संज्ञानात्मक मॉडल का केंद्रीय विषय
संज्ञानात्मक जटिलताओं
के कारण
असामान्यता उत्पन्न
होती है,
यानी अक्रियाशील
और बेकार
के विश्वास
मनोरोगी लक्षणों
और मानसिक
विकारों के
लिए काफी
हद तक
जिम्मेदार होते
हैं।
मनोव्याधि मनोविज्ञान
विज्ञान
की वह शाखा जो मनोवैज्ञानिक विकारों का अध्ययन और निदान करती है।
कुछ सामान्य संज्ञानात्मक जटिलताएं
(i) स्वयं के बारे
में तर्कहीन
और गलत
धारणाएं।
(ii) स्वयं सम्बंधित दोषपूर्ण
दृष्टिकोण।
(iii) बार-बार
और कई
बार अतार्किक
चिंतन।
(iv) अति-सामान्यीकरण की
प्रवृति।
(v) छोटी सी
घटना या
प्रसंग के
बड़े-बड़े
नकारात्मक अर्थ
निकालना।
(vi) अपने चिंतन में
केवल दो
विकल्प रखना
जैसे या
तो सब
या कुछ
भी नहीं।
(vii) विकृत शारीरिक
संवेदनाएं।
(viii) किसी भी
बात कोअत्यधिक
बढ़ाना-चढ़ाना
या न्यूनीकरण
करना ।
(ix) अमूर्तता में
चयनात्मक होना।
(x) अति सामान्यीकरण और
गलत आरोपण।
(xi) सबकुछ अपने ऊपर
लेना और
संवेग-आधारित
तर्क करना।
(xii) प्रलयकारी भाव।
(xiii) चीजों एवं
घटनाओं को तरह तरह के बेतुके नाम देना।
प्रमुख सिद्धांत
मनोवैज्ञानिक
अक्रियशीलता
की तरफ
प्रवर्त होना
निम्नलिखित में
निहित है
(i) अंतर्गर्भित स्कीमा,
(ii) विश्वास,
(iii) धारणाएं या
मान्यताएं, और
(iv) स्वचालित विचार
प्रक्रिया।
संज्ञानात्मक मॉडल सम्बन्धी कुछ इनसाइट्स
प्रत्यक्षं
और उसके
बाद की
प्रतिक्रियाएं संज्ञानात्मक
स्वास्थ्य की
अभिव्यक्ति होती
हैं। तत्काल
और स्वतःस्फूर्त
विचारों से
आच्छादित प्रतिक्रियाएं व्यक्ति के
जीवन को
सार्थक रूप
से प्रभावित
करती है।
दोषपूर्ण या
अनुचित प्रत्यक्षं
व्यक्ति को
विकृत वास्तविकता
की ओर
ले जाते
हैं
जो संवेगात्मक
अभिव्यक्ति और
तत्पश्चात व्यवहार
में हस्तक्षेप
करती है।
यह प्रक्रिया
असामान्यता को
जन्म देती
है। "संज्ञानात्मक मॉडल
सूचना-प्रसंस्करण
ढांचे पर
काम करता
है, जो
यह बताता
है कि
मनोवैज्ञानिक विकार
वाले व्यक्ति
चिंतन में
विकृत पैटर्न
का अनुभव
करते हैं
और जिसके
फलस्वरूप तनावपूर्ण
या नकारात्मक
अनुभवों के
संपर्क में
आने पर
जानकारी को
सटीक रूप
से संसाधित
करने में
असक्षम होते
हैं। इस
प्रकार उत्पन्न
सूचना-प्रसंस्करण
त्रुटियां विकृत
और गलत
विचारों को
जन्म देती
हैं, जो
मानसिक समस्याओं
को ज्यों
का त्यों
बनाए रखने
का काम
करती हैं"
(डॉबसन एट
अल।, 2018)।
संज्ञानात्मक मॉडल की व्याख्या
1. बचपन
के अनुभव
– माता-पिता
के अनुचित
व्यवहार के
कारण अगर
बचपन के अनुभव
ख़राब, आशाहीन
एवं पीड़ादायक
होते हैं
तो वे
अनुभव मनोशारीरिक
विकास
को सार्थक
रूप से
बाधित कर
सकते हैं।
2. मनसः
ख़ाका (स्कीमा ) – एक
संज्ञानात्मक मानचित्र
या खाके
के जैसी संज्ञानात्मक संरचनाएं
जो आंतरिक
और बाहरी
संकेतों से
सक्रिय होती
हैं। बाद
में निर्मित
होने वाले
स्कीमा प्रत्यक्षणात्मक
क्षमता को
विकृत कर
देते हैं
जिससे घटनाओं
की व्याख्या
भी अनुचित
या गलत
होती है।
इसका परिणाम
संज्ञानात्मक विकृतियों
के रूप
में होता
है। जैसे
हम क्या
और कैसे
सोचते हैं,
चीज़ों को
किस दृष्टिकोण
से प्रत्यक्षित
करते हैं आदि को
प्रभावित करते
हैं। यदि
स्कीमा निश्चित
रूप से
दुर्भावनापूर्ण तथा
अनुपयुक्त हों
तो वे
विकृत, पक्षपाती,
और/या
