अर्थ-एवं-परिभाषा
अर्थ
-
"चिंता
या
भय
या
ऐसा
तीव्र
मनोभाव
जो
भयावह
स्थिति
के
कारण
उत्पन्न
हो"
“दुश्चिंता को आमतौर पर एक विसरित (diffused), अस्पष्ट भय की बहुत ही अप्रिय अनुभूति और आशंका के रूप में परिभाषित किया जाता है” (एन सी ई आर टी).
“एक
ऐसा संवेग जो शारीरिक परिवर्तनों जैसे, चिंतित विचार, बढ़ा हुआ रक्तचाप एवं तनाव ग्रस्तता आदि से चित्रित
होता है।” (APA).
परिचय
हल्के रूप में और कभी-कभार होने वाली चिंता मनुष्य के दबाव प्रतिक्रिया पैटर्न का अभिन्न
अंग होता है। दुश्चिंता भविष्य में होने वाले खतरे की आशंका का परिणाम होती है। चिंता
के ऐसे स्तर को दुश्चिंता कहा जाता है जो व्यक्ति
को मानसिक रूप से परेशान करने वाला हो और दिन-प्रतिदिन के कामकाज में बाधा डालता हो। यह व्यक्ति को निरंतर
दबाव, तनाव, चिंता और बढ़ी हुई बेचैनी की स्थिति में उलझाए रखता है। दुश्चिंता हल्के
और क्षणिक होने से लेकर गंभीर और विघटनकारी तक हो सकती है।
जीवन
की कुछ विचित्र स्थितियां जो व्यक्ति में दुश्चिंता को जन्म दे सकती हैं
(i) परीक्षा या परिणाम की प्रतीक्षा
(ii) नौकरी के लिए इंटरव्यू
(iii) लड़का या लड़की देखने जाना
(iv) चिकित्सा परीक्षण के परिणाम (कोविड -19)
दुश्चिंता
के कारण
(i) आनुवंशिकी (व्यक्तित्व स्वभाव)।
(ii) न्यूरोलॉजिकल या ब्रेन केमिस्ट्री में बदलाव।
(iii) विघटनकारी जीवन घटनाएँ।
(iv) शारीरिक और भावनात्मक दबाव।
(v) दर्दनाक घटना।
(vi) मादक द्रव्यों का सेवन।
(vii) दबाव।
(viii) अन्य चिंता विकार।
(ix) अवसाद।
(x) पर्यावरणीय दबाव कारक।
मनःशास्त्रीय/मनोवैज्ञानिक
लक्षण
(i) भय की निरंतर स्थिति के साथ पैनिक अटैक।
(ii) गंभीर शारीरिक समस्या या किसी अंग की विफलता
का भाव।
(iii) स्वयं पर नियंत्रण में कमी।
(iv) अत्यधिक चिंता और घबराहट।
(v) दूसरों द्वारा अस्वीकार करने का भय।
(vi) पलायनवादी विचार।
(vii) अनिद्रा।
(viii) दुर्भीति जनक
प्रतिक्रियाएं (तर्कहीन भय)।
(ix)
अतीत की किसी अनहोनी घटना की स्मृति एवं
उससे सम्बंधित बार-बार विचार।
(x) मानसिक परेशानी।
व्यावहारिक
लक्षण
(i) घबराहट और चेहरे पर उसकी अत्यधिक भावनात्मक
अभिव्यक्ति।
(ii) नियमित जीवन में स्पष्ट दिखाई देने वाले परिवर्तन।
(iii) बिना किसी कारण के भय का अनुभव एवं उसकी अभिव्यक्ति।
(iv) पार्टी या समारोह जैसे सामाजिक समारोहों से बचने
की परिवर्ती।
(v) अकेले में बेचैनी महसूस होना।
(vi) भीड़-भाड़ वाली जगहों से बाहर निकलने का प्रयास।
(vii) बहाने बनाने या टालमटोल करने में माहिर।
(viii) अन्य लोगों के साथ या उनके सामने बोलने में झिझक।
(ix) असामान्य प्रतिक्रिया।
(x) अनियंत्रित जुनूनी विचार, बुरे सपने और विचित्र
व्यवहार, जैसे बार-बार हाथ धोना।
शारीरिक
लक्षण
(i) दिल
का तेज़ी से धड़कना।
(ii) मुंह सूखना और निगलने में परेशानी होना।
