यानी संतृप्ति (saturation) या शुद्धता]।
(i)      तीव्रता या वॉल्यूम (आयाम) – यह ध्वनि तरंग के आयाम द्वारा निर्धारित होती है। आयाम जितना ज्यादा होगा ध्वनि की तीव्रता उतनी अधिक होगी। इसे डेसिबल (db) में मापा जाता है।
(ii)     तारत्व (आवृत्ति or wavelength) – ध्वनि की निम्नता या उच्चता। उच्चतर आवृत्ति उच्च तारत्व (Pitch)। भारतीय शास्त्रीय संगीत के सात नोट तारत्व में क्रमिक वृद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
(iii)    ध्वनिगुण (संतृप्ति या शुद्धता) – ध्वनि की प्रकृति, स्वर या गुणवत्ता में समृद्धि। यह ध्वनि तरंग की जटिलता को दर्शाता है।

सन्दर्भ :
1.       NCERT, XI Psychology Text book.
2.       Ciccarelli, S. K. & Meyer, G. E. (2016). Psychology. Noida: Pearson India.
3.       Baron, R. (1993).  Psychology.

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