Wednesday, July 6, 2022

मनोव्याधि मनोविज्ञान का व्यवहार मॉडल

 मनोव्याधि मनोविज्ञान


विज्ञान की वह शाखा जो मनोवैज्ञानिक विकारों का अध्ययन और निदान करती है।

व्यवहार मॉडल का केंद्रीय विषय

'अधिगम' असामान्य या कु-अनुकूलित व्यवहार दोषपूर्ण अधिगम  के फलस्वरूप उत्पन्न होता है।

 व्यवहारवादी मॉडल का कालक्रम

1.         उत्पत्ति - इवान पावलोव (1849 - 1936) - प्राचीनतम अनुबंधन।

2.         विस्तार - जे बी वाटसन (1878 - 1958) - लिटिल अल्बर्ट प्रयोग।

ई एल थार्नडाइक (1874-1949) - बिल्ली पर किया गया प्रयोग।

बी एफ स्किनर (1904-1990) - क्रियाप्रसूत अनुबंधन।

 

रोग संबंधी समस्याओं की खोज

1.         प्रयोगात्मक न्युरोसिस (1914) - इवान पावलोव ने सुझाव दिया है  कि जीवन की चुनितियों (दबाव पूर्ण घटनाओं) के प्रति प्रतिक्रिया के आधार पर मानव दो प्रकार के  होते हैं:-

(i)        कलात्मक प्रकार के  - इस प्रकार के व्यक्ति बाहरी उद्दीपक के प्रति  तीव्र, ज्वलंत और अत्यधिक प्रतिक्रियाशील होते हैं। ये हिस्टेरिकल या उन्मत्त-अवसादग्रस्तता प्रतिक्रियाओं की और प्रवृत होते हैं, अर्थात  जल्दी ही उन्मादित व्यवहार करने लगते हैं।

(ii)       चिंतनशील प्रकार के - इस प्रकार के व्यक्ति शांत, चिंतनशील एवं मौखिक अवधारणाओं और  विचारों के प्रति अधिक प्रतिक्रियाशील होते हैं। ये ओसीडी और सिज़ोफ्रेनिक प्रकार के  मानसिक विकारों के प्रति प्रवृत्त होते हैं।

2.        तर्कहीन भय का विकास और सामान्यीकरण (1920) - जेबी वाटसन ने इस मान्यता  के साथ शुरुआत की कि "यदि मनोविज्ञान कभी विज्ञान बनता है  तो उसे खुद को उन घटनाओं एवं मुद्दों के अध्ययन तक ही सीमित रखना चाहिए जिनका निष्पक्ष रूप से अवलोकन किया जा सकता हो। अल्बर्ट के ऊपर किये गए छोटे से  प्रयोग के माध्यम से उन्होंने दिखाया कि एक तर्कहीन भय के विकास और सामान्यीकरण से यह अनुमान लगाया जा सकता है  कि अन्य प्रकार के असामान्य व्यवहार या मानसिक विकार भी अधिगम का परिणाम हो सकते हैं।

3.         अतार्किक भय को दूर करना (1924) - मैरी कवर जोन्स नकारात्मक प्रवृत्ति ओर  सकारात्मक प्रवृत्ति के बीच संतुलन बनाए रखते हुए तर्कहीन भय को समाप्त करने में सफल रही।

4.         पुरस्कार और दंड (1913) - ई एल थार्नडाइक ने प्रभाव के नियम को प्रस्तुत करके मानव व्यवहार में पुरस्कार और दंड की महत्वपूर्ण भूमिका का सुझाव दिया।

5.         एक व्यवहार नियंत्रण का उपकरण (1953) - बी एफ स्किनर ने जीव के  व्यवहार को बाहर से नियंत्रित करने के लिए उद्दीपकों  के उपयोग पर जोर दिया।  उद्दीपकों में परिवर्तन के माध्यम से जीव को सीखने और उसके व्यवहार को नियंत्रित  किया जा सकता है।

 

व्यवहारवादी अवधारणाएं जिनकी साइकोपैथोलॉजी में महत्वपूर्ण भूमिका है

1.         सामान्यीकरण - नई परिस्थितियों से निपटने में पुराने अनुभव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन इससे अनुचित सामान्यीकरण की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं जिससे तर्कहीन धारणाएं जन्म ले सकती हैं (दूध का जला छाछ को भी फुंक-फंक कर पीता है)।

