Thursday, November 5, 2020

Administration and scoring in Rorschach Inkblot test

           



Rorschach inkblot test is a projective psychological test. Projective techniques are used in psychology for assessment of personality. In this technique the individual projects his or her unconscious wishes or desires on an ambiguous stimuli. These techniques are widely used in mental hospital and clinics to assess personality and underlying psychopathology especially in cases where patients are reluctant to describe their thinking processes openly. Rorschach Inkblot Test is done to assess the structure of personality of an individual that includes personality characteristics, emotional functioning.

 

          Rorschach (1921) presented a systematic approach in regard to an ink-blot test. After Rorschach’s death, the original scoring system of the test was improved by Bruno Klopfer and others. Test description and administration: There are 10 official inkblots, each printed on separate white cards, approximately 18 x 24 cm in size. Each of the ink-blots is bilaterally symmetrical. Five ink-blots are black, two are black and red and three are multi-coloured. The blots are completely unstructured, ambiguous and without any meaning. The test is administered in the following sequence: The cards are presented one at a time in a specified order. When the subject gets seated, the examiner gives him the first card with necessary instructions and asks him to say what he sees in it, what it looks like to him

 

          The subject is allowed as much time as for a given card and is permitted to give as many responses as he wishes. He is also allowed to turn the card around and look at it from any angle he wants. Besides keeping a record of the responses of the subject concerning these ink-blots on separate pieces of paper, the examiner notes the time taken for each response, the position in which the card is being held, emotional expression and other behaviors during the test. After all the cards have been presented the second phase of inquiry which is intended to seek clarification or addition to the original responses follows.

 

Scoring, analysis and interpretation of the test:


 

The responses are scored in four categories:

 

(i)      Location – It refers to the part of the blot the testee focuses on. There can be five categories of responses. ‘W’ indicating the subject has seen the blot as a whole. ‘w’ indicating the subject has not seen the blot as a whole and concentrates on specific sections of the blot. ‘d’ indicating the subject focused on minor or less important components. ‘D’ indicating that the subject focuses on major significant details. ‘S’ indicating the subject response to white regions within the blot.

 

(ii)     Contents – It refer to what the responses contain or the nature of the response.

 Some of the common contents are as follows:

1. Human forms are symbolized as H.

2. Animal forms are symbolized as A.

3. Animal details are symbolized as Ad.

4. Human details are symbolized as Hd.

5. Natural things such as river, meadows are symbolized as N.

6. Inanimate objects like lamp shade, pot are symbolized as O.

 

(iii)    Originality – It refers either to popular (common occurrences) responses or original (which contains something new or is unusual) responses for each of the ten cards. Popular responses are shown as P and original responses are shown as O.

 

(iv)    Determinants – It refers to how the blot is seen or perceived, i.e. it takes note of the manner of perception. The particular characteristics which helped the subject in deciphering the blot or deciding his manner of perception. The main determinants are- form of the blot shown as F, colour of the blot shown as C, perceived movement shown as M and shading of the blot shown as K.

 

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Cognitive Model of Psychopathology 04 11 2020 (Video)

Friday, April 17, 2020

स्मरक या स्मृति सहायक (निमोनिक्स)