निष्क्रिय प्रत्यक्षणात्मक
प्रक्रिया और
दोषपूर्ण समस्या
समाधान का
निर्माण करेंगे।
फलस्वरूप वे
सूचना का
कूटसंकेतन और
प्रत्याह्वान करने
में चयनात्मक
होंगे (डॉबसन
एट अल।
2018)।
3. मूल
या आन्तरक विश्वास – ये
संज्ञानात्मक स्कीमा
के महत्वपूर्ण
घटक होते
हैं। मूल
विश्वास प्रायः
अपने, दूसरों
और सामान्य
दुनिया के
बारे में,
निश्चित, निरपेक्ष
और सामान्यीकृत
होते हैं।
जब ये
आन्तरक विश्वास
नकारात्मक होते
हैं तो
व्यक्ति को असामान्य
व्यवहार की
ओर ले
जाते हैं।
4. मान्यताएँ
– ये एक
प्रकार के
सशर्त प्रस्थापना
या कथन
होते हैं
जो किसी
व्यक्ति की
रोज़मर्रा की
चयन प्रक्रिया को निर्देशित
करने के
साथ साथ
उनका प्रबंधन
भी करते
हैं तथा
उनके मानकों,
मूल्यों और
जीवन शैली
सम्बंधित नियमों
को भी
दर्शाते हैं।
वे अक्सर
निम्न रूपों
में होते
हैं: -
(i) "यदि-तो”
कथन, (सकारात्मक
या नकारात्मक)
(ii) जीने के नियम
(iii) अभिवृति
(डॉबसन एट
अल।, 2018)। को अनुकूलित
मान्यताएं
तीन प्रमुख
मुद्दों जैसे
स्वीकृति, क्षमता
और नियंत्रण
पर अपना
ध्यान केंद्रित
करती हैं।
मूल विश्वासों और मनोवैज्ञानिक विकारों की प्रमुख विषयवस्तु
मनोवैज्ञानिक विकार |
मूल विश्वास |
अवसाद |
नकारात्मक स्व-मूल्यांकन, निराशा, असफलता और मानसिक अभाव। |
सामान्यीकृत दुश्चिंता विकार |
गहन चिंता, आत्म-बलिदान सम्बन्धी विचार, जीवनशैली सम्बन्धी कठोर नियम। |
आतंक (पैनिक) विकार |
मनो शारीरिक स्वास्थ्य सम्बन्धी आपदा का गहन भय। |
सामाजिक दुर्भीति |
अस्वीकृत, आलोचना या अपमानित होने का भय। |
मनोग्रस्ति बाध्यता विकार |
ऐसे विश्वास जिनमे मानसिक या व्यवहारिक नियंत्रण खोने का डर हो तथा जो स्वयं को और दूसरों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। |
द्विध्रुवी विकार |
ऐसे विश्वास जो दवा लेने सम्बन्धी अनुपालन, उन्मत्त और अवसादग्रस्त विश्वासों को कमजोर करते हैं। |
क्षुधामान्द्य विकार
(एनोरेक्सिया नर्वोसा) |
विकृत स्वायत्तता, अत्यधिक आत्म नियंत्रण, विकृत मनोशारीरिक सीमाएं |
आत्मघाती विचार और इरादा |
शर्म, अलगाव, पृथक्करण, विफलता, आरोपण और दोष। |
Courtesy: Dobson
et al. 2018. |
5. उत्प्रेरक
(ट्रिगर) – बाहरी
पर्यावरणीय उद्दीपक
या घटनाएं
जो [नकारात्मक]
विचारों की
एक श्रृंखला
को शुरू
करती हैं।
6. नकारात्मक
स्वचालित विचार – ये
त्वरित, निरंतर,
व्यापक, अनैच्छिक
और बेकाबू
होते हैं।
ये घटना
और स्थिति
विशिष्ट होते
हैं। ये
किसी व्यक्ति
की मनो-शारीरिक स्थिति
को सीधे
प्रभावित करते
हैं जिसके
परिणामस्वरूप व्यवहार
अनुचित और
अनुपयुक्त हो
जाता है।
सन्दर्भ:
1. Verma, L. P. (1965). Psychiatry in
ayurveda. Indian J Psychiatry. 1965;7:292.
2. पांडेय, जगदानंद.
(1956). असामान्य मनोविज्ञान.
पटना: ग्रंथमाला
प्रकाशन कार्यालय।
3. Coleman, J. C. (1981). Abnormal
psychology and modern life.
4. Dobson, K. S., Poole, J. C., &
Beck, J. S. (2018). The fundamental cognitive model. In R. L. Leahy (Ed.), Science and practice in cognitive
therapy: Foundations, mechanisms, and applications (p. 29–47). Guilford Press.
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