2.         विभेदन - जिन्दा रहने में  उद्दीपकों के बीच अंतर करने की क्षमता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है (जहरीले और बिना जहर वाले सांप के बीच अंतर)। उद्दीपकों के बीच विभेदन करने में विफलता कई प्रकार की समस्याओं और मनोवैज्ञानिक अव्यवस्था को आमंत्रित कर सकती है जिससे व्यक्ति की चुनौतियों से निपटने की अक्षमता को नुकसान हो सकता है। किशोरावस्था में बच्चे अक्सर जिम्मेदार और गैर-जिम्मेदार व्यवहार के बीच विभेदन नहीं कर पाने के कारण इस प्रकार की गलतियां करते हैं।

3.         प्रतिरूपण (Modelling), आकर देने की प्रक्रिया (Shaping) और अधिगमित प्रणोद (Learned Drives) - व्यवहारवादियों द्वारा सुझाई गई कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाएँ।

(i)         प्रतिरूपण का अर्थ है दूसरे के व्यवहार को देखकर उसकी नकल करना। दोषपूर्ण या दुर्भावनापूर्ण अवलोकन [दुर्भाग्यपूर्ण घरेलू वातावरण में रहने वाला बच्चा] अनुचित व्यवहार का कारण बन सकता है जिससे           अस्वीकृति, निराशा और अंत में मानसिक विकार जन्म ले सकते हैं।

(ii)        आकार देने का अर्थ है क्रमिक सन्निकटन (Succesive Approximation) के माध्यम से एक वांछित व्यवहार को आकार देना। अनुपयुक्त क्रमिक सुदृढीकरण एक ऐसे व्यवहार को आकार दे सकता है जो    अस्वीकार्य हो सकता है और बाद में असामान्य व्यवहार को उत्पन्न कर सकता है।

(iii)        अधिगमित प्रणोद (प्रेरक) प्राथमिक प्रेरकों का ही विस्तार होते हैं। संतुष्टि को उपलब्ध करवाने वाले मदद करने वाले प्रेरकों को सीख लिया जाता है तत्पश्चात उन्हें व्यवहार में लाया जाता है। कुअनुकूलित प्रेरकों का अधिगम  व्यक्ति में असामान्य व्यवहार का कारण बन सकता है।

 

संक्षेप में

1.         आवश्यक अनुकूली व्यवहार सीखने में विफलता के कारण असामान्य व्यवहार उत्पन्न होता है।

2.         अनुपयुक्त प्रतिक्रियाओं को सीखने से असामान्य व्यवहार उत्पन्न हो सकता है।

3.        दबावपूर्ण एवं तनावपूर्ण स्थितियों जिन्हें संभालना मुश्किल हो या शिक्षार्थी के नियंत्रण से बाहर हो के कारण भी व्यक्ति में  असामान्य व्यवहार उत्पन्न हो सकता है (प्रायोगिक न्यूरोसिस)।

4.         अनुपयुक्त रोल मॉडल (बॉलीवुड) को देखकर सीखना असामान्य व्यवहार उत्पन्न कर देता है।

5.         संवेगात्मक आघात (आतंकवादी हमले) को देखकर या अनुभव करके सीखना असामान्य व्यवहार उत्पन्न कर देता है।

6.         गलत उदेश्यों के लिए पुरस्कार द्वारा व्यवहार को आकार देना (आत्मघाती हमलावर और आतंकवादी) असामान्य व्यवहार उत्पन्न कर देता है।

 

सन्दर्भ:

1.         Verma, L. P. (1965). Psychiatry in ayurveda. Indian J Psychiatry. 1965;7:292.

2.         पांडेय, जगदानंद. (1956). असामान्य मनोविज्ञान. पटना: ग्रंथमाला प्रकाशन कार्यालय।

3.         Coleman, J. C. (1981). Abnormal psychology and modern life.

 

 