(iii) अत्यधिक पसीना आना।
(iv) घुटनों में कमजोरी महसूस होना।
(v) पेट फूलना और बीमार होना।
(vi) शरीर के अंगों में कम्पन।
(vii) झुनझुनी और सुन्न महसूस होना।
(viii) मांसपेशियों में अत्यधिक तनाव।
(ix) श्वसन दर में वृद्धि।
(x) हल्का चक्कर आना।
दुश्चिंता
की मुख्य विशेषताएं
(i) दुश्चिंता एक मनो-शारीरिक प्रतिक्रिया होती
है।
(ii) यह भविष्य की घटनाओं से उत्पन्न आशंका होती है।
(iii) दुश्चिंता एक नकारात्मक संवेगात्मक स्थिति होती है।
(iv) उत्तेजना दुश्चिंता का उपोत्पाद है।
(v) घबराहट, भय, और आशंका, दुश्चिंता की एक सामान्य
स्थिति होती है।
(vi) दुस्चनिता अधिकतर बिना किसी वास्तविक कारण के
होती है।
(vii) प्रतिक्रिया की तीव्रता वास्तविक या काल्पनिक
समस्या के परिमाण के परे होती है।
तीव्रता
के अनुसार दुश्चिंता के प्रकार
(i) सामान्य दुश्चिंता
- सामान्य जीवन की घटनाओं जैसे परीक्षा, रिश्ते, वित्तीय कठिनाई, व्यवसाय या कृषि उपज
में हानि आदि के कारण दुश्चिंता के लक्षण यानी बेचैनी या घबराहट। लक्षण अपेक्षाकृत
कम अवधि और तीव्रता के लिए होते हैं। इस प्रकार की दुश्चिंता चिकित्सकीय रूप से गैर-महत्वपूर्ण
होती है।
(ii) हल्की दुश्चिंता
- घबराहट और भय की भावना जो दैनिक जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव तो डालती है लेकिन फिर
भी चिकित्सकीय रूप से गैर-महत्वपूर्ण होती है। यह एक प्रकार से दुश्चिंता विकार की
सीमा रेखा स्थिति होती है जो एक सामान्य घटना से असामान्य प्रतिक्रिया पैटर्न की शुरुवात
कर सकती है। सामान्य दुश्चिंता की तुलना में इसके लक्षण अधिक तीव्र होने के साथ साथ
लंबे समय तक बने रहते हैं।
(iii) गंभीर दुश्चिंता -
दुश्चिंता और घबराहट की अत्यधिक तीव्र भाव जिसके लिए चिकित्सीय हस्तक्षेप की आवश्यकता
होती है।
अन्य
दुश्चिंता के प्रकार
(i) संज्ञानात्मक दुश्चिंता
- विचार प्रक्रिया और अन्य संज्ञानात्मक घटकों में दुश्चिंता और आशंका का अनुभव।
(ii) दैहिक दुश्चिंता
- दुश्चिंता और आशंका की शारीरिक अभिव्यक्ति का परिमाण।
(iii) स्थितिपरक दुश्चिंता
- यह एक अप्रिय स्थिति/घटना के जवाब में मनो-शारीरिक क्षणिक प्रतिक्रिया पैटर्न को
दर्शाता है।
(iv) संज्ञानात्मक स्थितिपरक दुश्चिंता
- चिंता और नकारात्मक विचार प्रक्रिया का परिमाण और तीव्रता।
(v) दैहिक अवस्था की दुश्चिंता -
शारीरिक उदोलन की स्थिति में होने वाले छोटे से छोटे परिवर्तनों का प्रत्यक्षण एवं
अनुभव होना।
(vi) शीलगुण दुश्चिंता
- दुश्चिंता का अनुभव करने की प्रवृत्ति। इस प्रकार की दुश्चिंता व्यक्ति के व्यक्तितत्व
का एक शीलगुण होती है। यह दुश्चिंता विकारों वाले व्यक्तियों की एक महत्वपूर्ण विशेषता
होती है। जिन व्यक्तियों में इस प्रकार की
दुश्चिंता होती है वे आमतौर पर सामान्य परिस्थिति को भी खतरनाक परिस्थिति के रूप में