Pandit Badri Prasad Har Har Bole
पंडित बद्री प्रसाद हर-हर बोले
अर्थ   

‘Mnemonics’ का उच्चारण– /nɪˈmɒnɪks/ (निमोनिक्स)
साहित्यिक अर्थस्मृति में सुधार और सहायता के लिए प्रणालियों का विकास और अध्ययन।
मनोविज्ञान की दृष्टि से अर्थएक ऐसी तकनीक जो सूचना के अवधारण और प्रत्याह्वान में सहायक होती है।
परिभाषा
          "यह एक तकनीक होती है, जैसे कि एक अनुप्रास (rhyme) या प्रतिबिंब, जिसमें किसी सूचना की भंडारण अवधि को बढ़ाने और उसे याद रखने के लिए पहले से ज्ञात साहचर्यों का उपयोग किया जाता है" (Solso, 2006)
          "निमोनिक्स, एक ऐसी तकनीक होती है जो मूल सूचना को पहले से ज्ञात बाहरी या आंतरिक युक्तियों [संकेत, प्रतिबिंब, ध्वनि इत्यादि] के साथ संधिबद्ध करके सीखी हुई सामग्री के [सही] प्रत्याह्वान और उसके अवधरण के लिए प्रयोग की जाती है"
 परिचय
          स्मरक, विस्मरणीय सूचना (forgettable information) को याद करने योग्य बनाने की एक तकनीक होती है। वे सीखी गई सूचना का प्रत्याह्वान आसान बनाते हैं। इन तकनीकों को कभी-कभी आंतरिक युक्तियों के रूप में भी जाना जाता है जो जटिल से जटिल सूचना को सटीकता के साथ सही क्रम में संग्रहीत करने और याद करने में मदद करते हैं। स्मरक, व्यवस्थित प्रक्रियाएं होती हैं जो सूचना का प्रभावी ढंग से कूट-संकेतन करती हैं जिससे उसके प्रत्याह्वान में मदद मिलती है।
स्मरक (Mnemonics) के महत्वपूर्ण प्रकार: -
(i)       वाक्य स्मरक (Sentence mnemonics) जो वर्तनी (Spelling) में होने वाली त्रुटियों को रोकने में मदद करते हैं।
(ii)      परिवर्णी शब्द स्मरक (Acronyms mnemonics) जो सूचना को क्रम में याद रखने में मदद करते हैं जैसे VIBGYOR
(iii)     संगीतिक स्मरक (Musical mnemonics) जो अधिगम को बेहतर बनाते हैं।
(iv)     मॉडल स्मरक (Model mnemonics) जैसे कि ग्राफ़, चार्ट, आरेख, संज्ञानात्मक नक्शे आदि।
(v)      वाक्यांश स्मर (Phrase mnemonics) जैसेमित्र अतरा मुझसे कहता है मैं अपने : बागों में आम की उपज उगाऊं
मि
मिजोरम
केरल
छः
छत्तीसगढ
पंजाब
त्र
त्रिपुरा
हरियाणा
बा
बिहार
 
जम्मू - कश्मीर
असम
ते
तेलंगाना
गों
गोवा
उड़ीसा
तमिलनाडू
है 
हिमाचल
में
मध्यप्रदेश
गा
गुजरात
रा
राजस्थान
में 
मेघालय
आंध्रप्रदेश
ऊं
उत्तरप्रदेश
मु
मणिपुर
 
अरूणाचल
महाराष्ट्र


झारखंड
. बंगाल
की
कर्नाटक


से
सिक्किम
ने
नागालैंड
उत्तराखंड



 (vi)    प्रतिबिम्ब स्मरक (Image mnemonics)
 स्मरकों की विशेषताएं
1.       स्मरक स्मृति सहायक होते हैं।
2.       स्मरक विस्मरण को नाकाम करते हैं।.
3.       वे संज्ञानात्मक क्षमता का बेहतर उपयोग करने में सहायक होते हैं।
4.       वे छवि, स्पर्श, ध्वनि, स्वाद या गंध के रूप में हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में वे एक या एक से अधिक संवेदी प्रणालियों से संबंधित हो सकते हैं।
5.       स्मरक सूचना को अपेक्षित क्रम में व्यवस्थित करने में मदद करते हैं।
 स्मरकों की विधियां
          स्मरकों की निम्नलिखित विधियां होती हैं: -
(i)       लोकाई (स्थल) विधि (Method of Loci),
(ii)      शंकु या खूंटी शब्द प्रणाली (Peg Word System),
(iii)     कुंजी शब्द विधि  (Key Word Method),
(iv)     संगठनात्मक पद्धति (Organizational schemes), एवं
(v)      परिवर्णी शब्द एवं अक्षरबद्ध (Acronym & Acrostic)
(i)       लोकाई (ठिकाना) विधि (Method of Loci)लोकाई, लोकस का बहुवचन होता है अर्थ जिसका अर्थ होता है स्थल या स्थान। इस पद्धति में याद की जाने वाली सामग्री को परिचित स्थानों या स्थलों पर रखे जाने की कल्पना की जाती है। सूचना को काल्पनिक यात्रा के सीमाचिन्हों पर रखा जाता है। एक इस विधि में एक स्मृति महल बनाया जाता है और फिर उसके विभिन्न स्थानों पर सूचना को रखा जाता है।