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Tuesday, July 5, 2022

मनोव्याधि मनोविज्ञान का मनोगतिकीय मॉडल

 मनोव्याधि मनोविज्ञान


            विज्ञान की वह शाखा जो मनोवैज्ञानिक विकारों का अध्ययन और निदान करता है।

 मनोविश्लेषण

            किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व पर बचपन के अनुभवों और अचेतन मानसिक प्रक्रियाओं का प्रभाव। यह सिगमंड फ्रायड द्वारा प्रस्तावित मनोविश्लेषणात्मक मॉडल पर आधारित है।

 मनोगतिकीय मॉडल की मान्यताएं

1.         अनसुलझे अचेतन संघर्ष मनोवैज्ञानिक विकारों की उत्पत्ति का कारण होते हैं।

2.         इदं, अहम् और पराह्म अचेतन मन का निर्माण करते हैं।

3.         अचेतन के इन तीन घटकों के बीच आपसी संघर्ष से मनोवैज्ञानिक विकार उत्पन्न होते हैं।

4.         मानसिक संघर्ष की स्थिति में व्यक्ति रक्षा तंत्र का उपयोग करता है।

 

मनोगतिकीय मॉडल के सिद्धांत

1.         इदं, अहं और पराअहं - व्यवहार व्यक्तित्व के इन तीन घटकों की परस्पर क्रिया का परिणाम  होता है।

(i)        इदं – दो सहज प्रवृत्तियों का स्रोत {रचनात्मक (जीवन) और विनाशकारी (मृत्यु)}। [प्राथमिक प्रक्रिया और आनंद सिद्धांत]।

(ii)       अहं - इदं  और प्राअह्म की मांगों के बीच मध्यस्थता करता है। [माध्यमिक प्रक्रिया और वास्तविकता        सिद्धांत]।

(iii)      पराअहं  – इसे विवेक कहा जाता है और सही और गलत से संबंधित होता है। [नैतिक सिद्धांत]।

2.         दुश्चिंता, रक्षा तंत्र और अचेतन मन

(i)        दुश्चिंता  - यह निकटस्थ खतरे (जो आने ही वाला हो) और दर्दनाक अनुभव की चेतावनी होती है। फ्रायड ने तीन प्रकार की दुश्चिंता (मानसिक कष्ट) प्रस्तावित की है [वास्तविकता चिंता, न्यूरोटिक चिंता, नैतिक चिंता]।

(ii)       रक्षा तंत्र - दुश्चिंता से निपटने के लिए अहं द्वारा उठाए गए तर्कसंगत उपाय यदि विफल हो जाते हैं, तो अहं रक्षा तंत्र के रूप में ज्ञात तर्कहीन उपायों का सहारा लेता है [कुछ रक्षा तंत्र इस प्रकार हैं जैसे, दमन, इनकार, प्रक्षेपण, विस्थापन, प्रतिगमन, युक्तिकरण आदि]।

(iii)      अचेतन अवस्था - यह मन का सबसे बड़ा हिस्सा होता है जो जलमग्न रहता है। यह उन  दुखद यादों, निषिद्ध इच्छाओं, कड़वे अनुभवों, मानसिक द्वंद्वों आदि को संजों कर रखता है जिन्हे चेतन में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया गया हो। ये अपने एक झलक कल्पनाओं और सपनों में अक्सर दिखाते रहते हैं। अचेतन मन की सामग्री यदि अहं के साथ एकीकृत नहीं हो पाती है तो ये तर्कहीन ओर कु-अनुकूलित व्यवहार (मनोवैज्ञानिक विकार) को जन्म दे सकती है। 

 इस मॉडल का निर्णायक विषय (Decisive Theme)

            अचेतन सामग्री यदि अहं के साथ एकीकृत नहीं हो पाती है, तो वह व्यक्ति को तर्कहीन और कु-अनुकूलित व्यवहार (मनोवैज्ञानिक विकार) की ओर ले जाती है।

 3.         मनोलैंगिक विकास – व्यक्तित्व का विकास इस के क्रमिक चरणों [कामेच्छा सुख] का परिणाम होता है।

(i)        मौखिक अवस्था - पहले दो साल [मुंह कमोत्तेजक ज़ोन होता है]।

(ii)       गुदा अवस्था - 2 से 3 वर्ष की आयु [गुदा की झिल्ली कमोत्तेजक ज़ोन होती है]।