प्रत्यक्षीकृत करते हैं।
दुश्चिंता
का वर्गीकरण
(i) वास्तविक घटनाओं से उत्पन्न दुश्चिंता -
यह वास्तविक जीवन-स्थितियों से उत्पन्न होने वाले खतरों और खतरों से आशंकित होने के
कारण विकसित होने वाली चिंता का मूल रूप होता
है। उदाहरण के लिए एलपीजी सिलेंडर फटने का डर, सड़क दुर्घटना होने का डर, किसी
के द्वारा लगातार नजर रखे जाना (यक्ष युधिष्ठिर संवाद) आदि।
(ii) नैतिक दुश्चिंता
- इस प्रकार की दुश्चिंता 'अपराध की भावना'
पर आधारित होती है। यह तब होता है जब किसी व्यक्ति को लगता है कि उसके व्यवहार ने उसकी
मूल्य प्रणाली, नैतिक आचार संहिता का उल्लंघन किया है या सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा
करने में सक्षम नहीं है। यह एक प्रकार का अचेतन भय है जो दोनों अवसरों पर उत्पन्न हो
सकता है अर्थात कुछ कार्य किया या नहीं किया। उमराव जान फिल्म के एक गाने जिसके बोल हैं यह क्या
जगह है दोस्तों यह कौन सा दयार है में कवि शहरयार लिखते हैं की “तमाम उम्र का हिसाब
मांगती है जिंदगी ये मेरा दिल कहे तो क्या, ये ख़ुद से शर्मसार है”(अर्जुन
श्रीकृष्ण संवाद)।
(iii) विक्षिप्त दुश्चिंता
- इस प्रकार की दुश्चिंता में ये भय होता है कि इदं, अहं की भूमिका को खत्म करके व्यक्ति
के व्यवहार को अपने नियंत्रण में ले सकता है। इदं की अनुचित मांगों की अभिव्यक्ति के
कारण उत्पन्न होने वाले परिणामों का भय व्यक्ति में इस प्रकार की दुश्चिंता को उत्पन्न
करने का कारण बन सकता है। दूसरे शब्दों में, इदं और पराअहं के बीच संतुलन बिगड़ने का डर। इससे दंड एवं सामाजिक
प्रतिकर्षण की सम्भावना ज्यादा होती है।
(iv) सामान्यीकृत दुश्चिंता -
इसमें लंबे समय तक, अस्पष्ट और तीव्र भय विद्यमान होते हैं जो किसी विशेष वस्तु या
घटना से जुड़े नहीं होते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति अपने सामाजिक और गैर-सामाजिक प्रदर्शन
की गुणवत्ता के बारे में चिंतित रहता है और परिस्थितियों में खतरे को कम आंकने लगता
है। अनियंत्रित सामान्यीकृत दुश्चिंता से व्यक्ति में मांसपेशियों में दर्द, अनिद्रा,
कंपन और जठरांत्र संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
सन्दर्भ:
1. Coleman,
C. J. (1988). Abnormal psychology and modern life. Bombay, India: D. B.
Taraporevala Sons & Co.
2. Generalized
anxiety and generalized anxiety disorder: description and reconceptualization.
(1986). American Journal of Psychiatry, 143(1), 40–44. doi:10.1176/ajp.143.1.40
3. NCERT.
(XII). Psychology Book.
4. DSM
V Manual. Published by APA.
5. Kaur,
S. & Singh, R. (2017). Role of
different neurotransmitters in anxiety: a systemic review. IJPSR, 8 (2),
411-421.
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