(ii)      शंकु या खूंटी शब्द प्रणाली (Peg Word System)इस प्रणाली में नए शब्द या अवधारणाएं पहले से ही ज्ञात शब्दों की सूची के साथ जोड़ी जाती हैं। शंकु शब्द प्रणाली में पहले से ही ज्ञात सूचना (जैसे संख्या या वर्णमाला) को सीखी जाने वाली सूचना के साथ अनुक्रमित किया जाता है। उदाहरण के लिए, एक-अनेक, दो-मोह, तीन-दीन हीन, चार-आहार आदि। अब यदि हम उनके जन्म के वर्ष के अनुसार भारतीय वैज्ञानिकों पीसी रे, एस रामानुजन, सीवी रमन, एस एन बोस आदि के नाम याद रखना चाहते हैं तो इस विधि का प्रयोग कर सकते हैं। खूंटी शब्दों का उपयोग करते हुए, जैसे कि
- पी सी रे ने अनेक महत्वपूर्ण प्रयोग किये,
- एस रामानुजन को किसी से मोह नहीं था,
- सी वी रमन को दीन-हीनों से बहुत प्रेम था आदि।


(iii)     कुंजी शब्द विधि  कुंजी शब्द विधि  का उपयोग मानसिक-दर्शन (visualization) के माध्यम से शब्दों के अर्थ को याद करने के लिए किया जाता है, विशेष रूप यह विधि विदेशी भाषा सीखने में बहुत उपयोगी है। यह दो अलग-अलग प्रकार की सूचनाओं को जोड़ने की एक प्रणाली है।
यह एक प्रकार का विस्तृत पूर्वाभ्यास होता है जो निम्नलिखित दो चरणों में किया जाता है।
(a)      एक ऐसा शब्द चुनें (कुंजी शब्द) जो उस शब्द (उद्दीपक) की तरह लगता है जिसका अर्थ आपको याद करना है।
 (b)      कुंजी शब्द और उद्दीपक शब्द के बीच एक छवि के रूप में साहचर्य की कल्पना करें।
          उदाहरण के लिए, यदि आपसे अंग्रेजी भाषा काअल्क्रिटी’ (Alacrity) शब्द सीखने को कहा जाए। एक समान ध्वनि वाला हिंदी कुंजी शब्द चुनें जैसे कृति. अब इन दोनों शब्दों को एक वाक्य द्वारा जोड़ दें जैसे कि भगवान ने कृति को सजीव और उत्सुक इस तरह हम अल्केरिटी के अर्थसजीवता और उत्सुकताको याद रख सकते हैं।
नामक गुणों से नवाजा है
(iv)     संगठनात्मक पद्धति (Organizational schemes)इस पद्धति में सूचना को शब्दार्थ की श्रेणियों में व्यवस्थित किया जाता है जिनको प्रत्याह्वान करते समय संकेत के रूप में प्रयोग किया जाता है। चुंकिंग (Chunking) संगठनात्मक पद्धति के प्रयोग का का सबसे अच्छा उदाहरण होता है। आपस में असंबंधित जानकारी को याद करने के लिए सबसे पहले इसे समान श्रेणियों में व्यवस्थित किया जाता है।
उदाहरण के लिए यदि हमें इन शब्दों को याद करना जरूरी हो तो: -
तालाब                    आम                       पेन
रबड़                       महासागर               लड्डू
रोटी                       नदी                        पेंसिल
इन शब्दों को स्टेशनरी, भोजन और जल निकायों जैसी श्रेणियों में व्यवस्थित करके इनको याद करना आसान हो जाता है।
(v)      परिवर्णी शब्द एवं अक्षरबद्ध (Acronyme and Acrostic) – परिवर्णी शब्द एक ऐसा शब्द होता है जो वाक्यांशों में प्रयुक्त शब्दों के प्रथम अक्षरों को लेकर बनाया जाता है जैसे कि NOIDA (New Okhla Industrial Development Authority)। OKHLA (Old Canal Housing & Land Authority)। हैं न मजेदार?
          एक शब्द के पहले अक्षर से वाक्यांश या वाक्य का निर्माण करना अक्षरबद्ध (Acrostic) कहलाता।

 
स्मरकों के उपयोग
1.       स्मरक शैक्षणिक उपलब्धियों को बेहतर बनाने में सहायक पाए जाते हैं।
2.       शिक्षण में बहुत उपयोगी होते हैं।
3.     सीखने सम्बन्धी समस्याओं वाले छात्रों के लिए बहुत उपयोगी होते हैं।
4.       याददाश्त में सुधार।
5.       विदेशी भाषा सीखने में मददगार।
6.       अधिगम रणनीति बनाने में मददगार।

संदर्भ:
1.       NCERT, XI Psychology Text book.
2.       Solso, R. S . (2006). Cognitive Psychology. New Delhi: Pearson.

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