(iii)      लैंगिक  अवस्था - 3 से 5 वर्ष की आयु [जननांगों के साथ छेड़छाड़ कमोत्तेजक ज़ोन होता है]

(iv)      विलम्बित अवस्था - 6 से 12 वर्ष की आयु [कोई कमोत्तेजक ज़ोन नहीं होता]। बच्चा इस अवस्था में कौशल विकास में व्यस्त रहता है।

(v)       जननांग अवस्था - 12 वर्ष और उससे अधिक [यौवन के बाद, विषमलैंगिक संबंध की और झुकाव]।

 इस मॉडल की मुख्य विशेषताएं

            यह मॉडल मानव व्यवहार के एक नकारात्मक और निर्धारक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है जो आत्मनिर्णय के लिए तर्कसंगतता और स्वतंत्रता को कम करता है।

1.         लोगों पर सहज जैविक प्रवृत्तियों और अचेतन इच्छाओं का प्रभुत्व होता है।

2.         मनोवैज्ञानिक विकार मानव स्वभाव की आक्रामक और विनाशकारी प्रवृत्ति की उपज होते हैं।

3.         मानसिक विकारों में अचेतन प्रेरकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

4.         अहं-रक्षा तंत्र मानसिक विकारों के विकास में योगदान देते हैं।

5.         बचपन के अनुभव व्यक्तित्व के कुसमायोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

6.         मानसिक विकारों में यौन कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

7.         दर्दनाक अनुभवों और तर्कहीन आशंकाओं का दमन मानसिक विकारों की ओर ले जाता है।

 सन्दर्भ:

1.         Verma, L. P. (1965). Psychiatry in ayurveda. Indian J Psychiatry. 1965;7:292.

2.         पांडेय, जगदानंद. (1956). असामान्य मनोविज्ञान. पटना: ग्रंथमाला प्रकाशन कार्यालय।

3.         Coleman, J. C. (1981). Abnormal psychology and modern life.

4.    Karlsgodt, K. H., Sun, D., & Cannon, T. D. (2010). Structural and Functional Brain               Abnormalities in Schizophrenia. Current Directions in Psychological Science, 19(4),              226–231. doi:10.1177/0963721410377601. 

5.         https://www.who.int/bulletin/archives/78(4)455.pdf

 

 

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Monday, July 4, 2022

मनोव्याधि मनःशास्त्र का जैविक मॉडल

 जैविक मॉडल की मान्यता

 मनोवैज्ञानिक विकार जैविक कारणों से उत्पन्न होते हैं।

 जैविक कारण

1. मस्तिष्क

2. तंत्रिका तंत्र

3. आनुवंशिकी

4. अंतःस्रावी ग्रंथियां प्रणाली

 
मस्तिष्क

1.         मस्तिष्क की संरचना - मस्तिष्क की दोषपूर्ण संरचना व्यक्ति में मनोवैज्ञानिक विकारों को जन्म दे सकती है। उदाहरण के लिए मनोविदलता से ग्रसित व्यक्तियों  में मस्तिष्क के टेम्पोरल और फ्रंटल लोब में ग्रे मैटर की मात्रा 25% कम होती है। ये क्षेत्र एपिसोडिक मेमोरी, श्रवण सूचना के प्रसंस्करण और अल्पकालिक स्मृति / निर्णय लेने आदि से संबंधित होते हैं। सामान्यतः ये अनुवांशिक कारणों से उत्पन्न होते हैं। लिम्बिक सिस्टम में घाव होने पर मनोदशा में परेशानी आनी लगती है। इनके अध्ययन और निदान के लिए गैर इनवेसिव तकनीक जैसे  fFMRI, MRI, PET स्कैन का  सहारा लिया जाता है।

2.         न्यूरोट्रांसमीटर - न्यूरोट्रांसमीटर संश्लेषण में गड़बड़ी, सूचना परिवहन में बाधा। अधिक या कम मात्रा में न्यूरोट्रांसमीटर का होना कई विकारों को जन्म दे सकता है। उदाहरण के लिए डोपामाइन और नॉरपेनेफ्रिन की मात्रा में वृद्धि से उन्माद उत्पन्न हो सकता है।

