Tuesday, July 5, 2022

मनोव्याधि मनोविज्ञान का मनोगतिकीय मॉडल

 मनोव्याधि मनोविज्ञान


            विज्ञान की वह शाखा जो मनोवैज्ञानिक विकारों का अध्ययन और निदान करता है।

 मनोविश्लेषण

            किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व पर बचपन के अनुभवों और अचेतन मानसिक प्रक्रियाओं का प्रभाव। यह सिगमंड फ्रायड द्वारा प्रस्तावित मनोविश्लेषणात्मक मॉडल पर आधारित है।

 मनोगतिकीय मॉडल की मान्यताएं

1.         अनसुलझे अचेतन संघर्ष मनोवैज्ञानिक विकारों की उत्पत्ति का कारण होते हैं।

2.         इदं, अहम् और पराह्म अचेतन मन का निर्माण करते हैं।

3.         अचेतन के इन तीन घटकों के बीच आपसी संघर्ष से मनोवैज्ञानिक विकार उत्पन्न होते हैं।

4.         मानसिक संघर्ष की स्थिति में व्यक्ति रक्षा तंत्र का उपयोग करता है।

 

मनोगतिकीय मॉडल के सिद्धांत

1.         इदं, अहं और पराअहं - व्यवहार व्यक्तित्व के इन तीन घटकों की परस्पर क्रिया का परिणाम  होता है।

(i)        इदं – दो सहज प्रवृत्तियों का स्रोत {रचनात्मक (जीवन) और विनाशकारी (मृत्यु)}। [प्राथमिक प्रक्रिया और आनंद सिद्धांत]।

(ii)       अहं - इदं  और प्राअह्म की मांगों के बीच मध्यस्थता करता है। [माध्यमिक प्रक्रिया और वास्तविकता        सिद्धांत]।

(iii)      पराअहं  – इसे विवेक कहा जाता है और सही और गलत से संबंधित होता है। [नैतिक सिद्धांत]।

2.         दुश्चिंता, रक्षा तंत्र और अचेतन मन

(i)        दुश्चिंता  - यह निकटस्थ खतरे (जो आने ही वाला हो) और दर्दनाक अनुभव की चेतावनी होती है। फ्रायड ने तीन प्रकार की दुश्चिंता (मानसिक कष्ट) प्रस्तावित की है [वास्तविकता चिंता, न्यूरोटिक चिंता, नैतिक चिंता]।

(ii)       रक्षा तंत्र - दुश्चिंता से निपटने के लिए अहं द्वारा उठाए गए तर्कसंगत उपाय यदि विफल हो जाते हैं, तो अहं रक्षा तंत्र के रूप में ज्ञात तर्कहीन उपायों का सहारा लेता है [कुछ रक्षा तंत्र इस प्रकार हैं जैसे, दमन, इनकार, प्रक्षेपण, विस्थापन, प्रतिगमन, युक्तिकरण आदि]।

(iii)      अचेतन अवस्था - यह मन का सबसे बड़ा हिस्सा होता है जो जलमग्न रहता है। यह उन  दुखद यादों, निषिद्ध इच्छाओं, कड़वे अनुभवों, मानसिक द्वंद्वों आदि को संजों कर रखता है जिन्हे चेतन में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया गया हो। ये अपने एक झलक कल्पनाओं और सपनों में अक्सर दिखाते रहते हैं। अचेतन मन की सामग्री यदि अहं के साथ एकीकृत नहीं हो पाती है तो ये तर्कहीन ओर कु-अनुकूलित व्यवहार (मनोवैज्ञानिक विकार) को जन्म दे सकती है। 

 इस मॉडल का निर्णायक विषय (Decisive Theme)

            अचेतन सामग्री यदि अहं के साथ एकीकृत नहीं हो पाती है, तो वह व्यक्ति को तर्कहीन और कु-अनुकूलित व्यवहार (मनोवैज्ञानिक विकार) की ओर ले जाती है।

 3.         मनोलैंगिक विकास – व्यक्तित्व का विकास इस के क्रमिक चरणों [कामेच्छा सुख] का परिणाम होता है।

(i)        मौखिक अवस्था - पहले दो साल [मुंह कमोत्तेजक ज़ोन होता है]।

(ii)       गुदा अवस्था - 2 से 3 वर्ष की आयु [गुदा की झिल्ली कमोत्तेजक ज़ोन होती है]।

(iii)      लैंगिक  अवस्था - 3 से 5 वर्ष की आयु [जननांगों के साथ छेड़छाड़ कमोत्तेजक ज़ोन होता है]

(iv)      विलम्बित अवस्था - 6 से 12 वर्ष की आयु [कोई कमोत्तेजक ज़ोन नहीं होता]। बच्चा इस अवस्था में कौशल विकास में व्यस्त रहता है।

(v)       जननांग अवस्था - 12 वर्ष और उससे अधिक [यौवन के बाद, विषमलैंगिक संबंध की और झुकाव]।

 इस मॉडल की मुख्य विशेषताएं

            यह मॉडल मानव व्यवहार के एक नकारात्मक और निर्धारक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है जो आत्मनिर्णय के लिए तर्कसंगतता और स्वतंत्रता को कम करता है।

1.         लोगों पर सहज जैविक प्रवृत्तियों और अचेतन इच्छाओं का प्रभुत्व होता है।

2.         मनोवैज्ञानिक विकार मानव स्वभाव की आक्रामक और विनाशकारी प्रवृत्ति की उपज होते हैं।

3.         मानसिक विकारों में अचेतन प्रेरकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

4.         अहं-रक्षा तंत्र मानसिक विकारों के विकास में योगदान देते हैं।

5.         बचपन के अनुभव व्यक्तित्व के कुसमायोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

6.         मानसिक विकारों में यौन कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

7.         दर्दनाक अनुभवों और तर्कहीन आशंकाओं का दमन मानसिक विकारों की ओर ले जाता है।

 सन्दर्भ:

1.         Verma, L. P. (1965). Psychiatry in ayurveda. Indian J Psychiatry. 1965;7:292.

2.         पांडेय, जगदानंद. (1956). असामान्य मनोविज्ञान. पटना: ग्रंथमाला प्रकाशन कार्यालय।

3.         Coleman, J. C. (1981). Abnormal psychology and modern life.

4.    Karlsgodt, K. H., Sun, D., & Cannon, T. D. (2010). Structural and Functional Brain               Abnormalities in Schizophrenia. Current Directions in Psychological Science, 19(4),              226–231. doi:10.1177/0963721410377601. 

5.         https://www.who.int/bulletin/archives/78(4)455.pdf

 

 

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