3.         तंत्रिका संचरण - असामान्य तंत्रिका गतिविधि में व्यवधान से मानसिक विकार हो सकते हैं जैसे सेरोटोनिन या नॉरपेनेफ्रिन के संचार में व्यवधान अवसाद, दुश्चिंता या मनोदशा विकार पैदा कर सकता है।

 तंत्रिका प्रणाली

            इसमें दो प्रमुख घटक होते हैं यानी केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) और परिधीय तंत्रिका तंत्र (PNS)। सीएनएस - मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी से मिलकर बनता है। यह इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त सूचनाओं को प्राप्त करता है, संसाधित करता है और स्थानांतरित करता है। यहां तक कि बाद में उपयोग (स्मृति) के लिए सूचनाओं को संग्रहीत भी करता है।

            PNS - इसके अलावा यह दो प्रकार का होता है यानी स्वायत तंत्रिका तंत्र (ANS) [सिम्पेथेटिक और पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम] और सोमैटिक नर्वस सिस्टम (SNS)।

            तंत्रिका तंत्र में असामान्यता के कारण उत्पन्न होने वाले मानसिक विकार - अवधान की कमी, बैलिंट सिंड्रोम (एक समय में एक से अधिक वस्तुओं को देखने में असमर्थता) दृश्य ध्यान विकार, निष्क्रिय स्मृति, कार्यकारी कार्यक्षमता में विफलता, अवधारणात्मक समस्याएं एवं मतिभ्रम।

 आनुवंशिकी

            इसका अर्थ होता है विकारों को विरासत में मिलना। जीन कोशिकाओं के निर्माण खंडों, यानी प्रोटीन को कूटबद्ध करते हैं। मानसिक विकारों के लिए जीन में भिन्नता प्रमुख योगदान कारक होता है। जीन न्यूरोट्रांसमीटर के कार्यों और संरचनाओं को बदल देते हैं जिससे कई प्रकार के मानसिक विकार उत्पन्न होते हैं। कई जीनों के परस्पर क्रिया के कारण भी मानसिक विकार उत्पन्न होते हैं।

अनुवांशिकी के कारण उत्पन मानसिक विकार - सिज़ोफ्रेनिया, ऑटिज़्म, मैनिक डिप्रेसिव इलनेस, मेजर डिप्रेशन, अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी), पैनिक डिसऑर्डर (हाइमन, 2000) और बाइपोलर डिसऑर्डर।

 अंतःस्त्रावी प्रणाली

शरीर में असामान्य रासायनिक गतिविधि यानी कुछ हार्मोन का अत्यधिक कम या बहुत ज्यादा अधिक स्राव विभिन्न मनोवैज्ञानिक विकारों को जन्म दे सकता है। हार्मोन सक्रिय रासायनिक संदेशवाहक होते हैं जो मस्तिष्क और शरीर के अन्य अंगों के बीच संचार स्थापित करते हैं। उनके स्राव में असंतुलन कई मनोवैज्ञानिक विकारों को जन्म दे सकता है।

असामान्य स्राव के कारण उत्पन्न होने वाले मानसिक विकार - कोर्टिसोल का स्राव सीधे दुश्चिंता, दबाव और मनोदशा से संबंधित विकारों के साथ-साथ अवसाद, अनिद्रा, नींद से सम्बंधित अन्य समस्याओं, स्मृति सम्बन्धी समस्या और मनोविकृति आदि  को जन्म दे सकता।

 References:

1.         Verma, L. P. (1965). Psychiatry in ayurveda. Indian J Psychiatry. 1965;7:292.

2.         पांडेय, जगदानंद. (1956). असामान्य मनोविज्ञान. पटना: ग्रंथमाला प्रकाशन कार्यालय।

3.         Coleman, J. C. (1981). Abnormal psychology and modern life.

4.         Karlsgodt, K. H., Sun, D., & Cannon, T. D. (2010). Structural and Functional Brain Abnormalities in Schizophrenia. Current Directions in Psychological Science, 19(4), 226–231. doi:10.1177/0963721410377601. 

5.         https://www.who.int/bulletin/archives/78(4)455.pdf

 

 

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